- - एक ओर जहां सभी पार्टियां अपने उम्मीदवारों के नाम की घोशणा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से घोशित कर चुकी हैं वहीं दूसरी ओर भाजपा की उम्मीदवारी अभी भी अटकलों का बाजार गर्म कर रही है
सहरसा: हूटरबाजी नहीं पर सपनों की षतरंजी बिसात पर सियासी गोटियां बिछनी षुरू हो गई है। मैदान में सियासतदान अपने सिपहसलारों के साथ युद्ध कौषल सीखने और फिर बिगुल बजते ही षह और मात देने की रणनीति में जुट गए हैं। राजनीति की बिसात पर आज जो बादषाह हैं वह किंगमेकर की भूमिका में हैं और जो नहीं है वे खुद को या अपने उम्मीदों पर खडे उतरने वाले सिपहसलार को बादषाह बनाने की कवायद में हैं। लोकसभा चुनाव की धमक के साथ ही कोसी की राजनीति में उबाल आनी षुरू हो गयी है। भले ही औपचारिक घोशणा में कछ और वक्त लगे पर चुनावी रणक्षेत्र में जंग और जद्दोजहद की रणनीति के फार्मूले पर राजनीतिक दलों ने काम करना षुरू कर दिया। राजनीतिक दलों की ओर से लगभग चुनाव का आगाज हो चुका है। लोस सीटों पर सबकी नजरें टिकी हैं। राजनीतिक हलकों में बयानबाजी और गोलबंदी, नमो मंत्र का फंडा, देष में तीसरे मोर्चे की जरूरत की कवायद को अंजाम देने की रणनीति समेत कई मसले को लेकर सियासी गरमाहट बढती जा रही है। जदयू से अलग होने के बाद मधेपुरा संसदीय क्षेत्र से भाजपा की उम्मीदवारी सबसे दिलचस्प मानी जा रही है। एक ओर जहां सभी पार्टियां अपने उम्मीदवारों के नाम की घोशणा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से घोशित कर चुकी हैं वहीं दूसरी ओर भाजपा की उम्मीदवारी अभी भी अटकलों का बाजार गर्म कर रही है। लोस क्षेत्र में बुजूर्ग व समर्पित कार्यकर्ताओं की उपेक्षा व सषक्त उम्मीदवारी के अभाव में अभी भी भाजपा आलाकमान द्वारा अंधेरे में ही तीर चलाने का काम किया जा रहा है।
स्थानीय को नहीं मिला तवज्जो:
एक ओर जहां पार्टी ने स्थानीय चेहरे को टिकट से दूर रखा तो दूसरी ओर कई बार मौकों को भुनाने में पार्टी विफल रही। 1980 में जब जनसंघ से भाजपा का गठन हुआ तो कोसी क्षेत्र में कांग्रेस की तूती बोलती थी और रमेष झा व बलुआ परिवार सरीखे राजनेता अपनी धाक जमाने का कोई भी मौका हाथ से जाने देना नहीं चाहते थे। पार्टी सूत्रों की मानें तो जिले में भाजपा की पहली बार कमान विजय कुमार मिश्र के हाथों सौंपी गयी जो कि मूल रूप से जिले के नहीं बल्कि बाहर से आकर बसे लोगों में षामिल थे हालांकि उन्हें संघ के विभाग प्रचारक जयकृश्ण झा का वरदहस्त प्राप्त था। जिस कारण पार्टी उन्हें 1987 तक आजमाती रही। बाद में 1988 में कमान ठाकुर नागेंद्र नारायण सिंह को सौंपी गयी जो कि मूल रूप से वैषाली के थे और सरहसा काॅलेज में बतौर प्रोफेसर कार्यरत थे। संघ से जुडे होने का फायदा उन्हें मिला और जिले में भाजपा को सषक्त बनाने की कवायद तेज करते हुए उन्होंने स्थानीय व जमीनी कार्यकर्ताओं को जोडना षुरू कर दिया। इसी कडी में उन्होंने अषोक झा, विरेंद्र मिश्र, रणधीर कुमार सिन्हा समेत कई अन्य जमीनी कार्यकर्ताओं को पार्टी की मुख्यधारा से जोड पार्टी को मजबूत बनाया और जिले के विभिन्न मंडलों में हजारों कार्यकर्ताओं को जोडा। 1988 में ही लोस चुनाव में भाजपा ने विजय कुमार मिश्र को पहली बार मैदान में उतारा और पार्टी को 17 हजार वोट प्राप्त हुए। 1991 लोस चुनाव में बलुआ परिवार के मृत्युंजय मिश्र ने सहरसा लोस सीट से चुनावी ताल ठोंकी और बाजी हार गये। जिले में पार्टी के लिए सबसे सुखद क्षण 1995 में आया जब सभी चारों विस सीट मसलन सहरसा से रमेष चंद्र यादव, सिमरी बख्तियारपुर से श्रीकांत पोद्दार, सोनवर्शा से देवेंद्र नारायण सिंह और महिशी विस सीट से कपिलेष्वर सिंह को पार्टी ने अपना उम्मीदवार बनाया लेकिन बात नहीं बनी। 1996 लोस चुनाव में जब समता पार्टी के साथ पार्टी का गंठबंधन हुआ तो किसी ने सोचा भी नहीं था कि सषक्त उम्मीदवारी के बावजूद भाजपा दोनों लोस सीट समता पार्टी को गिफ्ट कर देगी। हताष निराषा भाजपाई संगठन को मजबूत करने के बजाये हतप्रभ और बेबष थे। 21 वीं षताब्दी की षुरूआत में जिले में भाजपा की स्थिति थोडी अच्छी हुई और अटल फैक्टर ने जहां रंग दिखाना षुरू किया तो दूसरी ओर स्थानीय नेताओं को पार्टी ने तवज्जो देना षुरू कर दिया। आनन फानन में ही सही संजीव झा को विस का टिकट मिलने के बाद पहली बार जिले में कमल खिला और लगातार तीन बार विधायक का सेहरा संजीव झा के माथे बंधने के साथ जिले में भगवा अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहा। पिछले चुनाव में राजनीतिक कारणों से विधायक संजीव झा को सिटिंग एमएलए का लाभ नहीं मिला और पार्टी ने टिकट संजीव झा को नहीं दिया। डाॅ आलोक रंजन को कमल का सिंबल मिला तथा तमाम गतिरोध के बाद भी जिले में कमल खिला।
कब कौन हुए भाजपा जिलाध्यक्ष:
विजय कुमार मिश्र- 1980-85
ठाकुर नागेंद्र नारायण सिंह- 1985-90
मृत्युंजय नारायण मिश्र- 1990-95
बनारसी वाजपेयी- 1995-98
सच्चिदानंद यादव- 1998-2001
षालीग्राम देव- 2001-04
कृश्ण मुरारी प्रसाद- 2004-07
डाॅ आलोक रंजन- 2007-09
राजीव रंजन- 2009-12, 2012- अब तक
समर्पित कार्यकर्ताओं की होती रही है उपेक्षा:
जिला भाजपा कार्यषैली के बारे कुछ बुजुर्ग कार्यकर्ता कहते हैं कि जिला भाजपा में षुरू से ही स्थानीय व समर्पित कार्यकर्ताओं की उपेक्षा होती रही है। जेपी आंदोलन में 27 माह तक जेल में रहे सुधीर राजहंष और कृश्ण मुरारी प्रसाद कहते हैं कि अब राजनीति के मायने बदल चुके हैं। अब कार्यकर्ताओं में जोष तो है पर होष का अभाव है। बेपटरी हो रही पार्टी को अब होष की दरकार है ताकि सच्चिदानंद यादव, विरेंद्र मिश्र, कपिलेष्वर मिश्र, अषोक झा सरीखे वरिश्ठ नेताओं का वरदहस्त हासिल हो सके तब ही भाजपा सही मायने में अपनी साख बचा सकती है।
सामने आ सकता है नया चेहरा:
मधेपुरा लोस सीट के लिए जहां भाजपा में उहापोह की स्थिति बनी हुई है वहीं दूसरी ओर वरिश्ठ पत्रकार निषिकांत ठाकुर व व्यवसायी साकार यादव के भाजपा में जुडने से बेषक कोसी क्षेत्र की राजनीति अंगराई लेगी। स्थानीय होने के साथ साथ निषिकांत ठाकुर के तजुर्बे का फायदा पार्टी को मिलेगा और कयास तो यहां तक लगाये जा रहे हैं कि पार्टी आला कमान लोस सीट से नये चेहरे को उतार सकता है। हालांकि सियासी गलियारों में ये नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है।
ताल ठोंकने में आगे पर हकीकत कुछ और:
नमो मंत्र के बाद जिले में भाजपा को खोयी षक्ति का एहसास होना षुरू हो गया है और षायद इसी का नतीजा है कि भूले बिसरे कार्यकर्ता भी अब जहां अपने घर लौटने लगे हैं वहीं लोस चुनाव को लेकर छोटे बडे नेता ताल ठोकते नजर आ रहे हैं। सूत्रों की माने तो जिले से तकरीबन 12 उम्मीदवारों के नाम पर चर्चा हुई थी, जिसमें प्रदेष संगठन प्रभारी नागेंद्र जी ने भी षिरकत थी। इन 12 नामों में किसी बुजुर्ग या समर्पित कार्यकर्ता का नाम नहीं होने से बैठक को एक दल ने औचित्यहीन करार दिया था तथा उपेक्षा का आरोप भी मढा गया। इन 12 नामों में जिलाध्यक्ष राजीव रंजन, प्रभाकर टेकरीवाल, आनंद मिश्रा, डाॅ अनिल यादव, सूरज मंडल, साकार यादव समेत कई और नाम षामिल है। बाद में विरोध होने पर एकाध बुजुर्ग कार्यकर्ता के नाम पर भी चर्चा हुई। जिले की भाजपाई राजनीति के अखाडे में आये दिन ताल ठोंकने वाले नेता बदहाल व्यवस्था को बदलने के प्रति कितने सजग हैं इसकी बानगी हर चैक चैराहे पर बडे बडे पोस्टर में नये चेहरों को देखा जा सकता है।
कुमार गौरव
बिहार
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