धर्मशाला, 23 दिसम्बर । हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने आज कहा कि उनके व उनके परिवार के सदस्यों के विरूद्घ भारतीय जनता पार्टी और उनके साथियों द्वारा किए जा रहे दुष्प्रचार और व्यक्तिगत आरोपों से उन्हें दु:ख पहुंचा हैै। भाजपा इस मामले को बार-बार सदन में और सदन से बाहर उठाती रही है। व उनकी छवि और प्रतिष्ठा को धूमिल करने का प्रयास किया जा रहा है।
यहां जारी एक बयान में उन्होंने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री श्री प्रेम कुमार धूमल के शासनकाल के दौरान 14 जून 2002 को समझौता ज्ञापन के तहत मैसर्ज वैंचर एनर्जी एण्ड टैक्नोलॉजी लिमिटिड को साई-कोठी परियोजना वर्ष 2002 में प्रदान की गई थी। उक्त परियोजना को समझौता ज्ञापन की धारा 16 के तहत इक्विटी सहयोगियों की गलत तरीके से जानकारी देने के लिए दिसम्बर, 2002 में कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था और रद्द करने की प्रक्रिया जनवरी, 2003 में आरम्भ की गई। अप्रैल 2003 से 2004 के बीच कम्पनी ने उनकी सरकार से सम्पर्क साधा किन्तु परियोजना को पुनर्बहाल करने का प्रस्ताव सरकार द्वारा तीन बार अस्वीकार कर दिया गया। इससे प्रभावित होकर कम्पनी वर्ष 2005 में हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय में गई और माननीय उच्च न्यायालय ने 8 जून, 2005 तथा 19 जुलाई, 2005 के अपने आदेश से इस परियोजना को हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड को सौंप दिया।
उन्होंने बताया कि कम्पनी माननीय सर्वोच्च न्यायालय में गई जहां से 5 सितम्बर, 2005 के आदेश के तहत परियोजना को कम्पनी को आवंटित करने के लिए पुनर्विचार करने के आदेश पारित हुए। आदेश में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ‘8 जून, 2005 एवं 19 जुलाई, 2005 तथा माननीय सर्वोच्च न्यायालय के 15 सितम्बर, 2006 के आदेश से प्रभावित हुए बिना अवैध रूप से समाप्त किए जाने तथा प्रतिवेदन को रद्द करने के संबंध में याचिकाकर्ता के सीमित प्रश्न के बारे में नोटिस जारी करने के संबंध में जांच की जाए’।
सरकार ने कम्पनी द्वारा माननीय उच्च न्यायालय से सिविल याचिका वापिस लेने की शर्त पर साई कोठी परियोजना के समझौता ज्ञापन को कार्यान्वयन समझौता हस्ताक्षरित कर पुनर्बहाल करने का निर्णय लिया। इस प्रकार सरकार के निर्णय के उपरान्त परियोजना पुनर्बहाल की गई तथा कार्यान्वयन समझौता जून, 2007 में तब हस्ताक्षरित किया
गया जब कम्पनी ने 8 मई, 2007 को हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय से अपनी याचिका वापिस ले ली। सरकार ने 16 जून, 2007 को कार्यान्वयन समझौता हस्ताक्षरित किया। कार्यान्वयन समझौते के अनुसार सभी अनिवार्य स्वीकृतियां प्राप्त करने और निर्माण कार्य आरम्भ करने की निर्धारित तिथि अर्थात शून्य तिथि 16 जून, 2009 निर्धारित की गई। यह कार्यान्वयन समझौता हस्ताक्षरित होने के 24 माह बाद की तिथि थी।
कम्पनी इन्हें पूरा करने में असफल रही किन्तु प्रदेश की भाजपा सरकार ने 27 जुलाई, 2010 के अपने सीएमएम के माध्यम से इसे 31 मार्च, 2011 तक 21$5 महीने (16 सितम्बर, 2009 से 31 मार्च, 2011 तक) के लिए 10 हजार रुपये प्रति मैगावाट प्रतिमाह के विस्तार शुल्क के साथ समय विस्तार देने का निर्णय लिया। स्वतंत्र उर्जा उत्पादक ने 21 मई, 2011 को 16 जून, 2009 से 31 मार्च, 2011 तक के विस्तार समय का विस्तार शुल्क जमा करवाया। कम्पनी ने 45$75 लाख रुपये जमा करवाए किन्तु 25$52 लाख रुपये का बकाया रहा, जिसमें विस्तार शुल्क एवं ब्याज शामिल हैं।
