भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर रघुराम राजन ने गुरुवार को स्पष्ट किया कि 2005 से जारी नोटों को वापस लिया जाना विमुद्रीकरण नहीं है और इसका संबंध आगामी आम चुनाव से नहीं है। उन्होंने यहां आर.एन. काओ स्मारक व्याख्यान देने के बाद कहा कि यह कदम जाली नोटों को प्रचलन से हटाने की एक कवायद है। उन्होंने कहा कि 2005 के बाद जारी नोटों में सुरक्षा की बेहतर व्यवस्था है।
कैबिनेट सचिवालय के रिसर्च एंड एनालिसिस विंग द्वारा आयोजित सालाना व्याख्यान के बाद आयोजित परिचर्चा सत्र में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) निदेशक रंजीत सिन्हा ने इस पर सवाल पूछा था। सिन्हा ने इस कदम के लिए चुने गए समय को लेकर यह सवाल उठाया था कि क्या इसका संबंध चुनाव से है। राजन ने कहा कि 2005 से पहले जारी हुए नोटों की वैधता बनी हुई रहेगी। इसके कारण आम लोगों को कोई कठिनाई नहीं होगी।
उन्होंने कहा कि इस कदम का मकसद मुद्रा को प्रचलन से हटाना नहीं है। यह सिर्फ कम प्रभावी नोट को हटाकर अधिक प्रभावी नोट को प्रचलन में लाने के लिए किया गया है। उन्होंने कहा कि 2005 के बाद जारी नोटों के पिछले हिस्से में प्रकाशन वर्ष काफी महीन अक्षरों में अंकित है, जिसकी नकल आसानी से नहीं की जा सकती है। उन्होंने कहा कि यह कदम जाली नोटों को प्रचलन से हटाना है।
राजन ने कहा कि केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने काफी पहले इसके लिए सिफारिश की थी। इसे बस लागू अब किया गया है। इसका संबंध चुनाव से नहीं है। आरबीआई ने बुधवार को जारी अपने एक बयान में कहा था, "31 मार्च 2014 के बाद (आरबीआई) 2005 के पहले जारी सभी बैंक नोटों को वापस ले लेगा। एक अप्रैल 2014 के बाद से लोगों को उन नोटों को बदलने के लिए बैंक जाना होगा।" आरबीआई ने आम लोगों से अनुरोध किया कि परेशान न हों और वापसी प्रक्रिया में मदद करें।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें