आलेख : खुले रखें दिमाग के दरवाजे - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

शनिवार, 21 जून 2014

आलेख : खुले रखें दिमाग के दरवाजे

विकास और विस्तार के साथ भविष्य को सुरक्षित और सुकूनदायी बनाने के लिए हर इंसान प्रयत्नशील रहता है। आम तौर पर इंसान का पहला लक्ष्य भी यही होता है कि उसका भविष्य बेहतर भी हो और स्थायित्व भरा भी।

एकमात्र सरुक्षित भविष्य ही हमारे जीवन की कई समस्याओं का खात्मा कर देता है। इसलिए भविष्य को लेकर चिंतित और आशंकित रहना मनुष्य का स्वाभाविक गुणधर्म है। मौजूदा गलाकाट स्पर्धा और योग्यतम लोगों की भारी जनसंख्या के अवसरों से दूर होने की परिस्थितियों में हमारे युवाओं के भविष्य को लेकर हम सभी का चिंतित होना स्वाभाविक ही है।

यह चिंता हमारी संवेदनशीलता को अभिव्यक्त करती है। जबकि इससे अधिक हताशा और निराशा के भंवर में वे लोग हैं जो सुनहरे भविष्य ही नहीं बल्कि सुरक्षित भविष्य को लेकर परेशान हैं । कुछ को अवसर नहीं मिल पा रहे हैं, कुछ अवसरों से दूर होते जा रहे हैं और बहुत सारे ऎसे हैं जिन्हें पता ही नहीं है कि उनके लिए कौन से अवसर उपलब्ध हैं और इनका लाभ कैसे पाया जाए।
 इस बारे में हमारी युवा पीढ़ी की सोच और आशंकाओं से भरे वर्तमान की कल्पना अच्छी तरह की जा सकती है।   इस तीव्र और घनघोर प्रतिस्पर्धा के दौर में अब यह जरूरी हो चला है कि हम अपने लक्ष्य में बंधे न रहें बल्कि लक्ष्य के साथ उप-लक्ष्य भी रखें और इसी के अनुसार सुनहरे भविष्य की तलाश करें।

जीवन में भविष्य को लेकर लक्ष्य निर्धारण स्वाभाविक है लेकिन अब जमाना वो नहीं रहा कि हम अपने किसी एक लक्ष्य के पीछे पड़ जाएं और अपनी आयु गुजार दें, बाद में जिंदगी भर पछतावा होता रहे और कुढ़ते हुए जीवन गुजारना पड़ जाए।

अब दुनिया में जहां कहीं, जो भी अवसर हैं वे सभी विषयों, हुनरों और शिक्षण-प्रशिक्षण प्राप्त लोगों के लिए खुले हुए हैं। कोई किसी भी विधा को अपना सकता है, किसी भी कंपीटिशन में हिस्सा ले सकता है और कहीं भी अपनी प्रतिभाओं का लोहा मनवाने का प्रयास करते हुए सुनहरे भविष्य के ख्वाब को पूरे कर सकता है। इस मामले में अब तमाम प्रकार की शिक्षा और प्रशिक्षण बहुआयामी और बहुद्देशीय हो गए हैं।

कई बार होता यह है कि हम अपने आपके भविष्य को लेकर किसी एक ढांचे में खुद को फीट कर दिया करते हैं और फिर उसी के बारे में बार-बार चिंतन और प्रयास करते रहते हैं। लेकिन होता यह है कि आजकल एक अनार - लाख बीमार वाली कहावत बन गई है जहां सब कुछ भविष्य पर निर्भर है और हो सकता है कि सीमित नौकरियों या अवसरों के कारण हम बार-बार लाख प्रयासों के बावजूद इन अवसरों से लगातार वंचित होते रहें और इसी उधेड़बुन में अपनी आयु सीमा पार कर जाएं।  कई सारे लोग एक ही एक तरह के पदों के पीछे पड़े रहते हैं और उसमें भी यही स्थिति सामने आती है।

इस दुरावस्था में हमारे दिल और दिमाग के दरवाजों को किसी एक तरह के पद या विषय तक सीमित न रखें बल्कि पूरी तरह खुले रखें और जहाँ भी हमारे लायक अवसर आते हैं उस दिशा में प्रयास करते रहेें। अवसरों की कमी नहीं है बल्कि हमारी सोच को बदलने की जरूरत है ताकि जहाँ जो अवसर मिल जाए, उसका लाभ लेकर जीवन को सँवारा जा सके।

