अपनों पर सितम, गैरों पर करम यह गाना राजनीति में परिवारवाद और उनका आपस में मतभेद की घटना पर बिल्कुल फिट बैठता है। इस बार के आम चुनाव में कम से कम पंद्रह राजनीतिक परिवारों के एक या उससे अधिक सदस्य मैदान में हैं। मसलन, लालू, सिंधिया, मुलायम, पासवान, देवगौड़ा, पवार, अमरिन्दर, बादल, जोगी, दिग्विजय, चौटाला, बहुगुणा, हुड्डा, करूणानिधि और रावत परिवार की जादुई राजनीति दशकों से चल रही है। कुछ परिवार में तो राजनीति करने लायक जितने भी सदस्य हैं वे सभी किसी न किसी पद पर हैं। कुछ परिवारों ने तो दो-दो राजनीतिक दलों में अपनी पैठ बना रखी है और हवा के रुख के हिसाब से अपने भविष्य की राजनीति को तय करते हैं। यहीं है शुरू होती है राजनीति में परिवार की मुसीबत।
अभी हाल ही में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मुसीबत उनके भाई दलजीत सिंह बनें, जब नरेंद्र मोदी ने उन्हें भारतीय जनता पार्टी में शामिल किया। इसपर मनमोहन सिंह ने ही दुःख भी जताया। लेकिन बात यहीं खत्म नहीं हुई, अब इस विभिषण ने राजनीतिक गलियारे में भी हलचल मचा दिया है। चाहे जो भी हो लेकिन एक सच यह भी है कि यह पहली बार नहीं है जब किसी बड़े राजनेता के परिवार का सदस्य अपने पारिवारिक राजनीतिक पहचान या मार्ग से बिदक गया हो। इससे पहले भी कई उदाहरण हैं जो यह बताते हैं कि सिर्फ मनमोहन सिंह ही अपनों के सताय नहीं है।
इसमें सबसे पहला और बड़ा नाम आता है कांग्रेस की मुखिया सोनिया गांधी के परिवार का। संजय गांधी की मौत के बाद गांधी परिवार भी टूट गया था। कहा जाता है कि सोनिया और संजय की पत्नी मेनका के रिश्ते अच्छे नहीं थे। इसीलिए उन्होंने अपना अलग रास्ता चुना और बीजेपी का दामन थाम लिया। यह गांधी परिवार में पहला और आखिरी बिखराव कहा जा सकता है। समय के साथ मेनका की बीजेपी में जमीं मजबूत होती चली गई और अब वे पार्टी की कद्दावर नेता हैं। उन्हीं के दिखाए रास्ते पर उनके बेटे वरुण भी चल रहे हैं। तेजतर्रार लेकिन मीठी बोली बोलने वरुण भी बीजेपी के नेता और सांसद हैं। सबने सुनी रोचक जुबानी जंग- पिछले दिनों वरुण और उनकी चचेरी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा के बीच रोचक जुबानी जंग छिड़ी थी, जिसे पूरे देश ने सुना। राहुल और वरुण के बीच भी कभी-कभी यूं ही हल्का-फुल्का संवाद बनता रहा है। अमेठी में चुनाव प्रचार के दौरान भी शुरुआत वरुण की ओर से हुई, जब उन्होंने अमेठी में राहुल के काम की तारीफ की, तो जवाब में राहुल ने भी शुक्रिया कहा। इसके बाद प्रियंका ने मोर्चा संभाला और वरुण को सीख दी, लेकिन मेनका गांधी ने कड़ी प्रतिक्रिया देकर संवाद को ही समाप्त कर दिया। मेनका गांधी हमेशा की तरह गांधी परिवार और खासकर सोनिया गांधी के खिलाफ काफी मुखर रही हैं।
वहीं सिंधिया राजघराने के हाथ में कमल सिंधिया घराने की वसुंधरा-यशोधरा - बीजेपी में ग्वालियर के सिंधिया राजघराने की राजनीति में पैठ काफी पुरानी है। राजमाता सिंधिया का जुड़ाव बीजेपी से था, जबकि उनके पुत्र माधवराव कांग्रेस के कद्दावर नेता थे। हालांकि उनकी दोनों बहनें वसुंधरा और यशोधरा राजे, राजमाता की तरह बीजेपी से ही जुड़ी रहीं। आज दोनों बड़े पदों पर हैं। वसुंधरा जहां राजस्थान की मुख्यमंत्री कुर्सी पर विराजमान है, वहीं यशोधरा राजे मप्र से सांसद रह चुकी हैं। वर्तमान में वे मप्र की शिवराज सरकार में मंत्री हैं। सिंधिया की तीसरी पीढ़ी भी इसी राजनीतिक विरासत को संभाल कर चल रही हैं। माधवराव के बेटे ज्योतिरादित्य जहां मौजूदा कांग्रेस सरकार में बड़े मंत्री हैं और मप्र के गुना से लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं, वहीं वसुंधरा के बेटे दुष्यंत भी संसद की चौखट चढ़ चुके हैं।
