पटना। ईसाई समुदाय ने मंगलवार को गोस्त और भूजा का पर्व मनाया। खासकर उत्तर बिहार के ईसाई धर्मावलम्बी परम्परागत ढंग से गोस्त-भूजा खाकर पर्व मनाते हैं। देशी और विदेशी शराब का सेवन करते हैं। ऐसा करके 40 दिनों तक लजीज व्यजन से तोबा करते हैं।
इसके अगले दिन बुधवार को सुबह में ईसाई धर्मावलम्बी चर्च जाते हैं। वहां पर पुरोहित धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। इस बीच पुरोहित धर्मावलम्बियों के ललाट पर पवित्र राख से क्रूस का चिन्ह बनाकर और लगाकर स्मरण दिलवाते हैं कि हे! मनुष्य तू मिट्टी हो और मिट्टी में मिल जाओंगे। इसी को श्रद्धालु राख बुध कहते हैं। इसके साथ ही ईसा मसीह का दुःखभोग यानी चालीसा शुरू हो जा जाता है। जो चालीस दिनों तक चलता है। सुबह में पवित्र राख लगाने और मिस्सा पूजा में भाग लेने के बाद शाम को भी जाते हैं। शाम में क्रूस रास्ता तय की जाती है। ईसा मसीह के दुःखभरी दास्तानों को 14 पाठ में संजोग कर झांकी के रूप में पेश की जाती है। झांकी को उद्ग्रहित करके प्रार्थना और मनन चिन्तन की जाती है। हम मनुष्य के लिए खुदावंद के पुत्र ईसा मसीह ने दुःख भोगे। इसी तरह शुक्रवार के दिन भी होता है। उस दिन पवित्र राख को नहीं लगाया जाता है। बुधवार और शुक्रवार को पवित्र मिस्सा और क्रूस रास्ता ही की जाती है।
बताते चले कि आज भी मुट्ठीभर ईसाई समुदाय के लोग ही भोग विलासिता की जिंदगी बिताते हैं। आलम यह है कि उनको जिंदगी में भी भव्य मकान उपलब्ध रहता है। उनको मरने के बाद भी रेडिमेट भूगर्भ कब्र नसीब हो जाता है। खुदा माफ करना जो ईसाई समुदाय के लोगों के अधिकारों का हनन कर रकमदार बन गए हैं।
आलोक कुमार
बिहार
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें