सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या की साजिश रचने के तीन दोषियों की मौत की सजा उम्रकैद में बदल दी। न्यायालय ने कहा कि उनकी दया याचिका पर फैसले के 11 वर्षो से लंबित रहने का उन पर अमानवीय असर पड़ा है। सर्वोच्च न्यायालय की प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी.सतशिवम, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति शिव कीर्ति सिंह की पीठ ने कहा, "हम उनकी मौत की सजा को उम्रकैद में बदल रहे हैं। उम्रकैद का मतलब यह है कि उन्हें पूरी जिदगी जेल में बिताना होगा। सजा में किसी प्रकार की छूट सक्षम सरकार दे सकती है।"
तीन साजिशकर्ताओं वी. श्रीहरण ऊर्फ मुरुगन, ए.जी. पेरारिवलन ऊर्फ अरिवु और टी.सुथेंद्रराजा ऊर्फ संथन ने उनकी दया याचिका पर फैसले के लगभग 11 सालों से लंबित पड़े रहने की वजह से उनके मृत्युदंड को उम्रकैद में तब्दील करने की मांग की थी। तीनों तमिलनाडु की वेल्लोर जेल में बंद हैं। जहां पेरारिवलन भारतीय नागरिक है, वहीं दो अन्य श्रीलंकाई तमिल हैं। श्रीहरण लिट्टे की गुप्तचर शाखा का एक सदस्य रह चुका है। लिट्टे के नेता वी. प्रभाकरन ने राजीव गांधी की हत्या का आदेश दिया था।
चेन्नई के समीप 21 मई 1991 को तमिल टाइगर की एक महिला आत्मघाती ने राजीव गांधी की हत्या बम विस्फोट से कर दी थी। उनके हत्यारों को टाडा अदालत ने जनवरी 1998 में दोषी करार दिया था और मौत की सजा सुनाई थी, जिस पर 11 मई 1999 को सर्वोच्च न्यायालय ने भी अपनी मुहर लगाई थी। न्यायालय ने इस दौरान केंद्र सरकार की तरफ से उपस्थित हुए महान्यायवादी जी.ई.वाहनवती की दलील को खारिज कर दिया।
न्यायालय ने कहा कि राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका पर फैसला करने को लेकर कोई अवधि तय नहीं होती, लेकिन यह सरकार का कर्तव्य है कि वह इस पर जल्द फैसला करे।
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