ठाकरे परिवार की राजनीति
शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे की विरासत को लेकर कई पारिवारिक विवाद हुए, कुछ चर्चा में आए,तो कुछ परिवार की बड़ी दीवारों के पीछे छिप गए। उनकी मौत से पहले ही उनके बेटे और भतीजे की राहें जुदा हो गई थीं। बाल ठाकरे के बेटे उद्धव जहां शिवसेना की कमान संभाल रहे हैं, वहीं उनके चचेरे भाई राज ठाकरे ने अलग होकर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की नींव रखी। आज राज भी महाराष्ट्र के कद्दावर नेता हैं और अक्सर सुर्खियों में रहते हैं। कहा जाता है कि बाला साहेब के उत्तराधिकार ने ही दोनों भाइयों के बीच दूरियां बढ़ाईं। उनके बाद शिवसेना की कमान संभालने से शुरू हुआ यह विवाद, अलगाव के बाद भी जारी है। शिवसेना और उद्धव की अगर महाराष्ट्र में स्थिति काफी अच्छी है, तो राज भी मुंबई और मुंबईकरों में अहमियत रखने वाले नेता बनकर उभरे हैं। उनकी मनसे भी धीरे-धीरे पूरे राज्य में अपनी पैठ बनाने में लगी हुई है।
लालू के घर में कलह
2014 के लोकसभा चुनावों ने बिहार के किंगमेकर कहे जाने वाले लालू प्रसाद यादव के कुनबे में कलह पैदा कर दी। राजद के अध्यक्ष और चारा घोटाले में सजा पा चुके लालू यादव के घर में ही टिकटों की ऐसी मारामारी मची, कि दो करीबी रिश्तेदार ही दूसरी पार्टियों की गोद में जा बैठे। लालू के भाई रामकृपाल यादव यूं तो राजद से ही राज्यसभा भेजे गए थे, लेकिन बिहार की पाटलीपुत्र सीट से लोकसभा चुनाव लड़ने की जिद ने उन्हें दूसरे का दामन थामने पर मजबूर कर दिया। पाटलीपुत्र सीट से खुद लालू ने अपनी बेटी मीसा को टिकट दिया है, जिससे नाराज होकर ही रामकृपाल अलग हुए। वहीं लालू की पत्नी और बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के भाई साधु यादव भी इन चुनावों में उनसे अलग हो गए। साधु ने इससे पहले 2009 में भी राजद से टिकट मिलने के चलते कांग्रेस का दामन थाम लिया था, लेकिन हार का मुंह देखना पड़ा। उन्होंने इस बार भी बीजेपी और मोदी का दामन पकड़ना चाहा लेकिन जब अहमियत नहीं मिली, तो निर्दलीय ही छपरा में बहन को चुनौती देने उठ खड़े हुए। हालांकि बाद में उन्होंने अपना नामांकन वापस ले लिया। फिलहाल अपनी बहन और जीजा से अलग होकर साधु नई राजनीतिक जमीन तलाश रहे हैं।
भाई - भाई की जंग
चिरंजीवी और पवन की राहें जुदा इन दोनों की पृष्ठभूमि एक, पर विचार अलग-अलग - दक्षिण और हिंदी फिल्मों के मशहूर अभिनेता चिरंजीवी यूं तो कांग्रेस में अपनी पार्टी प्रजाराज्यम् का विलय कर चुके हैं और इस एवज में कैबिनेट मंत्री का पद भी पा चुके हैं, लेकिन उन्हें भी घर में ही विरोध का सामना करना पड़ रहा है। उनके एक्टर भाई पवन कल्याण ने अचानक नरेंद्र मोदी से मुलाकात की और अपनी नई पार्टी बना डाली। पवन जहां मोदी को पसंद करते हैं और उनके लिए कैंपेन कर रहे हैं, वहीं चिरंजीवी कांग्रेस की विचारधारा के अनुरूप चलना पसंद करते हैं। पवन ने जब अपने भाई से बगावत की, उस वक्त आंध्र के बंटवारे का मुद्दा गरम था। कहा जा रहा है कि पवन की बगावत देखकर चिरंजीवी ने इस बार लोकसभा चुनाव न लड़ने का फैसला किया, ताकि हार की बेइज्जती न उठानी पड़े। दूसरी ओर, आंध्र में इन दोनों भाईयों का जलवा किसी से छुपा नहीं है। वोटरों के साथ दक्षिण की फिल्मी दुनिया भी अब इन दोनों के चलते बंट गई है। ऐन लोकसभा चुनावों के पहले पवन का दूर होना चिरंजीवी के लिए कितना नुकसानदायक होगा, यह तो 16 मई को ही पता चलेगा, लेकिन वोटर तो दोनों भाइयों के बीच बंट ही गया है।
