पूरे मुल्क में सुरीनसर झील को एक मषहूर पर्यटक स्थल के तौर पर जाना जाता है। यह झील जम्मू से तकरीबन 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और चारों ओर से घनी आबादी से घिरी हुई है। जम्मू आने वाले लोग सुरीनसर झील का दीदार करे बगैर यहां से नहीं जाते हैं। पंचायत सुरीनसर में 10 गांव हैं, जिसकी कुल आबादी तकरीबन 15000 के आस पास है। एक तरफ जहां यह इलाका सुरीनसर झील की वजह से कुदरत के अनमोल हुस्न से मालामाल हैं, वहीं दूसरी ओर यहां मूलभूत सुविधाओं का बड़ा अभाव है। इलाके में चिकित्सा सुविधा की हालत किस कदर खस्ता है, इस बात का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इलाके में महज़ एक आयुर्वेदिक डिस्पेंसरी है। ऐसे में अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि महज़ एक आयुर्वेदिक डिस्पेंसरी से लोगों का काम कैसे चलता होगा? केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री का ताल्लुक इसी राज्य से है, बावजूद इसके चिकित्सा सुविधाओं की हालत का बदतर होना इंतेहाई षर्मनाक है।
षिषु के चिकित्सीय परीक्षण और टीकाकरण के लिए यहां की कुछ महिलाओं को 10 किलोमीटर लंबा सफर तय करके डिस्पेंसरी जाना पड़ता है। गांव पनजोआ की स्थानीय निवासी जिन्हें सुरीनसर गांव डिस्पेंसरी तक पहुंचने के लिए तकरीबन 10 किलोमीटर का रास्ता तय करना पड़ता है, कहती हैं ,’’ मेरा षिषु अभी महज़ दस महीने का ही है। मुझे गांव से डिस्पेंसरी तक जाने में चार घंटे का समय लगता है, साथ ही साथ रास्ता भी बहुत खराब है। उन्होंने आगे बताया कि जब मुझे कभी भी बच्चे को दिखाने के लिए डिस्पेंसरी जाना होता है तो मुझे घर से सुबह सात बजे निकलना पड़ता हैं और षाम को सात बजे ही घर वापस पहुंचती हंू।’’ डिस्पेंसरी दूर होने की वजह से कभी कभी कुछ महिलाएं अपने बच्चों को महत्वपूर्ण टीके भी नहीं लगवा पाती हैं। सड़कों की खस्ताहाली की वजह से यहां के लोगों को पहाड़ी रास्तों से सुरीनसर पहुंचने में काफी वक्त लग जाता है। यहां की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए यहां हर गांव में डिस्पेंसरी कायम किए जाने की ज़रूरत है। बावजूद इसके यहां केवल एक ही डिस्पेंसरी है और उसकी हालत भी खस्ताहाल ही है। सुरीनसर के नायब सरपंच अपने कटू अनुभव को बताते हुए कहते हैं कि कई बार वह इस मामले को लेकर अधिकारियों के पास गए, मगर किसी के कान पर जूं तक नहीं रैंगी।
पर्यटन की दृश्टि से महत्वपूर्ण होने के बावजूद भी इस इलाके पर जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों की कोई खास तवज्जो नहीं है। इलाके में चिकित्सा सुविधाओं की कमी की वजह न जाने कितने लोग डिस्पेंसरी तक पहुंचते पहुंचते अपनी जान गंवा चुके हैं। इलाके में सांप और बिच्छू के काटे की घटनाएं अक्सर सामने आती रहती हैं। इलाके को जम्मू से जोड़ने वाला एकमात्र रास्ता लैंड स्लाइड होने की वजह से अक्सर बंद हो जाता है। रास्ता बंद हो जाने की वजह से सांप के काटे जाने के बाद दो बच्चे जम्मू नहीं पहंुच सके और उन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। इलाके में चिकित्सा सुविधाओं की कमी की वजह से यहां जिदंगी जैसे कुदरत के अनमोल तोहफे की कोई कीमत नहीं है। इस बारे में स्थानीय निवासी मोहन लाल अपनी आंखों को नम करते हुए कहते हैं, ’’ एक बार रास्ता बंद होने की वजह से षमषान घाट तक पहुंचना मुष्किल था जिसकी वजह से उन्हें घर पर ही दाह संस्कार करना पड़ता। जटिल भौगोलिक स्थिति और इलाके में चिकित्सा सुविधाओं की कमी इलाके में राज्य सरकार के उन दावों को मुंह चिढ़ा रही है, जिसमें दूरदाज़ इलाकों में बेहतर चिकित्सा सुविधाओं मुहैया कराने का दावा किया जाता है।
इस इलाके में सर्दियों के दिनों में तकरीबन चार हज़ार गुज्जर बकरवाल समुदाय के लोग अपना अस्थायी डेरा आकर जमा लेते हैं। सर्दियों के दिनों में तकरीबन चार सौ मिट्टी से बने डेरों को इस इलाके में अलग अलग स्थानों पर देखा जा सकता है। बकरवाल कम्यूनिटी के डोल्लू इस बात को स्वीकारते हुए कहते हैं कि उन्हें स्वास्थ्य संबंधी किसी भी स्कीम के बारे में जानकारी नहीं है और न ही स्कीमों के बारे में किसी एजेंसी और किसी व्यक्ति ने कभी नहीं बताया। हम लोग जंगल में इसी तरह अपना ठिकाना तलाषते हुए फिरते रहते हैं। उन्होंने आगे बताया पिछले साल उनकी भतीजी को प्रसव के लिए जम्मू के सरकारी अस्पताल ले जाया जा रहा था। अस्पताल पहुंचने से पहले ही उसने अपना दम तोड़ दिया। इलाके मंे चिकित्सा सुविधाओं के बारे में यहां के एमएलए जुगल किषोर का कहना है कि बोर्ड मीटिंग और विधान सभा में कई बार मैंने इलाके में नया हेल्थ सेंटर कायम करने की बात रखी। इसके अलावा मैंने आयुर्वेदिक डिस्पेंसरी को एलोपैथी में बदलने की बात भी उठायी लेकिन अभी तक सरकार की ओर से कोई कदम नहीं उठाया गया है। सुरीनसर से तकरीबन छह किलोमीटर दूर और जम्मू श्रीनगर रोड पर स्थित एईथम पंचायत का हाल भी कुछ इसी तरह का है। इस पंचायत की पंच मखनी देवी और पोली देवी का कहना कि उन्हें सरकार की ओर से चल रही स्वास्थ्य संबंधी किसी भी स्कीम के बारे में जानकारी नहीं है। ऐसे में अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि जब पंच को ही स्वास्थ्य संबंधी स्कीमों की जानकारी नहीं है तो भला आम लोगों को इन स्कीमों के बारे में कितनी मालूमात होगी? सवाल यह उठता है कि अब तक करोड़ो रूपये खर्च होने के बाद भी यहां स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं की हालत बेहतर क्यों नहीं हो पाई? क्या सरकार की ओर से लोगों के लिए पास की जाने वाली स्कीमें सिर्फ कागज़ों पर ही चलती रहेंगी? क्या इन स्कीमों का फायदा कभी जनता को भी मिल पाएगा? ऐसे बहुत से सवाल हैं जिनका जबाब यहां की जनता को आज तक नहीं मिल पाया है। यहां की मौजूदा स्थिति को देखते हुए तो यह कहा जा सकता है कि यहां के हालात आने वाले दो या तीन दषकों तक भी नहीं बदलने वाले।
(वरूण सुथरा)
(चरखा फीचर्स)
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