पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में जन अदालत (गैरकानूनी) के नाम पर एक जनजातीय महिला के साथ क्रूरतापूर्वक सामूहिक दुष्कर्म किए जाने पर मचे चौतरफा घमासान को लेकर राज्य सरकार गुरुवार को घिरी नजर आई। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बाद में जिले के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को हटाने का आदेश दिया। मामले पर पानी डालने के लिए जिले के पुलिस अधीक्षक सी. सुधाकर को हटा दिया गया है। कोलकाता से करीब 180 किलोमीटर दूर बीरभूम जिले के सुबलपुर गांव में सोमवार रात सामूहिक दुष्कर्म की घटना घटी। यहां एक जनजाति पंचायत के मुखिया के निर्देश पर 13 लोगों ने 20 वर्षीया महिला से कथित रूप से सामूहिक दुष्कर्म किया। पंचायत ने पीड़िता को अपने समुदाय से बाहर के शख्स से प्रेम संबंध रखने का दोषी पाया था।
पुलिस ने महिला की ओर से नामजद किए गए सभी 13 लोगों को गिरफ्तार कर लिया है। यहां की एक अदालत ने सभी आरोपियों को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया है। पुलिस ने आरोपियों की हिरासत के लिए अपील नहीं की थी। पीड़िता के वकील दिलीप घोष ने कहा, "न तो सरकारी वकील हाजिर हुए और न ही पुलिस ने आरोपियों की हिरासत की मांग की। इसलिए अनुमंडल न्यायिक दंडाधिकारी, बोलपुर पिजुष घोष ने उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया।"
सामूहिक दुष्कर्म को लेकर बनर्जी सरकार पर निशाना साध रहे विपक्ष की आग में पुलिस हिरासत की अपील नहीं किए जाने ने घी का काम किया। कांग्रेस, वाम मोर्चा और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाया और सरकार पर अपराधियों के साथ मिलीभगत का आरोप लगाया। वाम मोर्चा के अध्यक्ष बिमान बोस ने कहा, "केवल सरकार द्वारा अपराधियों को संरक्षण और बढ़ावा दिए जाने के कारण कोई भी दिन ऐसा नहीं गुजर रहा है जिस दिन दुष्कर्म या छेड़खानी की घटना नहीं घटती है।"
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप भट्टाचार्य ने कहा, "यह हमारे लिए अत्यंत शर्म की बात है कि एक महिला मुख्यमंत्री के होते हुए भी महिलाएं क्रूरता की शिकार हो रही हैं।" भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष राहुल सिन्हा ने कहा, "पुलिस का आरोपियों को हिरासत में नहीं लेना इस बात का साफ उदाहरण है कि प्रशासन की अपराधियों के साथ मिलीभगत है और उन्हें राजनीतिक संरक्षण हासिल है।" बनर्जी के पुलिस अधिकारी को हटाने का आदेश देने के बाद पुलिस ने कहा कि वे आरोपियों की हिरासत की मांग लेकर अदालत में अपील करेंगे।
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