कई बार अवसर हमारे अनुकूल होता है लेकिन परिस्थितियां अचानक प्रतिकूल हो जाया करती हैं, और हैरत की बात यह भी है कि इन पर हमारा कोई बस नहीं होता। इस स्थिति में मन को जो पीड़ा पहुंचती है उसे दूसरा कोई बयां नहीं कर सकता, उसी का मन जानता है जो इसे भुगतता है।हमेशा उदारतापूर्वक चिंतन करते हुए अवसरों पर निगाह रखें और अपने आपको किसी दायरे में बांधे बिना सब तरफ प्रयास करें। इसके साथ ही यह भी कभी नहीं सोचना चाहिए कि किसी अवसर विशेष या पद विशेष में खूब सारे लोग हैं और ऎसे में हमारा नंबर कहां आने वाला है।
 
भविष्य के बारे में कोई कुछ नहीं कह सकता। कभी भी, कहीं भी और कुछ भी हो सकता है।  कई बार हमारा भाग्य तगड़ा होता है तब भगवान भी छप्पर फाड़ कर देना चाहता है लेकिन हमारी ही तैयारी न हो तो दोष किसका। इसलिए चाहे कितने प्रतिस्पर्धी सामने हों, मुकाबले के लिए हमेशा तैयार रहें।

कई बार अपने पुण्यों का अचानक उदय होता है या किसी का दिव्य और दैवीय आशीर्वाद ही मिल जाता है। लेकिन यह सब भी तभी फलीभूत होते हैं जबकि हमारा उस दिशा में कठोर परिश्रम और लगन के साथ जुड़ाव हो और उसी सफर पर हों। आजकल हर विधा और हर फील्ड सैकड़ों विषयों-उप विषयों में इतना पसरा हुआ है कि हर कोई इनसे जुड़े अवसरों का लाभ पाकर अपना भविष्य सुधार सकता है। 

हम सभी का कत्र्तव्य है कि जो लोग जिन्दगी बनाने की जद्दोजहद में जुटे हुए हैं उनके लिए मददगार बनें और जहां कहीं इनके लिए कुछ कर सकें, किया जाए क्योंकि यही युवा पीढ़ी जितनी उत्साही और कर्मठ होगी उतना समाज और देश आगे बढ़ता रहेगा। युवाओं के मन में यह भावना कभी नहीं आनी चाहिए कि जो लोग कुछ बन बैठे हैं वे दूसरों के बारे में उपेक्षा भाव अपनाते हुए नाकारा बने हुए हैं और उन्हें समाज या अपने क्षेत्र की कोई चिंता नहीं है।

हम जहां कहीं हों, हमारा पहला फर्ज यही है कि उन लोगों को स्थापित करें, सुनहरा भविष्य पाने में मदद करें जो योग्य हैं। वर्तमान समय का यही सबसे बड़ा धर्म और पुण्य है। किसी की जिंदगी बनाने से बड़ा और कोई काम किसी मनुष्य का हो ही नहीं सकता।

जो लोग सामथ्र्यवान होते हुए भी खुद का ही घर और तिजोरियां भरने में लगे हैं,  अपने ही अपने लिए चमड़े के सिक्के चला रहे हैं, हमारी युवा पीढ़ी के लिए कुछ भी कर पाने से परहेज करते हैं, वे वर्तमान युग के सबसे बड़े शत्रु हैं जो पूर्वजन्म में असुर योनि में थे और आने वाले जन्मों में भी पशुओं की देह पाने वाले हैं, इसलिए इन नालायकों से अपेक्षा न रखें बल्कि समाज के अच्छे और मदद करने वाले लोगों में अपने आपको रखें वरना आने वाली पीढ़ियां माफ करना तो दूर की बात है, अपने नाम ले लेकर हमारे वंशजों को भी चिढ़ाती रहेंगी। समाज के लिए काम करें, देश के लिए जीना सीखें।





live aaryaavart dot com

---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
dr.deepakaacharya@gmail.com

कोई टिप्पणी नहीं: