अनुभव कहता है कि जो दोस्ती तुरत - फुरत में होती है, वह ज्यादा दिन नहीं टिकती। वहीं काफी हिचक के बाद होने वाली मित्रता ज्यादातर स्थायी होती है। कुछ ऐसे ही देखते ही देखते परिदृश्य पर छा जाने वाले लोगों की चमक जल्दी ही उतर जाती है। लेकिन योग्य होते हुए भी दबे - दबे से रहने वाली शख्सियतें समय की रेत पर अपनी अमिट छाप छोड़ जाते हैं। पत्रकारिता जगत की दो चर्चित हस्ती तहलका वाले तरुण तेजपाल व कभी तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो व प श्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से निकटता के लिए पहचाने जाने वाले कुणाल घोष के हश्र को देखकर पता नहीं क्यों कुछ सवाल मेरे मन में बार - बार कौंध रहे है। क्योंकि इन दिनों दोनों जेल में है। तेजपाल पर अपने अधीनस्थ महिला कर्मचारी से यौन शोषण का आरोप लगा है। तो कुणाल घोष हजारों करोड़ रुपयों के बहुचर्चित शारदा घोटाले में कथित लिप्तता के संदेह में हिरासत में है। पता नहीं क्यों मुझे लगता है कि तेजपाल व कुणाल यदि कभी पत्रकारिता के केदार चाचा से मिले होते, तो शायद उनका ऐसा पराभव नहीं होता। केदार चाचा का पूरा नाम केदार महतो था।
स्वर्ग सिधार चुके महतो झारखंड के जमशेदपुर से निकलने वाले एक छोटे से समाचार -पत्र से जुड़े थे। लेकिन उनका व्यक्तित्व असाधारण था। संयोग से उस दौर में मैं भी उस समाचार पत्र के लिए जिला संवाददाता के तौर पर कार्यरत था। इस नाते केदार चाचा से मिलने का मौका मुझे कई बार मिला। सफेद पायजामा व खादी के कुरते में वे नेता जैसे लगते थे। साहित्य - सांस्कृतिक खबरों पर मानो उनका एकाधिकार था। क्योंकि उनकी शैली विशिष्ट थी। हमेशा अपने काम में डूबे रहने वाले केदार चाचा अपने से जूनियरों का खूब ख्याल रखते थे। अपने से छोटों पर वे कभी बड़प्पन नहीं झाड़ते थे। हालांकि खुद सलाह मांगने पर लेखन के लिए विषय जरूर सुझाते थे। आज से बमुश्किल 15 साल पहले तक उन्हें मिलने वाली तनख्वाह के बारे में मैने जो सुना था, उसकी चर्चा आज यदि नई पीढ़ी के सामने की जाए, तो वे हंसे बिना नहीं रह पाएंगे। लेकिन केदार चाचा थे पक्के कर्मय़ोगी। जीवन के उस दिन को मैं कभी नहीं भूल सकता।
जिस अखबार से हम जुड़े थे, उसका स्थापना दिवस था। मुख्य अतिथि के रूप में तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा समारोह पहुंच चुके थे। मंच पर संपादक- प्रकाशक व अन्य विशिष्ट व्यक्तियों से मिलने के उपरांत कुछ ढूंढने के अंदाज में मुख्यमंत्री बोले- केदार चाचा कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं। दौड़ कर किसी ने संदेश दिया। हाथ जोड़े केदार चाचा मंच पर गए, तो मुख्यमंत्री ने उनके पांव छू कर आर्शीवाद लिया। यह दृश्य सचमुच अकल्पनीय और प्रेरणास्पद था। जो यह संदेश देता था कि भौतिक जीवन में पत्रकार के समक्ष हजार मुश्किलें आ सकती है, लेकिन वह यदि कर्तव्यनिष्ट व ईमानदार रहे, तो समाज से ऐसा सम्मान प्राप्त कर सकता है। मेरा मानना है कि कुणाल व तेजपाल जैसे तेजस्वी पत्रकार यदि कभी केदार चाचा से मिले होते , तो शायद आज उनका यह हश्र न होता।
तारकेश कुमार ओझा,
खड़गपुर ( पशिचम बंगाल)
संपर्कः 09434453934
लेखक दैनिक जागरण से जुड़े हैं।
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