पाप का संबंध हर इंसान से है। कुछ बिरले और परमहंसों को छोड़कर दुनिया का कोई इंसान यह नहीं कह सकता कि वह पूरी तरह पापों से मुक्त है। जरूरी नहीं कि यह पाप जानबूझकर ही किए हुए हों या इरादतन हुए हों। अधिकांशतया पाप अनजाने भी होते हैं और इनका भी कुफल इंसान को भुगतना ही पड़ता है।
अनजाने में किए जाने वाले पापों का प्रायश्चित भी हो सकता है लेकिन जो पाप सायास किए हुए होते हैं उनका फल प्राणी को अवश्यमेव भोगना ही पड़ता है। पापकर्म अपने स्वयं के द्वारा नहीं किए हुए हों तब भी पाप कर्म में सहयोग करने वालों, पापियों का साथ निभाने वालों, मलीन और म्लेच्छ लोगों की मदद करने वालों, अपने अधिकारों का दुरुपयोग करने वालों, भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, कमीनशखोरी, मुनाफाखोरी करने वालों के साथ रहने वालों, उनका खाना-पानी या पैसा उपयोग में करने वालों और उन लोगों को संरक्षण प्रदान करने वालों, पापियों का महिमा मण्डन कर उन्हें प्रचार-प्रसार देने वालों या किसी भी रूप में मदद देने वालों को भी पाप का भागी होना पड़ता है।
वे लोग भी पाप का दण्ड भुगतते ही हैं जो लोग पापियों और उनके सह पापियों अथवा पापियों को मदद देने वालों के प्रति उदासीन बने रहते हैं, उनका सम्मान, स्वागत और अभिनंदन करते रहते हैं। इसके साथ ही पाप कर्म को चुपचाप देखने और सहन करने वाले लोगों को भी पाप लगता है तथा उन्हें भी अपने पाप की यथोचित सजा मिलती ही है। जानबूझकर किए हुए पापों का दण्ड प्राणी को भोगना ही पड़ता है।
केवल और केवल उच्चतम साधना, दुबारा न करने का संकल्प, महान प्रायश्चित एवं ईश्वरीय या किसी सिद्ध की अनुकंपा से ही पाप में कमी या रूपान्तरण हो सकता है। पापों को समाप्त करने का काम विधाता भी नहीं कर सकता। पर ऎसा आमतौर पर असंभव ही है। जबकि अनजाने में बिना किसी मंशा के अपने आप हो जाने वाले पापों का प्रायश्चित भी है और उनके निवारण के विधान भी।
पाप कर्म सायास किए हुए हों या अनायास, सभी से मुक्ति पाने के कण्टकाकीर्ण मार्ग ही हैं जो सामान्य इंसान के बूते में अब नहीं रहे। जो पापी लोग मन्दिरों में, भिखारियों को, बाबाओं को, मठों, आश्रमों और अनाथालयों, अन्न क्षेत्रों में दान करते हैं, यज्ञ-अनुष्ठान में घी, सामग्री, रुपया-पैसा, भोजन की व्यवस्था कर देते हैं, ब्राह्मणों से पूजा पाठ और अनुष्ठान करवाते रहते हैं और दान-दक्षिणा देते रहते हैं, जिमाते रहते हैं, उन लोगों के पाप भी समाप्त नहीं होते। क्योंकि पाप की पोथी अलग है, पुण्य की पोथी अलग। सबका हिसाब भी अलग-अलग चुकारा होता है, कोई एक-दूसरे को कम-ज्यादा नहीं कर सकता। फिर हराम की कमाई से किए जाने वाले दान-पुण्य, दक्षिणा आदि को कोई अर्थ नहीं होता।
