अमेरिकी राजदूत नैन्सी पॉवेल नरेंद्र मोदी से मिलीं - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 13 फ़रवरी 2014

अमेरिकी राजदूत नैन्सी पॉवेल नरेंद्र मोदी से मिलीं

अमेरिका ने आखिरकार गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का सालों से जारी बॉयकॉट खत्म कर दिया। अमेरिकी राजदूत नैन्सी पॉवेल ने गुरुवार को मोदी से गांधीनगर में उनके सरकारी आवास पर मुलाकात की। दोनों राजनेताओं ने बड़े ही गर्मजोशी से एक-दूसरे से हाथ मिलाया। सूत्रों के मुताबिक, नैन्सी पॉवेल ने मोदी के साथ मुलाकात में लोकसभा चुनाव से जुड़े मुद्दों और देश के बारे में उनकी दृष्टि पर चर्चा की है।

राजनीतिक गलियारों में मोदी-पॉवेल मुलाकात को लेकर कई तरह की चर्चाएं हैं। बीजेपी के एक खेमे का दावा है कि इस मुलाकात के लिए अमेरिका को खासी मशक्कत करनी पड़ी। सूत्रों के मुताबिक, पॉवेल-मोदी मुलाकात के लिए पर्दे के पीछे चार महीनों से कोशिशें चल रही थीं। इस कोशिश में कई अमेरिकी सांसद और कारोबारी शामिल थे। पॉवेल ने दिल्ली में भी मिलने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन यह परवान नहीं चढ़ पाया। दिल्ली के गुजरात भवन में मुलाकात को भी खारिज कर दिया गया।

आखिर में 14 जनवरी को मकर संक्रांति समारोह के दौरान 'दूतों' की ओर से रखे गए प्रस्ताव को मोदी ने मान लिया। इसके बाद जनवरी के अंतिम सप्ताह में अमेरिकी दूतावास ने अपने विदेश मंत्रालय को दरख्वास्त भेजी। विदेश मंत्रालय ने दोनों के बीच होने वाली बातचीत के ऐजेंडे को तौला और इसके बाद मुलाकात के लिए हरी झंडी दे दी गई। तय हुआ कि पॉवेल को मिलने के लिए गांधीनगर का सफर करना पड़ेगा।

साल 2002 के गुजरात दंगे के बाद से अमेरिका मोदी के साथ दिखने से परहेज करता रहा है। साल 2005 से अमेरिका ने मोदी को वीजा देने से इनकार कर दिया था। नैन्सी पॉवेल की मुलाकात के बाद अमेरिका भी यूरोपियन यूनियन और ऑस्ट्रेलिया की कतार में आ जाएगा। इन देशों के राजदूत भी अपना बॉयकॉट खत्म करते हुए मोदी से मुलाकात कर चुके हैं।

शीत युद्ध के दौर की समाप्ति के बाद से ही अमेरिका और भारत के संबंधों में गर्माहट के दौर की शुरुआत हो चुकी है। ज्यादातर अमेरिकी सांसद भी नई दिल्ली से मजबूत संबंधों के पक्षधर हैं। लेकिन, मोदी को अमेरिका के वामपंथी रुझान वाले सांसदों और रूढ़िवादी क्रिस्चनों का विरोध झेलना पड़ा है। मोदी की छवि के ऐसे नेता के तौर पर है, जो बिजनेस को बढ़ावा देते हैं और माना जाता है कि करप्शन पर अंकुश लगाकर भरतीय इकॉनमी को पटरी पर ला सकते हैं।

अमेरिका में भारतीय मामलों के जानकार मिलन वैष्णव के मुताबिक, 'वाइट हाउस के अधिकारियों को इस बात का अहसास है कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने की स्थिति में अमेरिका विचित्र स्थिति में फंस सकता है। जिस देश के साथ आपके रिश्ते बढ़ रहे हैं और रणनीतिक साझेदारी है, उसके भावी नेता को आपकी जमीन पर पांव रखने की इजाजत नहीं है। प्राइवेट सेक्टर से सरकार पर काफी दबाव था। इन कंपनियों के लिए भारत बहुत बड़ा बाजार है और वे महसूस कर रही हैं कि अमेरिकी सरकार नीति नहीं बदलती है तो यूरोपियन यूनियन के देशों की कंपिनयों की प्रतिस्पर्धा में वे घाटे की स्थिति में रहेंगी।'

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