इन्टरनेट की दुनिया अभी हाल ही में फेसबुक और व्हाट्सएप्प के मिलन से गुलज़ार था इसलिए नहीं की व्हाट्सएप्प के फीचर ऐसे थे,इसलिए की इस मोबाइल मेसेजिंग अप्लिकेसन व्हाट्सएप्प को इन्टरनेट की दुनिया के दो बादशाह एक गूगल और दूसरा फेसबुक अपने पक्ष में करने को उताहुल थे किन्तु महज़ ५५ कर्मचारियो के बलबूते पर व्हाट्सएप्प का जलवा १९ अरव डॉलर की भारी भरकम रकम से फेसबुक के आगोश में सदा सर्वदा के लिए विलीन हुआ और गूगल मुह देखता रह गया .कुछ का मानना है की यह खरीद व्यवसाय की विस्तारवादी नीति है .हमें स्मरण रखना चाहिए की बाज़ार में इस तरह के क्रय-विक्रय चलता रहता है जो बाज़ार की तरलता को बनाए रखता है.बाज़ार रिश्तों की ज़मापुंजी से नहीं उपभोक्ता के आवश्यकताओ से चलती है. एक सफल व्यवसायी के गुण है समय की नजाकत को अपने पाले में करने का और यही नजाकत फेसबुक ने समझा.
इन्टरनेट बाज़ार की दुनिया में गूगल,फेसबुक,याहु ..... की तरह ही राजनितिक बाज़ार में भाजपा,कांग्रेस,...के रूप में अनेक साईट उपलब्ध है जो छोटे-छोटे क्षेत्रीय दल रूपी एप्प्स को खरीदकर अपने वोटरों को ज्यादा फीचर देने की होड़ में लगे हैं. व्हाट्सएप्प की एक खूबी थी की सन्देश पहुचते ही वह सन्देश सर्वर से मिट जाता था और उसी तरह आज पाला बदलते ही ये नेता सेकुलर से साम्प्रदायिक,समाजवादी से पूंजीवादी हो जाते है और उनका पूर्व सन्देश मिट जाता है ? इस एप्प्स के खरीद में कुछ दल फेसबुक की तरह कामयाव हो रहे तो कुछ गूगल की तरह औंधे मूंह भी गिर रहे हैं . भारतीय लोकतंत्र में आज कल इसी नजाकत पर हर दल वको ध्यानम में लगा है और राजीनीति के पंडित काफी सक्रियता से राजनितिक बाज़ार की तरलता पर अपनी टिप्पणी दे आम नागरिको में राजनीति के प्रति उत्सुकता को बनाए रखा है?
जैसे-जैसे लोकसभा-२०१४ चुनाव नजदीक आ रहा वैसे-वैसे सभी राजनितिक दलों में बेचैनी बढती जा रही है.खासकर नेहरूवादी सोच से संक्रमित दल अपने कुनवों को एक रखने में अपनी उर्जा खपा रहें हैं. ये दल रात सोते हैं और सबेरे जब जगते तो इनके दडबे खाली मिलने का सिलसिला बदस्तूर ज़ारी है .राजीनीति बाज़ार का सेंसेक्क्स आज कल काफी उतार चढाव पर है .यह कव्जा सिर्फ देशी बाजारों में ही नहीं बल्कि विदेशी बाजारों के सेंसेक्स को भी अपने कव्ज़े में कर रखा है ?आज हालत ये बन गये की विदेशी बाज़ार के सेंसेक्स पर लिखा होता है – हम विस्तारवादी नही हैं.
राजनीति में कोई किसी का स्थाई मित्र और कोई किसी का स्थाई दुश्मन नही होता है.होना भी नही चाहिए.लोकतंत्र में मतभेद हो सकता है किन्तु मनभेद की कतई गुन्जाईस नही होनी चाहिए.लोकतंत्र बिभिन्न मतों के साझी विचार का गुलदस्ता है जो विचारों की पवित्रता के सुगंध से सरोवार रहती है, किन्तु विचारों की दरिद्रता या बेपेंदी का लोटा की तरह विचारों का होना लोकतंत्र के लिए घातक है जो शनैःशनैः लोकतंत्र को लीलता रहता और अंतत; विचार अतिवादी प्रवृति को जन्म दे समाज को तहस नहस कर देता है . हम जैसे विचारों का आत्मसात करते हैं वही झलक हमारे व्यक्तित्व या संस्कार या समाज में दिखता है.
भारतीय राजनीति की बिडम्बना है की मुग़लों और अंग्रेजों के बाद नेहरूवादी संक्रमण से संक्रमित हमारा राष्ट्रीय चरित्र तार-तार होता गया है.राष्ट्रीय स्मिता, राष्ट्रीय चरित्र,और राष्ट्रीय वैभव की बात करना आज इस देश में साम्प्रादायिकता का विशेषण बन चुका है.नेहरूवादी सोच का इंद्रजाल भारतीय राजनीति पर इस कदर व्याप्त है की आज तक भारतीय इतिहास के सत्य से हमारे युवा अनभिज्ञ हैं.हमारे देश की शिक्षा प्रणाली युवाओं को “पिटता-भारत;घिसता-भारत, सिमटता-भारत; बिखरता-भारत” का ही दर्शन करवाया है जिसके परिणामस्वरूप वैभवशाली भारत की अतीत के वजाय ये युवा मायावी चकाचौंध की मृग-तृष्णा रूपी पश्चमी देशों का नक़ल उतार अपने को स्वाभिमान शून्य बना रखा है .आज ये युवा नेहरूवादी विकृति से पीड़ित नवीनता के सृजन के बजाय अपने को मलिनता में बदलते जा रहे हैं .
यह नहीं की हमारे देश के बुधिजीविओ या राजनीतिज्ञों ने नेहरूवादी इंद्रजाल से अपने को या समाज को छुड़ाने का प्रयास नही किया है? यह जागृति समय-समय पर होता रहा है जिसकी गति धीमी थी किन्तु अब इस नेहरूवादी अपसंस्कृति से अपना समाज,शासन और अपना देश भी मुक्त होगा जिसका आगाज़ भी हो चुका है और वर्ष २०१४ से भारत माता परम वैभव प्राप्ति की और अग्रसर होगी अब इसमें संदेह नही है . नेहरूवादी सोच की विकृति ने इस देश को जाती,पंथ,मत मज़हव में सदैव बांट कर अपना उल्लू सीधा करता रहा ,कभी इस सोच ने “एक-नागरिक;एक –अधिकार” को पनपने नही दिया किन्तु अब वह दिन दूर नही जब इस दुश्वृति से भारत मुक्त होगा ? विश्व में लोकतंत्र की जननी भारत अब स्वस्थ लोकतंत्र की आभा से विश्व को आलोकित करेगी , लोकतंत्र के महान पर्व को चुनाव में अपना मत देकर मनाना हम नहीं भूलें, चाहे हम किसी भी हालत में हों हर हाल में अपना मत का प्रयोग करेंगे इस शपथ के साथ लोकतंत्र का बरन करें . ध्यान दे समाज तब आतंकित या खंडित होता है जब समाज अपनी रक्षा के लिए दूसरों पर आश्रित होता है और जब सात्विक शक्तियां सुसुप्तावस्था में चली ज़ाती है है तब नेहरूवादी सोच जैसी आसुरी शक्तियां समाज को आतंकित या खंडित करने का दुश्चक्र चलाती है .इस चुनाव में हम अपना वोट हर हाल में इसलिए डालेंगे की अपना भारत भय-भूख-रोग-दुःख-भ्रष्टाचार-पापाचार-आतंकवाद-क्षेत्रवाद,नक्सलवाद भाषावाद और भौगोलिक अतिक्रमण मुक्त भारत बनाना है . हम इस बार का मत अपने लिए अपने आने बाली पीढियों के स्वर्णिम भविष्य के लिए करेगे और ऐसा राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण करेंगे जो अपना हो अपने जैसा हो अपनों के बीच का हो हमारे सुख दुःख में भी भारत के विकास का दृढ निश्चयी परिपक्व और अग्रसोची राष्ट्र नायक बन कर भारत को एकबार फिर विश्व गुरु बनाने का फौलादी इरादा रखता हो .
भारत जिसकी आत्मा हिंदुत्व में निहित है और यदि हिंदुत्व को भारत से निकाल दिया जाय तो यह एक लाश मात्र ही होगा इस बात से भारत का हर स्वाभिमानी नागरिक सहमत है. कल तक जो नेहरूवादी इंद्रजाल से भ्रमित हिंदुत्व को पानी पी-पी कर कोसते आज वे उस अपसंस्कृति से मुक्त हो हिंदुत्व को गले लगा राष्ट्रीय चरित्र को अपना रहे हैं.अपने पूर्वजों के अमर कृतित्व,उनके अमर शौर्यता और पराक्रम से अपने आपको गौरवान्वित हो इस नेहरूवादी इंद्रजाल से मुक्त होकर-“एक भारत-श्रेष्ठ भारत, स्वस्थ भारत-शिक्षित भारत, सुन्दर भारत-समुन्नत भारत, सशक्त-भारत समर्थ-भारत” के निर्माण में कूद पड़े हैं . हिंदुत्व की नीव पर हम ही हम ऐसे भारत की कल्पना को साकार कर सकते है हम वसुधैव कुटुम्बकम में विश्वास रखते है.कल तक जो शक्तियां भारत को मुट्टी में रखने को आतुर था अब वह जनता के राष्ट्रीय जागरण को देख कर आज उस राष्ट्रीय चरित्र को नमन कर हिंदुत्व के प्रति समर्पित हो रहा है .
---संजय कुमार आजाद---
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