मधेपुरा। इस जिले के मुरलीगंज प्रखंड में स्थित दीनापट्टी-सखुआ पंचायत के गोपाली कृति टोला में महिला किसानों का सामूहिक कृषि अभियान शुरू किया। बिहार में महिलाएं पूर्णरूप से कृषक की भूमिका में कम ही नजर आती है। यघपि सीमांत किसान व मजदूर परिवार की महिलाएं खुद की अथवा ठेका-बटाई पर ली गयी जमीन पर हलवाही के अलावे अन्य सभी कृषि कार्य को करती हैं। लघु कृषक परिवार की महिलाएं भी कृषि कार्य में प्रमुखता से हाथ बंटाती हैं तथापि इनके अंदर किसानों का बोध न के बराबर है।
जहां तक सामूहिक खेती का सवाल है। तो, उत्तर बिहार में इसका प्रचलन नगण्य है। महिलाओं द्वारा सहज रूप से की जाने वाली सामूहिक खेती का उदाहरण कहीं देखने को भी नहीं मिलेगा। वंचित समुदाय एवं महिलाओं के बीच नवीन चेतना विकास तथा उनके आर्थिक उत्थान के लिए प्रयासरत बिहार की प्रमुख सामाजिक संस्था ‘प्रगति ग्रामीण विकास समिति’ ने समाज के गरीब वर्ग की महिलाओं को लक्ष्य करके नवजागरण का विशेष अभियान चला रखा है। समिति की मान्यता है कि महिलाओं को भी पुरूषों के समकक्ष किसान का दर्जा प्राप्त होना चाहिए। इससे उनके आत्मबल में वृद्धि होगी तथा वे हर स्तर पर नेतृत्वकारी भूमिका निभाने की स्थिति में आ सकेंगी। इसी दृष्टि से गरीब वर्ग की महिलाओं को स्वतंत्र रूप से किसान की भूमिका में आने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। लेकिन इनके पास न तो जो की जमीन है, न पर्याप्त पूंजी है और न ही पुरूषों के समान किसानी के जुगाड़ का कौशल। इस समस्या के निदान के लिए संस्था द्वारा महिलाओं को छोटे-छोटे ‘महिला किसान समूह’ गठित किये जाते हैं। एक समूह की महिलाओं को एक साथ सामूहिक खेती के लिए प्रेरित किया जाता है। समूह की सभी महिलाएं थोड़ा-थोड़ा पैसा इकट्ठा कर के खेती के लिए पूंजी का जुगाड़ कर लेती हैं। फिर गांव के किसी किसान से सालाना लीज पर जमीन ली जाती है। कई महिलाओं के एक साथ आने से किसानी के हर जुगाड़ का कौशल उन्हें मसझ में आने लगता है। सामूहिकता के बोध के कारण उत्पन्न उत्साह में ये अपने घर के दैनिक कार्यों को पूरा करते हुए भी थोड़ा-थोड़ा समय देकर खेती करने तथा फसल की रक्षा करने में सफल हो जाती हैं। संस्था द्वारा दक्षिण बिहार के कई जिलों में इस तरह की खेती का सफल प्रयोग किया गया तथा वर्षों से कई महिला समूह इसका लाभ उठा रही हैं।
उत्तर बिहार में कोसी क्षेत्र के मधेपुरा जिलान्तर्गत मुरलीगंज प्रखंड में महिलाओं को सामूहिक खेती के लिए प्रेरित करने का बीड़ा संस्था के पूराने स्थानीय कार्यकर्ता ध्रुव प्रसाद श्रीवास्तव ने उठाया है। उन्होंने कार्यक्षेत्र के गांव-टोले में बैठक करके संगठन के लोगों खासकर महिला सदस्यों को इस तरह की खेतीके फायदे के बारे में बतलाना प्रारंभ किया। कृति टोला में संगठन के सदस्यों ने इस संदर्भ में विशेष रूचि दिखलाई। स्मरण रहे कि संस्था के स्थानीय संगठन से जुड़े गोलाल/कृति टोला के भूमिहीनों ने बिहार सरकार की खाली पड़ी 2 बीघा जमीन को अपने कब्जा में ले लिया था। कब्जा करने वाले 26 परिवारों में से 20 परिवारों ने जमीन पर 20 परिवार ने जमीन पर अपनी झोपड़ियां डाल दी है। पूर्व में इस जमीन पर गांव के जमींदार स्व. कृति यादव का कब्जा था। जमींदार परिवार की ओर से अबतक कोई प्रतिरोध नहीं हुआ है।