कम्पनी इस प्रकार बकाया राशि जमा करवाने में असफल रही और 30 सितम्बर, 2012 के विस्तार समय तक स्वीकृतियां प्राप्त करने में असफल रही। इसी बिन्दु पर 25 दिसम्बर, 2012 को वर्तमान प्रदेश सरकार ने कार्यभार संभाला।
सरकार ने 4 सितम्बर, 2013 को आयोजित सीएमएम में निर्णय लिया कि 15 मैगावाट क्षमता की साई कोठी जल विद्युत परियोजना के कार्यान्वयन के लिए सभी वैधानिक/गैर वैधानिक स्वीकृतियां प्राप्त करने और निर्माण कार्य आरम्भ करने (शून्य तिथि प्राप्त करने के लिए) के लिए कम्पनी के पक्ष में 10 माह का विशेष विस्तार समय प्रदान किया जाए। इसके लिए कम्पनी पर 20 हजार रुपये प्रति मैगावाट प्रतिमाह की दर से विस्तार शुल्क लगाया गया। यह निर्णय निम्न शर्तों को पूरा करने पर ही लागू होना है:
4 सितम्बर, 2013 को आयोजित सीएमएम में लिए गए निर्णय के अनुसार और निर्धारित समयवधि में स्वतंत्र उर्जा उत्पादक से कोई उत्तर प्राप्त न होने और बकाया राशि जमा न करवाने पर हिमाचल प्रदेश सरकार ने आवंटन रद्द कर दिया तथा कम्पनी मैसर्ज वैंचर एनर्जी एवं टैक्नोलॉजीस लिमिटिड के साथ 12 नवम्बर, 2013 से 16 जून, 2007 को हस्ताक्षरित कार्यान्वयन समझौता रद्द कर दिया। जब परियोजना रद्द की जा चुकी है तो मैं यह जानना चाहता हूं कि किस प्रकार कम्पनी को ‘फेवर’ किया गया। दूसरी ओर सरकार ने नियमों के अनुसार निर्णय लेकर विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार कार्य किया है।
अब हाल ही में तारिणी इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटिड के संबंध में उठाया गया दूसरा मामला है। यह एक सार्वजनिक सूचीबद्घ कम्पनी है जोकि स्टॉक एक्सचेंज के साथ सूचीबद्घ है। खरीदे गए शेयरों का पूरी तरह भुगतान किया गया है और इन्हें प्राथमिक शेयर के रूप में खरीदा गया है। कम्पनी अधिनियम, 1956 की धारा 81 (1ए) के अनुसार कोई भी सार्वजनिक लिमिटिड कम्पनी वर्तमान शेयरधारकों के अतिरिक्त किसी भी व्यक्ति जो कम्पनी की इक्विटी खरीदने के लिए निर्धारित प्रपत्र पर चैक/डिमांड ड्राफट तथा स्वंय सत्यापित पैन कार्ड सहित आवेदन करता है, को शेयर आवंटित कर सकती है।
कम्पनी तदोपरान्त बोर्ड की बैठक के माध्यम से आवश्यक अनिवार्य औपचारिकताएं पूरी कर शेयर आवंटन को स्वीकृति प्रदान करती हैै। कम्पनी अधिनियम 1956, भारतीय प्रतिभूति विनियमन बोर्ड (सेबी) के दिशा निर्देश और अन्य संबंद्घ नियम एवं नियमन के अनुसार सभी निर्धारित नियमों को पूरा कर भारत का कोई भी नागरिक अथवा व्यक्ति भारत की कम्पनियों की इक्विटी के लिए आवेदन कर सकता है।
जहां तक श्रीमती प्रतिभा सिंह, सुश्री अपराजिता तथा श्री विक्रमादित्य सिंह का प्रश्न है तो सभी की आयु 18 वर्ष से अधिक है, सभी भारतीय नागरिक हैं और सभी उपरोक्त वर्णित विधि के तहत आवश्यक नियमों एवं नियमनों को पूरा करते हैं, और इसमें किसी भी प्रकार का उल्लंघन/अनियमितता/अवैधता नहीं है कि मैसर्ज तारिणी इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिडि जोकि कम्पनी अधिनियम, 1956 के तहत गठित सार्वजनिक लिमिटिड कम्पनी है, के इक्विटी शेयर क्रय किए जाएं। केन्द्रीय कम्पनी मामले विभाग के समक्ष सभी फार्म एवं वार्षिक रिटर्न भरे गए हैं और यह उनके पोर्टल पर सभी के लिए निरीक्षण एवं देखने के लिए उपलब्ध हैं। इक्विीटी डिमांड ड्राफट के माध्यम से निवेशक की वर्ष 2009 की व्यक्तिगत आय के माध्यम से क्रय की गई है।
यह तथ्यात्मक वक्तव्य है, जिसके संबंध में मेरे मित्र अनावश्यक शोर मचा रहे हैं। वस्तुस्थिति के अनुसार मैं यह प्रस्तुत करना चाहता हूं कि कांग्रेस पार्टी ने वर्ष 2008 से वर्ष 2012 के मध्य सत्तासीन रही भाजपा सरकार के गलत कार्यों के विरूद्घ चार्जशीट तैयार करने के लिए एक समिति का गठन किया था। मैं इस समिति का सदस्य भी नहीं था। यह चार्जशीट भारत के राष्ट्रपति को सौंपी गई थी। दिसम्बर, 2012 में कांग्रेस सरकार के गठन के उपरान्त मेरी सरकार ने पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र को नीतिगत दस्तावेज के रूप में अपनाया और निष्पक्ष तथा स्वतंत्र जांच के लिए चार्जशीट को सर्तकता ब्यूरो को सौंपा गया।
उन्होंने कहा,मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि मेरी सरकार न तो पूर्व सरकार की तरह राजनीतिक द्वेष की भावना से कार्य करेगी और न ही किसी को प्रताडि़त करेगी क्योंकि मेरी सरकार इस विचारधारा में विश्वास नहीं रखती। यह भाजपा सरकार के प्रथम कार्यकाल में किए गए राजनीतिक उत्पीडऩ की तरह नही है।, उस समय सागर कत्था मामले की जांच के लिए कैंथला आयोग गठित किया गया था। इसी प्रकार भाजपा के दूसरे कार्यकाल में मेरे विरूद्घ सीडी मामले सहित झूठे एवं मनघडं़त मामले दायर किए गए। इसमें मैंने सैशन ट्रायल का सामना किया और अन्त में पूरी तरह पाक-साफ होकर निकला। भाजपा सरकार ने बार-बार मेरी जमीन की पैमाइश भी करवाई और इसमें कुछ भी गलत सामने नहीं आया। मैं बताना चाहूंगा कि राज्यों के विलय के समय मेरे पास कोई जमीन नहीं थी। मुझे राज्यों के विलय के समय विलय बन्दोबस्त के रूप में केन्द्र सरकार द्वारा भूमि प्रदान की गई थी, जोकि विधिवत रूप से अभिलेखित है। कुछ सम्पति मुझे अपनी माता से उनके निधन के उपरान्त विरासत में मिली है। मेरी भूमि का बड़ा हिस्सा काशतकारों को मिला है और इसी प्रकार कुछ भूमि हिमाचल प्रदेश भू-काश्तकारी अधिनियम के अन्तर्गत राज्य सरकार को सौंपी गई है। अब मेरे पास उतनी ही भूमि है जितना कानून के अनुसार मैं हकदार हूं और इस भूमि को भाजपा सरकार के कार्यकाल में राजनीतिक उत्पीडऩ के लिए बार-बार नपवाया गया।
मैं व्यक्तिगत रूप से किसी भी व्यक्ति का नुकसान नहीं करना चाहता किन्तु कानून अपना कार्य करेगा। अब जबकि भाजपा सरकार के गलत कार्यों की जांच गति पकड़ रही है तो अनावश्यक मामले उठाकर लोगों का ध्यान बांटने का प्रयास किया जा रहा है। हम विधि के शासन की अनुपालना करते हैं और कोई भी कानून से उपर नहीं है। किसी भी व्यक्ति द्वारा चलाई जा रही कानूनी गतिविधियां जोकि न्यायिक रूप से तर्कसंगत हैं, से राजनीतिक लाभ उठाने की चेष्टा की भत्र्सना की जानी चाहिए।
मेरा पांच दशक का स्वच्छ सार्वजनिक जीवन है और मेरा जीवन एक खुली किताब की तरह है। मेरी सरकार भ्रष्टाचार के विरूद्घ जीरो टोलरेंस की नीति अपना रही है और मेरी सरकार प्रदेश के लोगों को स्वच्छ एवं दक्ष प्रशासन प्रदान करने के लिए प्रतिबद्घ है।
( विजयेन्दर शर्मा)
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