जो लोग यज्ञादि व धार्मिक कर्म, मन्दिर निर्माण आदि में हराम की कमाई वापरते हैं उन यज्ञ-अनुष्ठानों और ब्रह्म भोजों का कोई मतलब नहीं है, इनसे न ईश्वर प्रसन्न होता है, न कोई लाभ। अधिकांश लोग धार्मिक कायोर्ं में इसलिए पैसा लगाते हैं क्योंकि उनका भ्रम होता है कि इससे उनके पाप कटेंगे और पुण्य की प्राप्ति होगी, जिससे नरक यंत्रणा से बच जाएंगे। पर यह कोरा भ्रम ही होता है। धर्म और दान-पुण्य में उसी पैसे का महत्त्व है जो खुद के परिश्रम से कमाया हुआ है। भले वह एक पैसा ही क्यों न हो।
इस स्थिति में पापमुक्ति कैसे हो? यह अपने आप में सर्वाधिक जटिल प्रश्न है। जिन लोगों को पाप कर्म का ज्ञान हो गया हो उन्हें चाहिए कि वे दुबारा न करने का संकल्प लेकर प्रायश्चित शुरू कर दें और फिर पापकर्म से बचते रहें। पापकर्म करते रहते हुए पापों के दण्ड से अपने आपको बचाए रखने की कल्पना व्यथा है।
इन सभी प्रकार की चर्चाओं के बीच पापमुक्ति का एक सबसे बढ़िया, सहज और आसान उपाय है जो कोई भी व्यक्ति कर सकता है। और वह यह है कि अपने द्वारा अब तक किए गए तमाम पाप कर्मों के बारे में अधिक से अधिक लोगों को पूरी-पूरी पारदर्शिता के साथ सब कुछ बताते चलें जाएं, जितने अधिक लोग इसे शेयर करते रहेंगे, चर्चा होती जाएगी, वैसे-वैसे अपने पाप उन दूसरे लोगों पर स्थानान्तरित होते जाएंगे। और एक समय ऎसा आ ही जाता है कि जब अपने सारे पाप खत्म होकर दूसरे खूब सारे लोगों के खाते में चढ़ जाते हैं।
जमाने की नकारात्मकताओं से बचे रहने और अपने आप में दिव्यता लाने का एक उपाय इसके साथ यह भी किया जा सकता है कि हम अपने बारे में ही हो रही झूठी व आधारहीन चर्चाओं के बारे में कोई स्पष्टीकरण कभी न दें, जैसा लोग समझें, समझते रहें और लोग जैसा प्रचारित करना चाहे करते रहें। गलत बातें प्रचारित होने से लोक निंदा होगी और इससे भी हमारे पूर्व जन्म तक के संचित पाप समाप्त हो जाते हैं।
यों भी आजकल दूसरों का ही ध्यान रखने और चर्चा करने वाले लोगों की कहाँ कोई कमी है। आधी से अधिक आबादी तो उन नालायकों से ही भरी पड़ी है जो हर किसी की निंदा ही निंदा करते रहते हैं और नकारात्मक कामों में लगे रहते हैं।
खूब सारे ऎसे हैं जिनका हमसे कोई सीधा संबंध नहीं होता मगर हमारे बारे में भ्रम फैलाने, अनर्गल चर्चाएं करते रहने, हमारी छवि खराब करने और हमें नुकसान पहुंचाने के लिए निन्दित कर्म और निंदाओं का दिन-रात सहारा लेते रहते हैं। फिर इन्हीं की किस्म के खूब सारे निंदक संप्रदायी लोग और भी हैं जो जुड़ते रहते हैं।
भगवान ने इस प्रजाति के खूब लोग हमारे आस-पास भी रख छोड़े हुए हैं जो हमारे ही हमारे बारे में चिंतन करते हुए निंदा करते रहते हैं। हमारे पाप अपने सर पर लेकर शेयरिंग करने वाले लोगों की भारी संख्या होते हुए इन निंदकों और जानदार कचरापात्रों का हम लाभ नहीं ले पाएं, यह तो हमारी ही गलती है वरना भगवान ने तो इन्हें हमारे पापों की गठरी थामने के लिए ही पैदा किया हुआ है। ऎसे सहज-सुलभ सभी प्रकार के मूर्खों का अपने हक में पूरा उपयोग करें और अपने पापों से मुक्ति पाते हुए मस्ती भरा जीवन जीते रहें।
---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
dr.deepakaacharya@gmail.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें