विशेष आलेख : पानी पानी करते सरहद पर बसे लोग - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 30 अप्रैल 2014

विशेष आलेख : पानी पानी करते सरहद पर बसे लोग

गर्मी का मौसम आते ही पेयजल की समस्या पैदा होने लगती हैं। इस समस्या ने सिर्फ भारत को ही नहीं बल्कि पूरे विष्व को अपनी चपेट में लिया हुआ है। आज भी देष के एक तिहाई लोगों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं है। एक अनुमान के मुताबिक हर दिन दुनिया भर के पानी में 20 लाख टन सीवेज, औद्योगिक और कृषि  कचरा डाला जाता है। संयुक्त राश् ट्र के अनुसार, हर साल हम 1,500 घनमीटर पानी बर्बाद करते हैं। राष्टीय राश् ट्र ीय जल नीति, 2012 में स्पश्ट रूप से कहा गया है कि पानी को आवष्यक आवष्यकता के साथ आर्थिक सामग्री भी माना जाए। ऐसा करने से लोगों को पानी की असली कीमत समझ में आएगी। लेकिन आज मनुश्य जिस तरह से पानी का दोहन कर रहा है उससे जल संकट का पैदा होना तो निष्चित ही है। पानी के महत्व को वही लोग समझ सकते हैं जो इसकी कमी के चलते परेषनियों से दो चार हैं। देष में सन् 1955 में पानी की उपलब्धता प्रति व्यक्ति के हिसाब से 5,227 घनमीटर थी, जो 2025 तक घटकर 1,500 घनमीटर हो जाएगी। फिलहाल हम कुल पानी का 83 प्रतिषत सिंचाईं में खर्च कर रहे हैं जो 2025 और 2050 में घटकर क्रमषः 72 और 68 प्रतिषत रह जाने की संभावना है। 

आंकड़ों से स्पश्ट है कि आज पानी की समस्या देष के कोने-  कोने में व्याप्त है। कहीं इसकी समस्या बहुत कम है तो कहीं इसकी समस्या ने एक विकराल रूप ले लिया है। जम्मू एवं कष्मीर की तहसील मेंढ़र के छतराल गांव में भी पानी की समस्या ने एक विकराल रूप धारण कर लिया है। 21 वीं सदी केे इस दौर में भी यहां की युवतियां सर पर पानी के बरतन रखकर चष्मों से पानी लेकर आती हैं। इनकी हालत निश्चित ही विकास की अ¨र बढ़ते भारत के लिए प्रश्न-चिन्ह है। े एक घंटे का सफर तय करके एक बरतन पानी हाथ लगता है। गर्मी के दिनों में मुष्किलें और बढ़ जाती हैं क्योंकि चष्मों से पानी बहुत कम निकलता है। 
           
पानी भरने के लिए लंबी लाइन लगती है। इस गांव के कुछ लोगों ने मवेषी भी पाल रखे हैं, उनके लिए पीने के पानी का बंदोबस्त करना इन लोगों के लिए एक बड़ी चुनौती है। इसके अलावा गांव में किसी की षादी होने या किसी का मकान बनने पर कठिना ई और भी बढ़ जाती हैं। ऐसे हालात में नौजवान तो किसी तरह पानी का बंदोबस्त कर लेते हैं, मगर बूढ़े और कमज़ोरों लोगों के लिए यह संभव नहीं है। समस्या के बारे में गांव के एक वृद्ध इस्लाम खान (70 ) कहते हैं कि मैंने हर कोषिष की मगर पानी नहीं मिल सका। इसके बारे में वह विस्तार से बताते हुए कहते हैं कि इस समस्या को लेकर मैं कई बार जल विभाग के अधिकारियों के पास गया और तकरीबन 2 हज़ार रूपये आने जाने में किराए पर खर्च कर चुका हंू , मगर किसी भी अधिकारी को मुझ पर तरस नहीं आया और आज तक इस समस्या का हल नहीं निकल सका है। पानी की समस्या के बारे में गांव की स्थानीय निवासी षाहीन कौसर कहती हैं, ‘‘अगर हमारे गांव में पानी की समस्या नहीं होती तो मैं पढ़ लिखकर किसी उच्च पद पर पहुंच सकती  हंू। लेकिन अफसोस की बात कि सुबह नमाज़ पढ़ने के बाद मैं चष्मे से पानी लेने के लिए चल पड़ती हंू। पानी लाने के बाद मैं नाष्ता करके स्कूल को चली जाती हंू। स्कूल से वापस आने के बाद दोपहर के खाने का लुकमा अभी मुंह में ही होता है कि पानी लाने के लिए मुझे बर्तन थमा दिया जाता है। षाम को पानी लेकर घर वापस आतीं हंू तो बिजली नहीं होती, इसलिए सो जाती हंू।’’ यहां के बच्चों का सारा समय पानी लाने में ही बर्बाद हो जाता है। ऐसे में स्कूल से आने के बाद घर पर पढ़ाई करना इनके लिए काफी मुष्किल हो जाता है। 
         

नसीबा बी जो एक घरेलू औरत हैं, पानी की समस्या के बारे में इनका कहना है कि ‘‘छतराल नी धरती मक्की खाई छोडि़या’’ इसका अर्थ है कि दूर से पानी उठाकर लाने की वजह से मैं कमज़ोर हो गई हंू। नाजि़या सुल्ताना जो की ग्यारहवीं कक्षा की छात्रा हैं, पानी की समस्या के बारे में अपनी राय रखते हुए कहती हैं कि जब मैं तीसरी कक्षा में पढ़ती थी तो उस वक्त मैंने सुना कि कालाबन में पाइपें लग गई हैं और छतराल गांव के लोगों को पानी मिलेगा। मगर अफसोस की बात कि जब छतराल में पाइपें दी गईं तो सिर्फ चंद घरों को, बाकी लोग देखते रह गए।  इसके बाद सुनने में आया कि छतराल स्कूल के पास एक बिजली घर और एक वाटर टैंक बनेगा। मोटर के ज़रिए पानी टैंक में जाएगा और सभी को पानी मिलेगा। यह सब हुआ मगर हमें पानी फिर भी नहीं मिल सका। पेय जल एवं स्वच्छता विभाग ने राजीव गांधी राष्ट्रीय पेय जल मिशन के तहत वर्ष 2013-14 के लिए 11,000 रु. कर¨ड़ की निधि आवंटित की है जिसका 47 प्रतिशत हिस्सा पूवर्¨Ÿार राज्य¨ं तथा जम्मु एवं कश्मीर के लिए तय किया गया है। लेकिन सवाल उठता है कि यह सारा क¨ष जा कहां रहा है? पानी की समस्या के बारे में जब जल विभाग के अधिकारी से बात की जाती है तो वह कहते हैं कि पूरे छतराल में पाइपें लग गईं, आपको अभी और चाहिए ? यहां की जनता अधिकारियों के झूठे वादों से परेषान आ चुकी है। कोई इन लोगों की समस्याओं को सुनने वाला नहीं है। दो बूंद पानी के लिए तरसते यहां के लोग सरकार से अपील करते हुए कहते हैं कि क्या हमें कभी साफ पानी नसीब होगा, अगर होगा तो कब तक? 


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आसिया फिरदौस
(चरखा फीचर्स)

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