राजीव गांधी के हत्यारों को माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने ''रेयरेस्ट आफ रेयर का केस मानते हुये उनकी फांसी की सजा की पुषिट की थी। मृत्यु-दण्ड किसी साधारण हत्या के मुकदमे नहीं दिया जाता है, बलिक इसके लिये सुप्रीम कोर्ट ने अपने अनेकों निर्णयों मे यह निर्धारित किया है कि विरल से विरलतम ऐसे प्रकरण, जिनमे हत्या करने मे क्रूरता अपनार्इ गर्इ हो। सुप्रीम कोर्ट ने अभियुक्त साथन, मुरूगन एवं पैरारिवलन को दिये गये मृत्यु-दण्ड के निर्णय को उम्र कैद मे बदलने का आधार यह माना है कि इनकी दया-याचिका महामहिम राष्ट्रपति के पास 11 वर्षों से लमिबत थी, उसके निपटारे मे देरी की जा रही थी और इस कारण उन्हें मानसिक संताप हो रहा था, अत: मृत्यु-दण्ड को उम्र कैद मे बदल दिया। यधपि नृशंस हत्या के ये अपराधी जेल के अन्दर कितनी-कितनी सुविधाओं का उपयोग करते रहे, यह एक अलग विषय है। इसी संदर्भ मे हमें कुछ दिन पूर्व की चर्चाओं का वह वाक्या भी याद करना होगा कि जब प्रियंका गांधी ने अपने पिता स्व. श्री राजीव गांधी के हत्यारों को माफ करने को कहा था और श्रीमती सोनिया गांधी की अपील व तमिलनाडू सरकार की सिफारिश पर तत्कालीन राज्यपाल ने इसी हत्या की आरोपी नलिनी की फांसी की सजा को उम्र कैद मे बदल दिया था। भारत की आंतरिक सुरक्षा, विदेश नीति एवं कूटनीति की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप स्व. श्री राजीव गांधी की क्रूरतापूर्ण तरीके से की गर्इ हत्या के अभियुक्तों के साथ दया की राजनीति का जो खेल खेला गया है, उससे मेरे मन मे दो प्रश्न उठे हैं। एक तो यह कि भारत की माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने क्या अपने कार्यक्षेत्र से बाहर जाकर मृत्यु-दण्ड को उम्र कैद मे बदला ? दूसरा प्रश्न यह है कि स्व. राजीव गांधी की हैसियत सिर्फ सोनिया गांधी के पति और प्रियंका गांधी व राहुल गांधी के पिता की ही नहीं थी, वह भारत के प्रधानमन्त्री भी थे और उनकी हत्या उनके किन्हीं पारिवारिक विवाद के कारण नहीं हुर्इ थी बलिक तमिलों के प्रति भारत की विदेश नीति व आंतरिक सुरक्षा के परिपेक्ष मे प्रतिक्रिया स्वरूप हुर्इ थी। हमे वह हादसा भी याद आता है जब स्व. राजीव गांधी भारत के प्रधानमन्त्री के रूप मे श्रीलंका के दौरे पर गये थे तो गार्ड आफ आनर के समय वहां के एक सैनिक ने राजीव गांधी पर बंदूक की बट से हमला किया था और उस समय वह गिरते-गिरते बचे थे। प्रश्न यह है कि भारत के पूर्व प्रधानमन्त्री के हत्यारों को सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी ने कौन से हक से माफ करने का कदम उठाया था ?
माननीय सर्वोच्च न्यायालय का ऐसा निर्णय, जिनमे मृत्यु-दण्ड के सजायाफ्ता अभियुक्तों की दया-याचिका राष्ट्रपति भवन मे वर्षों से निराकरण हेतु लमिबत है और उनके निपटारे मे हो रही देरी का आधार मानते हुये मृत्यु-दण्ड को उम्र कैद मे बदलने पर चर्चाओं का विषय बन गया हैं। कानून के जानकार अपने-अपने नजरियों से विषय का मंथन कर रहे हैं। प्रश्न यह है कि राष्ट्रपति के यहां दया-याचिका के निपटारे मे देरी होना, क्या संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लघंन है ? केन्द्र सरकार की ओर से भी सुप्रीम कोर्ट मे प्रस्तुत की गर्इ पुनर्विचार याचिका मे कहा गया है कि ऐसा निर्णय गैर कानूनी है। सामान्यतया कानून की यह अवधारणा है कि मुकदमे का फैसला अंतिम रूप से करने के पश्चात न्यायालय का कार्यक्षेत्र समाप्त हो जाता है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय प्रकरण की अंतिम सुनवार्इ के समय जब इस निष्कर्ष पर पहुंच चुकी थी कि हत्या का यह अपराध ''रेयरेस्ट आफ रेयर की श्रेणी का है और ऐसे अपराधियों को समाज मे जीने का हक नहीं है, अत: सिर्फ फांसी की सजा ही दिया जाना उचित होगा। तब प्रश्न यह भी उठता है कि इस अवधारणा के विपरीत उन्हीं अभियुक्तों की दया याचिका राष्ट्रपति महोदय के यहां लमिबत होने पर निपटारे मे हो रहे बिलम्ब के कारण उनका अपराध क्या ''रेयरेस्ट आफ रेयर की श्रेणी का नहीं रह गया हैं ? मृत्यु-दण्ड के बिरूद्ध लमिबत दया-याचिका के निपटारे मे हो रही देरी के कारण उसके अपराध की श्रेणी को परिवर्तित नहीं किया जा सकता है। हत्या का अपराध यदि ''रेयरेस्ट आफ रेयर की श्रेणी का था तो ऐसे अपराधी के प्रति दया का कोर्इ स्थान नहीं हो सकता है। मृत्यु-दण्ड के बिरूद्ध दया-याचिका का कार्यक्षेत्र सिर्फ भारत के महामहिम राष्ट्रपति के पास है और क्या यह नहीं कहा जा सकता कि अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रपति जी के इस अधिकार को माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने उपयोग कर लिया है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष दया-याचिका के निपटारे मे हो रहे बिलम्ब पर निर्णय ही दिया जाना था तो यह पर्याप्त था कि राष्ट्रपति भवन मे वर्षों से लमिबत दया-याचिकाओं के निपटारे की समय-सीमा सरकार सुनिशिचत करे। गम्भीर विषय यह भी है कि आखिर क्यों अनेकों वर्षों तक राष्ट्रपति जी के पास दया-याचिकायें लमिबत पड़ी रहती हैं ? उनके निराकरण मे आखिर कौन सी रूकावट रहती है ? क्या इसका भी राजनीतिकरण हो चुका है ? गत समय पूर्व राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी पाटिल की कार्यशैली भी इस विषय पर चर्चित रही थी।
द्वितीय बिन्दु, स्व. राजीव गांधी के हत्यारों पर प्रियंका गांधी व श्रीमती सोनिया गांधी की दरियादिली का है। जब माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने मृत्यु-दण्ड को उम्र कैद मे बदला और तमिलनाडू की मुख्यमन्त्री जयललिता ने इन अभियुक्तों के साथ-साथ नलिनी, राबर्ट पायस, जयकुमार रविचन्द्रन को भी जेल से रिहा करने का फैसला अपनी कैबिनेट मे कर लिया तब इसी संदर्भ मे कानून मन्त्री कपिल सिब्बल ने कहा था कि ''अब मोदी चुप क्यों है ?ं बडे ही आश्चर्य की बात है, यह तो कपिल सिब्बल से यह पूंछना चाहिये था कि ''अब प्रियंका गांधी व सोनिया गांधी चुप क्यों है ?ं महात्मा गांधी की हत्या करने वालों को हम आज भी नफरत के साथ गालियां देते हैं और इतना कोसते रहते हैं कि यदि नाथूराम गोड़से का पुनर्जन्म होने का पता भर लग जाये तो उसे अभी फिर से फांसी पर चढ़ा देंगे। यधपि इस विषय पर कांग्रेसियों ने सर्वाधिक राजनीतिक लाभ लिया है और आज भी बिना किसी आधार पर महात्मा गांधी के हत्यारों को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जोड़ने का प्रयास करते है। जब कि महात्मा गांधी संघ के बिरोधी नहीं थे। वह तो भारत की स्वतंत्रता के पश्चात कांग्रेस की भूमिका ही समाप्त करना चाहते थे और इसे सामाजिक संघटन के रूप मे कार्य करने के लिये लोक सेवक संघ का नाम देना चाहते थे।
मुझे महात्मा गांधी और राजीव गांधी के हत्यारों मे कोर्इ अन्तर नहीं दिखता है। दौनों की हत्यायों मे बिचारधारा की प्रतिक्रिया व प्रतिशोध की भावना समाहित थी। फिर महात्मा गांधी के हत्यारों को जब हम आज भी गालियां देकर कोसते रहते है तब फिर राजीव गांधी के हत्यारों के प्रति प्रेम और दया की यह कौन सी राजनीति है ? भारत के प्रधानमन्त्री के हत्यारों के प्रति दया करने का कोर्इ अधिकार प्रियंका गांधी व श्रीमती सोनिया गांधी को नहीं है। लेकिन यदि इसमे जयललिता के साथ राजनीति का घिनौना खेल खेला जा रहा है कि तमिल वोटों को लुभाया जा सके, तो यह अत्यंत निंदनीय है। गौर करना होगा कि जयललिता यू.पी.ए. की समर्थक हैं और थर्ड-फ्रन्ट की चहेती। उधर सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा को उम्र कैद मे बदलने का निर्णय सुनाया नहीं, कि करूणानिधि को बिना कोर्इ मौका दिये तत्काल जयललिता ने इन हत्यारों को रिहा करने का आदेश कर दिया। भारत की जनता के लिये राजनीति के इस बिकृत स्वरूप और हत्यारों पर दया के आधार पर चुनाव जीतने के कुतिसत प्रयास की निन्दा तो हो ही रही है लेकिन इन राजनेताओं को तनिक भी यह फिक्र नहीं है कि विश्व पटल पर भारत की कौन सी तस्वीर को यह प्रकट कर रहे हैं ?
दतिया
फोन- 07522-238333, 9425116738
मेल - rajendra.rt.tiwari@gmail.com
नोट :- लेखक एक वरिष्ठ अभिभाषक एवं राजनीतिक, सामाजिक विषयों के समालोचक होने
के साथ-साथ म.प्र.शासन के शासकीय अभिभाषक हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें