गठबंधन अथवा अल्पमत की सरकारें मेल-मिलाप, आपसी समझदारी और बेहतर रिश्तों के आधार पर चलती हैं। आम आदमी पार्टी की सरकार भी अल्पमत में है, कांग्रेस के सहयोग की बैसाखी के सहारे खड़ी है इसके बावजूद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनके तमाम मंत्रियों के तेवर कड़े हैं। उनका साफ कहना है कि सरकार चलेगी या गिरेगी, इसकी परवाह उन्हें कतई नहीं है। उन्हें तो जनता के काम से मतलब है।
सियासत में यही होता आया है कि समर्थन देने वाली पार्टी सरकार चलाने वाले दल पर आंखें तरेरती है, यहां तो सत्ताधारी दल ही समर्थन देने वाले दल को ललकार रहा है। ऐसे में दोनों दलों के बीच कायम हुई मजबूरी की यह दोस्ती किस तरह कायम रहेगी इस पर पहले दिन से संदेह है। रामलीला मैदान में मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के फौरन बाद मंच से अरविंद केजरीवाल ने शनिवार को कांग्रेस को एक प्रकार से ललकारते हुए कहा कि एक सप्ताह बाद विश्वास मत विधानसभा में पेश होना है। यह पास होता है या गिर जाता है, इसकी कोई चिंता उन्हें नहीं है। यदि विश्वास मत गिर जाएगा तो वे फिर से जनता के बीच जाएंगे और जनता उन्हें पूर्ण बहुमत से दोबारा चुनाव जिताकर भेजेगी। हालांकि, उन्होंने कांग्रेस व भाजपा के विधायकों से अंतरात्मा की आवाज पर वोट देने की अपील भी की। केजरीवाल मंत्रिमंडल के शपथ ग्रहण समारोह में कांग्रेस के विधायकों व अन्य नेताओं की गैरमौजूदगी सूबे के सियासी गलियारों में शनिवार को दिन भर चर्चा का विषय बनी रही। प्रतिपक्ष से भाजपा विधायक दल के नेता डॉ. हर्षवर्धन की मौजूदगी और कांग्रेसी नेताओं की गैरहाजिरी से साफ हो गया कि आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच का रिश्ता शायद टिकाऊ नहीं होगा।
केजरीवाल के साथ-साथ उनकी सरकार के मंत्रियों मनीष सिसोदिया, सोमनाथ भारती आदि ने भी कहा कि उन्हें इस बात की लेश मात्र भी फ़िक्र नहीं है कि विधानसभा में सरकार विश्वास मत जीतती है या हार जाती है। वे तो जनता का काम करने आए हैं और काम करेंगे। भारती ने कहा कि हमने कांग्रेस से समर्थन नहीं मांगा था, पार्टी ने खुद ही समर्थन दिया। अब आगे उनकी मर्जी है।
कांग्रेस के नेता इस पूरे मामले पर चुप्पी साधे हैं। खुलकर बोलने से परहेज कर रहे हैं लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि इस फजीहत को लेकर पार्टी में जबरदस्त रोष भी है। जाहिर है यह रोष आने वाले दिनों में अपना असर भी दिखाएगा। केजरीवाल ने आने वाले खतरों को लेकर कहा भी कि आगे का रास्ता बेहद कठिन है। हमने पूंजीवादी वा सांप्रदायिक शक्तियों को चुनौती दी है और ये शक्तियां भी आराम से नहीं बैठने वालीं, बाधाएं जरूर खड़ी करेंगी।
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