विशेष : “जातिवादी ज़हर से तडपता जनतंत्र ” - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2014

विशेष : “जातिवादी ज़हर से तडपता जनतंत्र ”

भारतीय जनतंत्र आज भी जातिवाद के दंश से ग्रसित है.गाहे बगाहे हम और हमारा समाज इस दंश से छुटकारा पाने का प्रयास भी करती है किन्तु चुनाव आते ही हम उस नैतिकता के लवादा को दूर फेक कर फिर जातिवाद के हाथों की कठपुतली बन लोकतंत्र के माथे पर कलंक का टिका लगा देते हैं.जातिवाद न कल समाजोनुकुल था ना आज है और ना आगे इसका भविष्य है.यह व्यवस्था तो परकीय शासक और व्यक्तिगत हित साधने वालो के समागम से उत्पन्न हिन्दू समाज का नाजायज़ संतान ही है.मार्क्स-मुल्ला-मैकाले वादियो के हिंदुत्व के प्रति कलुषित मानसिकता की घृणित उपज जातिवाद है जिसे अंग्रेजों की दासता से मुक्ति के बाद भी नेहरूवादी मानसिकता के तथाकथित लोकतंत्रवादियो ने देश की संविधान के मूल भावना के बिपरीत इसे बनाए रखा है .

जनतंत्र के महान पर्व चुनाव में भी इस जातिवाद का प्रभाव रहा है.नेहरूवादी सोच को आगे ले जाने वाली राजनितिक दल कांग्रेस को वर्ष १९६७ के चुनाव में अगड़े जाति का ४१.१ फीसदी मत; अनुसूचित जाति का ४९.४ फीसदी मत;अनुसूचित जनजाति का ४६.२ फीसदी मत मिला था.यह आंकडा १९९८ के आम चुनाव में बदलकर अगड़े जाति का २८.१ फीसदी मत; अनुसूचित जाति का २९.६ फीसदी मत; अनुसूचित जनजाति का ४१.९ फीसदी मत कांग्रेस को मिला.(स्रोत-सीएसडीएस  डाटा-१९९९ )१९६७ से १९९८ के दौरान जो सामजिक बदलाव आया वह जातिवाद का ही छद्म रूप था और मतों का यह ध्रुविकरण क्षेत्रीय दलों को मिला था. 

यदि २००४ और २००९ के आम चुनाव पर ध्यान देते है है तो कांग्रेस पार्टी को २००४ में १४५ सांसद और कुल २६.५३ फीसदी मत वहीँ २००९ के आम चुनाव में कुल २०६ सांसद के साथ २८.५२ फीसदी मत मिले इसप्रकार कांग्रेस को जहां ६१ सांसदों की बढ़त मिली थी वहीँ इसके मत प्रतिशत में १.९९ फीसदी की बढ़ोतरी भी हुई थी जबकि २००४ के ही आम चुनाव में भाजपा को कुल १३८ सांसद और २२.१६ फीसदी मत मिला और २००९ के आम चुनाव में भाजपा को कुल ११६ सांसद के साथ १८.८४  फीसदी मत मिले इसप्रकार भाजपा  को २२ सांसदों का घाटा हुआ वहीँ इसके मत प्रतिशत में भी ३.३२ फीसदी की कमी हुई थी .

किन्तु बिहार और झारखंड के परिपेक्ष्य में देंखे तो कांग्रेस पार्टी को बिहार में २००४ में ३ सांसद और कुल ४.४९ फीसदी मत वहीँ २००९ के आम चुनाव में कुल २ सांसद के साथ १०.९६ फीसदी मत मिले इसप्रकार कांग्रेस को जहां १ सांसद का घाटा हुआ वहीँ इसके मत प्रतिशत में ६.४३ फीसदी की बढ़ोतरी भी हुई थी जबकि २००४ के ही आम चुनाव में बिहार में भाजपा को कुल ५ सांसद और १४.५७ फीसदी मत मिला और २००९ के आम चुनाव में बिहार में भाजपा को कुल १२ सांसद के साथ १३.९३ फीसदी ही मत मिले इसप्रकार भाजपा  को ७ सांसदों का फैयदा हुआ वहीँ इसके मत प्रतिशत में ०.६४ फीसदी की कमी हुई थी.

अब यदि झारखंड पर नज़र डालतें हैं तो कांग्रेस पार्टी को झारखण्ड में २००४ में ६ सांसद और कुल २१.४४ फीसदी मत मिला वहीँ २००९ के आम चुनाव में कुल १ सांसद के साथ १५.०२ फीसदी मत मिले इसप्रकार कांग्रेस को जहां ५ सांसद का घाटा हुआ वहीँ इसके मत प्रतिशत में ५.४२ फीसदी का घाटा भी हुआ जबकि २००४ के ही आम चुनाव में झारखण्ड में भाजपा को कुल १ सांसद और ३३.०१ फीसदी मत मिला और २००९ के आम चुनाव में भाजपा को कुल ८ सांसद के साथ २७.५३ फीसदी ही मत मिले इसप्रकार भाजपा  को ७ सांसदों का फैयदा हुआ वहीँ इसके मत प्रतिशत में ५,४८ फीसदी की कमी हुई थी. वर्ष २००९ के हुए आम चुनाव में विभिन्न वर्ग के लोगो ने अपनी जो वोट डाली वह भी लोकतंत्र में जातिवाद का छाया ही रहा है.२००९ के आम चुनाव का एक नज़र-
              
कांग्रेस- कांग्रेस सहयोगी- भाजपा- भाजपा सहयोगी –वामपंथ- वसपा -अन्य 

अगड़ी जाति-  २५.५ ६.९ ३७.९ ५.६ ९.० ३.१ १२.१ 
किसान वर्ग - २५.१   १३.४ १४.९  ८.८ २.८ २.१ ३२.९ 
पिछड़ा वर्ग - २३.२ ७.२ २१.६ ४.९ २.० ३.० ३८.१ 
अति पिछड़ा – २७.१ ४.० २२.८ ७.५ ९.२ ३.६ २५.९ 
एस सी - २७.१ ७.० ११.९ २.९ १०.९ २१.० १९.३ 
एस टी- ३८.९ ८.७ २३.१ २.४ ६.९ १.३ १८.७ 
मुस्लिम - ३७.२ १०.२ ३.७ १.९ १२.० ५.४ २९.५ 
अन्य- ३२.६ ८.४ १२.७ ११.१ ९.१ ५.४ २०.६ .                                                       
(स्रोत-सीएसडीएस  डाटा-१९९९ ) उपरोक्त आंकडा में अन्य जो है वही अब दशा और दिशा लोकतंत्र का तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निवाह रहे है और ए छोटे-छोटे क्षेत्रीय दल सिमित सांसदों के बल पर लोकतंत्र के असीमित अधिकारों का दोहन कर देश की विकास को अवरुद्ध करते हैं जो लोकतंत्र के लिए अशुभ है .

इसी क्रम में कभी बिहार में जातिवादी राजनीती के उत्प्रेरक रहे किन्तु आजकल पार्टी तो छोडिये अपनी अस्तित्व को बचाने की ज़दोजिहाद में लगे हैं. अपने कार्यकाल में बोकारो स्टील प्लांट में इनके किये कारनामे के लिए सीवीआई आजकल उनके पीछे लगी है वैसे जेवी पार्टी के साथ बिलय के बजाय गठ्वंधन करना किसी दृष्टिकोण में हितकर नही हो सकता है.कभी बिहार की धरती पर प्रचंड बहुमत पाने बाले को उनकी अति जातिवादी दृष्टिकोण ने खुद उन्ही के जाति के जागरूक लोगों ने सिरे से उन्हें खारिज कर उनकी लोकसभा सिट भी छीन ली थी किन्तु दुर्भाग्य है की जनता के नकारने के बाद भी इन्हें राजनीति के पिछले दरवाजे से कांग्रेस ने संसद में विराजमान करवाया .२००९ के आम चुनाव में फोर्थ फ्रंट के रूप परोक्ष रूप से कांग्रेस के सुरक्षा कवच के रूप में मैदान में उतरी इनकी जेवी पार्टी को १८९२४२० मत के साथ महज ०.४५ फीसदी मत मिला इनके ४ सांसद जिनमे एक स्वम् भी थे को जनता ने नकार दिया और ०.२६ फीसदी मत का घाटा भी दिया.

कभी आतंकी ओसामा के हमशक्ल को अपने साथ चुनाव अभियान में ले जाने बाला ये शख्स आज भी कांग्रेस के रहमोकरम पर राज्यसभा में है ऐसे में बिहार के ८ सीटे देना आत्मघाती कदम है . इस जेवी पार्टी के लिए ये चुनाव करो या मरो की तर्ज पर है और इस चुनाव में इन्होने अपने पिटे फ़िल्मी बेटे को आगे करने की मंसूबा पाल रखा है.परिवार बाद से त्रस्त लोकतंत्र में एक और नासूर ? बिहार में २०१३ में जहां २३ फीसदी और अब यह आंकड़ा उछलकर ३९ फीसदी हो गया है  लोग उस व्यक्ति को प्रधान मंत्री पद पर देखना चाहते है जिसने “एक भारत श्रेष्ठ भारत” का सपना दिया है. सत्ता के इर्द गिर्द सदा घुमने बाला यह दल अब उस नाव पर सबार होना चाहता है.राजनितिक कूटनीति से चलती है .यदि ये दल विलय के बजाय सीटों के तालमेल की शतरंजी चाल में सफल होती है तो बिहार की राजनीति में हाशिये पर पड़ा इस दल के लिए यह संजीवनी बूंटी से कम नही होगी. हम जिस भारत की कल्पना करतें वह भारत जातीवादी सडांध से मुक्त हो ताकि लोकतंत्र का बटवृक्ष और सुदृढ़ व स्थाई हो सके. इस वर्ष के चुनाव में हम अपने मतों का प्रयोग कर ऐसी लोकतंत्र के बीज को बोयें जिसके प्रसस्फुटन से अगला संसद भारत के वैभवशाली इतिहास को दुहराए,भारतीय जनतंत्र जो जातिवादी ज़हर से अपने जीवन के लिए जूझ रही है हम अपने मत रूपी दवा से ही ठीक कर सकते हैं .






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---संजय कुमार आजाद---
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