केजरीवाल को सत्ता की चिंता', देश और समाज की नहीं - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 17 फ़रवरी 2014

केजरीवाल को सत्ता की चिंता', देश और समाज की नहीं

अरविंद केजरीवाल के पुराने और वयोवृद्ध साथी अन्ना हजारे ने दिल्ली में जनलोकपाल बिल के पास न होने का ठीकरा केजरीवाल पर ही फोड़ दिया है। उनका कहना है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री इस महत्वपूर्ण बिल को कुछ समझौता और बदलावों के साथ पास करवा सकते थे। अन्ना ने आरोप लगाया है कि आप के दिल में अब समाज का हित नहीं है बल्कि सत्ता की भूख दिखाई दे रही है।

गौरतलब है कि सूबे की सियासत में अरविंद केजरीवाल का आगाज किसी नायक की तरह हुआ था। एक ऐसा चमत्कारिक व्यक्तित्व जिसके पास हर मर्ज की दवा थी। वह आधी कीमत में बिजली दे सकता था, वह समूची दिल्ली को मुफ्त पानी पिला सकता था, वह भ्रष्टाचार को नष्ट कर सकता था, वह सरकारी महकमों में अस्थायी तौर पर कार्यरत साढ़े चार लाख कर्मचारियों को नियमित कर सकता था। लेकिन हुकूमत से जब उनकी विदाई हुई तो अब उन पर चारों ओर से सियासी हमले किए जा रहे हैं।

दिल्ली के सियासी गलियारों में चर्चा यह हो रही है कि यदि फिलहाल जनलोकपाल बिल पारित नहीं ही होता, तो क्या आफत आ जाती? पहले दिल्ली की झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले गरीब लोगों को मकान देना जरूरी नहीं था? क्या बिजली-पानी की व्यवस्था को चुस्त करना जरूरी नहीं था? अस्पतालों की खराब हालत को सुधारना जरूरी नहीं था? जानकारों का कहना है कि यदि केंद्र सरकार उनका जन लोकपाल बिल पारित नहीं करती तो केजरीवाल उसके खिलाफ सियासी लड़ाई लड़ सकते थे। लेकिन वह पहले दिन से कहते रहे कि यदि यह बिल पास नहीं होगा तो वे इस्तीफा दे देंगे। इस पर विपक्ष का आरोप है कि असल में मुख्यमंत्री केजरीवाल अपनी जिम्मेदारियों से बचकर निकलने का रास्ता तलाश रहे थे। कांग्रेस के नेताओं का आरोप है कि उन्होंने जितने वादे कर रखे थे, उनको पूरा कर पाना मुमकिन नहीं था। वे शहीद बनकर जनता के सामने जाना चाहते थे।

उनके फैसलों की बात करें तो सत्ता संभालते ही उन्होंने बिजली के बिल आधा करने का निर्णय किया। बाद में पता चला कि इसका फायदा केवल 400 यूनिट तक जलाने वाले को मिलेगा। उन्होंने अनधिकृत कॉलोनियों में खर्च करने को नियत 372 करोड़ की राशि सब्सिडी के तौर पर बिजली कंपनियों को थमा दी। यह सब्सिडी तो कोई भी सरकार दे सकती थी। केजरीवाल सरकार ने कहा कि वह सरकार के विभिन्न महकमों में अस्थायी तौर पर काम करने वाले कर्मचारियों को नियमित कर देंगे लेकिन बाद में सुर बदल गए। उसने कहना शुरू कर दिया कि बाकायदा परीक्षा होगी और सफल रहने वालों को ही नियमित किया जाएगा।

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