नियत तिथि को तय समय पर गांव में पहुंचने पर गांव में पहुंचने पर अहसास हुआ कि आज की बैठक के प्रति लोगों को खासा उत्साह है। इसके मुख्य तीन कारण थे। प्रथमतः बिहार सरकार की जमीन पर कब्जा के बाद गांव में संगठन की पहली बड़ी बैठक हाने वाली थी। दूसरा, यह कि हाल में संपन्न हर राष्ट्र स्तरीय भूमि आंदोलन में भारत सरकार से समझौते की विस्तृत जानकारी की चाहत थी। और तीसरा कारण था महिला किसानों द्वारा सामूहिक खेती की अवधारण के प्रति जिज्ञासा। दीनापट्टी स्थान पर प्रारंभ हुई बैठक में लगभग दो सौ महिला-पुरूषों ने भाग लिया। किसी परिवार के दो तो किसी से तीन सदस्य 149 प्रतिभागियों के ठप्पा-निशान लिये जा सके। जिसमें महिला के 79 एवं पुरूष के 70 निशान थे।
‘जय जगत’ गीत से प्रारंभ हुए बैठक के प्रथम चरण में भूमि के सवाल पर भूमिहीनों के पक्ष में हुए समझौते के बिन्दुओं का सरलीकरण किया गया तथा कब्जा की गई जमीन की बन्दोबस्ती के लिए अंचलाधिकारी को आवेदन देने का निर्णय लिया गया। महिलाओं द्वारा स्वतंत्र रूप से सामूहिक खेती पर चर्चा के क्रम में बताया गया कि व्यक्तिगत तौर पर कम पूंजी खर्च करके भी एक निश्चित आय की प्राप्ति की जा सकती है। सामूहिक रूप से कृषक की भूमिका में आने पर विभिन्न परिवारों के बीच आत्मीयता बढ़ेगी, विश्वास बढ़ेगा। कृषि संबंधी आवश्यकता को पूरा करने के लिए समाज के विभिन्न वर्गों से सर्म्पक के क्रम में आंतरिक हिचक दूर होगी। आत्मविश्वास बढ़ेगा, आत्मबल मजबूत हो और नेतृत्वकारी तथा निर्णायक क्षमता का विकास होगा। इसका फायदा तब महसूस होगा, जब परिवार के पुरूष सदस्य रोजी के लिए परदेश निकल जायेंगे।
लेगों की बात जांस रही थी, चेहरे पर विश्वास और उत्साह के भाव झलक थे। लेकिन कुछ चेहरे पर आशंका की लकीरे भी थीं। आशंका यह कि दो-चार सौ रूपए की व्यवस्था करके इस कामें लगा देने के बाद अगर घाआ लग गया तो हमारी गरीबी में एक और मुसीबत चस्पा हो जायेगी। आशंका के इस कोहरे के दूर किया ललिया देवी की पुरजोर आवाज ने। ‘ अरे, घाटा कई से लेगा, कुदाल , खुरपी या दूसरे तरह का काम तो हमलोग खुद करेंगे। ट्रैक्टर , पानी और खाद-बीज का रूपया लगेगा और काम में न नहीं न लगेगा। अगर तईयों घाटा लगेगा त एक बार बर्दाश्त कर लेंगे, कई बार अलौक-बलौक का दलाल सब रूपया ठग के गया, त का हम मर गये। इनकी बात का इन्द्रा, मुंगिया,रूकमा और कैली इत्यादि ने पुरजोर समर्थन किया। तय हुआ कि फिलहाल एक समूह बनाकर खेती प्रारंभ की जाये। अगर सबकुछ ठीकठाक रहा तो अगले सीजन में और समूह बनाया जायेगा। बैठक में निम्न प्रकार से महिला किसान समूह का गठन हुआ। अध्यक्ष लकीया देवी, सचिव मुंगिया देवी, कोषाध्यक्ष इन्द्रा देवी बनी। सदस्य के रूप में दुरपति देवी, गंगीया देवी, कारी देवी, ललीया देवी, गीता देवी, रूकमा देवी, कैली देवी और सुमित्रा देवी कुल 11 सदस्य हो गये। इस पहल का पुरूषों ने भी करतल ध्वनी से स्वागत किया। पता नहीं, आज मानवाधिकार दिवस का यह पहल मानवाधिकार के किसी खांचे में फिट बैठता है या नहीं?
समूह के सदस्यों ने रात में गांव के एक किसान बासुदेव प्रसाद यादव से जमीन की बात की। 8 हजार रू0 सालाना मौखिक लीज पर उनसे लगभग 1 एकड़ 20 डिसमिल जमीन प्राप्त किये। इसपर जुताई कराकर मक्के की बुआई कर दी गयी। इस कार्य के लिए सभी ग्यारह सदस्यों ने फिलहाल दो-दो सौ रूपए का व्यक्तिगत योगदान दिया है। कम से कम चार बार पानी पटवन और ऊपर से दिये जाने वाले खाद एवं कीटनाशक के लिए राशि के इंतजाम के बारे में समूह के अंदर चिंतन जारी है। अंत में यह कि कार्यकर्ता ध्रुव प्रसाद श्रीवास्तव ने अच्छे प्रेरक की भूमिका निभाई है।
आलोक कुमार
बिहार
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