साँपों की तमाम प्रकार की किस्मों के बारे में साफ कहा जाता है कि जो लोग दूसरों की धन-दौलत और जमीन जायदाद चुरा कर अपने नाम कर लिया करते हैं, अतिक्रमण कर लिया करते हैं, धन-सम्पत्ति के भण्डारण और रक्षण में ही जिन्दगी खपा देते हैं, हराम की कमाई, खान-पान और मलीन वृत्तियों से औरों को उल्लू बनाया करते हैं, सरकारी और गैर सरकारी तथा समाज के धन पर डाका डालते हैं, वे सारे के सारे अगले जनम में साँप ही बनते हैं।
आज हमारे यहाँ हर क्षेत्र में किसम-किसम के साँपों का बाहुल्य है। हर किस्म के साँप हमें देखने और सुनने को मिल ही जाते हैं। इन साँपों को यों तो विषैले और विषहीन दो ही मुख्य श्रेणियों में रखा जाता है लेकिन साँपों की लंबाई, रंग-रूप और आकार-प्रकार तथा जात-जात की खासियतों को देखा जाए तो सैकड़ों प्रजातियों के साँप उपलब्ध हैं।
हमारे अपने इलाकों में तो लगता है जैसे साँपों को स्वर्ग सा आनंद आता है, इसलिए खूब सारी संख्या में साँप विद्यमान हैं। इन साँपों के बारे में जो पौराणिक और लोकप्रचलित मिथक हम सुनते आए हैं उसके अनुसार हर जीवात्मा का साँप योनी प्राप्त करने के पीछे कोई न कोई कारण जरूर होता है।
लेकिन इतना अवश्य है कि सदियों से यही सुना जा रहा है कि जो आसक्ति रखता है, धन पर कुण्डली मारकर बैठा रहता है, वह आने वाले जनम में साँप ही बनता है। जो-जो साँप हमें नज़र आते हैं उनके बारे में भी यही साफ मानना चाहिए कि वे पूर्व जन्म के वे इंसान रहे हैं जो धन-दौलत और जमीन को अपने कब्जे में रखते हुए ही मौत के मुँह में चले गए।
तभी तो आज भी जहाँ कहीं गड़ा हुआ धन होता है, वहाँ विशालकाय भुजंग उसकी रक्षा में दिन-रात लगे रहते हैं और किसी की हिम्मत नहीं पड़ती कि उस धन को खोद कर निकाल ले। सर्प हमेशा से कब्जे का प्रतीक रहा है और तभी वह स्वाभाविक अवस्था में कुण्डली मारकर ही बैठा रहता है।
जीवन और सृष्टि के क्रम से अनजान होने के कारण भले ही हम सर्प योनी प्राप्ति के बुनियादी तत्वों को समझ पाने में विफल रहे हों, मगर इतना तो सच है कि सर्प और धन का सीधा संबंध रहा है चाहे वह किसी भी जन्म से संबंधित क्यों न हो। जिन लोगों की धन में आसक्ति होती है वे लोग दीर्घजीवी होने की कामना करते हैं ताकि लम्बे समय तक जमाने भर में उन्हें धनाढ्य व संसाधन सम्पन्न होने की लोक प्रतिष्ठा प्राप्त होती रहे।
यही स्थिति धनसंग्रह करने वाले लोगों की मृत्यु के बाद भी होती है जहाँ भूमिगत द्रव्य की रक्षा करने वाले सर्प की आयु दहाई में न होकर सैकड़ा और उससे भी अधिक हुआ करती है। धनसंग्रह के लोभियों और सर्प में कई सारी समानताएँ हुआ करती हैं। धन जमा करने को ही जिंदगी मान बैठने वाले लोग सभी जगह खुद ही खुद को देखना चाहते हैं, इन लोगों को यह तनिक भी नहीं सुहाता कि कोई और धेला भी उनसे पा ले।
यही स्थिति सर्प की होती है। जहाँ कहीं कोई सर्प होता है वह वहाँ पर किसी और को कभी बर्दाश्त नहीं करता। फुफकारते हुए भगा ही देता है। लोग भय के मारे उस स्थान को ही त्याग दिया करते हैं। लोभी लालची की निगाह हमेशा अपने धन की रक्षा पर होती है, साँप भी यही काम करता है, वहीं पर अधिकतर समय कुण्डली मारकर बैठा रहेगा जहां धन गड़ा हुआ होता है।
आज के साँपों और उनकी दीर्घकालीन जड़त्व भरी जिंदगी से हम भले ही कोई सबक नहीं ले पाएं लेकिन आज हममें से काफी लोग जो कुछ कर रहे हैं उससे यह कल्पना तो की ही जा सकती है कि आने वाले समय में साँपों की तादाद और किस्मों में कितनी अधिक बढ़ोतरी होने वाली है। हमने उन सारे रास्तों को खोल दिया है जिनसे हमें सर्पयोनी प्राप्त होने की भरपूर उम्मीदें जगी हुई हैं।
दूसरों का धन या जमीन हड़पनी हो, रिश्वतखोरी, भ्रष्टाचार और शोषण, अतिक्रमण करने और कराने की बात हो, परायी चीजों पर बुरी नज़र हो, जिंदगी भर संग्रह ही संग्रह करते रहना हो, बैंक बैलेंस या गृह भण्डार बढ़ाते रहना हो, हराम की कमाई और खान-पान में रस आने लगा हो या फिर कोई सी बात, हर मामले में हम जमा ही जमा करने के आदी हो गए हैं।
हममें से कितने ही लोग ऎसे हैं जिनके पास अकूत संपदा होते हुए भी न अच्छा खा-पी सकते हैं, न पहन-ओढ़ सकते हैं, न दिखा सकते हैं, ऎसे में इस संपदा का क्या मूल्य, जो हमारे किसी काम न आए, और हम इस भण्डार को भरने के लिए दुनिया भर की सारी बुराइयों और आपराधिक वृत्तियों को आजमाते रहें।
कई सम्पत्तिशाली लोगों के रहन-सहन और खान-पान तथा शक्ल-सूरत को देख लगता है कि इनसे तो घटिया किस्म के भिखारी भी अच्छे रहते हैं। नब्बे फीसदी मामलों में देखा जाता है कि धन का उपयोग-उपभोग करो या फिर संग्रह। कई धनसंग्रही लोग अपने ऊपर एक पैसा भी खर्च नहीं कर पाते, उनके पूरे पैसों पर पराये लोग ही मौज उड़ाते हैं।
इन्हीं मौज उड़ाने वालों के लिए कहा गया है - भाग्यशालियों के लिए भूत कमाते हैं। कुछेक ही ऎसे लोग होते हैं जो अपने पैसों का आनंद ले पाते हैं। हममें से कई सारे लोग आज जमीन-जायदाद के लिए जो कुछ कर रहे हैं उससे तो यही लगता है कि हम सभी लोग दुनिया में किसी न किसी कोने में आने वाले जन्म में साँपों की शक्ल में ही नज़र आएंगे। अपनी-अपनी ऎषणाओं और आसक्ति के ग्राफ को देखते हुए आकार-प्रकार और प्रजातियों में थोड़ा-बहुत अंतर जरूर हो सकता है। ऎसे सभी भावी सर्पों को हार्दिक शुभकामनाएँ ....।
---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
dr.deepakaacharya@gmail.com
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