गांधी-शास्त्री परिवार की राजनीति
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के प्रपौत्र राजमोहन गांधी लोकसभा चुनावों से ऐन पहले अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए थे। जहां गांधीजी पूरे जीवनकाल में कांग्रेस से जुड़े रहे, वहीं राजमोहन ने बिल्कुल नई विचारधारा के साथ बनी पार्टी के साथ जाना सही समझा। वहीं पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के पोते आदर्श ने भी आप का चोला पहना। आदर्श ने भी अपने पिता अनिल शास्त्री से अलग राह चुनी और आप में शामिल हो गए, जबकि उनके दादा और पिता भी कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे हैं। आदर्श ने विश्वस्तरीय ऐप्पल कंपनी की एक करोड़ रुपए सालाना की नौकरी छोड़कर 'आप' से जुड़ने का फैसला किया था। 40 साल केआदर्श शास्त्री ऐपल कंपनी के पश्चिमी भारत के सेल्स हेड थे।
भाभी- देवर की लड़ाई
कांग्रेस के कद्दावर नेता और कई बार केंद्रीय मंत्री रह चुके प्रियरंजन दास मुंशी लंबे अरसे से बीमार चल रहे हैं, जिसके चलते उन्होंने अपनी रायगंज सीट पत्नी दीपा दासमुंशी को सौंप दी और अघोषित रूप से सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया। दीपा पिछली बार यहां से जीतीं भी, लेकिन इस बार उनका मुकाबला देवर सत्यरंजन से हो रहा है। कहा जा रहा है कि तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी ने दीपा दासमुंशी से अपने मतभेद के चलते उनके देवर को टिकट दिया है। लेकिन वजह चाहे जो भी हो, मुकाबला बेहद दिलचस्प हो गया है। इसी तरह पंजाब में भी एक सीट पर देवर-भाभी आमने-सामने हैं। बठिंडा में हरसिमरत कौर बादल और देवर मनप्रीत सिंह बादल एक-दूसरे को चुनावी चुनौती दे रहे हैं। पंजाब के सीएम प्रकाश सिंह बादल की बहू और उप मुख्यमंत्री सुखबीर बादल की पत्नी हरसिमरत कौर बादल इसी सीट से मौजूदा सांसद हैं, तो उनके सामने बादल परिवार के मुखिया से रूठे भतीजे मनप्रीत सिंह बादल कांग्रेस के टिकट पर खड़े हुए हैं। मनप्रीत अपनी भाभी के लिए लगातार चुनौती बने हुए हैं, वहीं हरसिमरत को अपने पारंपरिक वोट बैंक पर भरोसा है। मनप्रीत सिंह ने 2011 में पंजाब पीपुल्स पार्टी भी बनाई थी।
अलागिरी
डीएमके सुप्रीमो करुणानिधि ने तमिलनाडु में राजनीति की मजबूत विरासत कायम की। हाल में उन्होंने अपने बड़े बेटे अलागिरी को पार्टी से निकाल बाहर किया। इस चुनाव में पहली बार डीएमके की कमान छोटे बेटे स्टालिन के हाथ में है। अलागिरी पर पार्टी विरोधी गतिविधियां करने के आरोप हैं। हालांकि अलागिरी की छवि कभी एक जननेता की नहीं रही। सांसद और मंत्री बनने के बाद भी अलागिरी दक्षिण तमिलनाडु में बिल्कुल बेअसर साबित हुए। इन दिनों वह भाजपा में अपना भविष्य देख रहे हैं।
करूणा शुक्ला
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहार बाजपेयी की भतीजी करूणा शुक्ला का भाजपा से 32 साल पुराना नाता था। पार्टी में उन्होंने वार्ड स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक काम किया था। लेकिन अब सच यह है कि वे छत्तीसगढ़ की बिलासपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी हैं। करूणा, वाजपेयी के बड़े भाई की बेटी हैं।
दीपक कुमार
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लेखक अमर उजाला में कार्यरत हैं।
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