रेल किराया जो 14 फीसदी बढ़ा है, उसे कुछ कम किया जा सकता था। अचानक से किराए में इतनी ज्यादा वृधि ठीक नहीं है। माल भाड़ा साढ़े 6 फीसदी का बढ़ोत्तरी का असर खाद्य पदार्थो और अन्य चीजों पर पड़ेगा, जिससे पहले से ही बढ़ी महंगाई और ज्यादा हो जायेगी। इतनी अधिक बढ़ोत्तरी के पीछे सरकार का तर्क है कि यह फैसला यूपीए सरकार के वक्त ही ले लिया गया था, लेकिन आचार संहिता के चलते लागू नहीं हो सका था। इसलिए इसे अब लागू किया जा रहा है। नई सरकार को यह सोचना चाहिए था कि रेल भाड़ा नहीं बढ़ाना आपके नियंत्रण में है तो इससे चाहिए, अगर कोई गलत फैसला पिछली सरकार ने लिया है तो उसे बदलना ही नई सरकार का काम है। अब जब रेलवे बजट कुछ ही दिन में आने वाला था, ऐसे में जल्दबाजी में किराया बढ़ाना समझ से परे है। अगर एनडीए सरकार को किराए बढ़ाना ही था तो वह बजट में बढ़ा सकती थी। यूपीए जब सत्ता में थी तो यही एनडीए किराया बढ़ने पर विरोध करती थी। नीतियों पर सवाल खड़ा करते थे। अब जब एनडीए सरकार में है तो फिर वे ऐसा क्यों कर रहे है। खबर है कि बजट बाद एलपीजी गैस सिलेंडर में 10 हर माह 10 रुपये का इजाफा होगा। अब बीते लोकसभा चुनाव में मोदी ने जनता को कई हसीन सपने दिखाएं। जनता ने भी उनके वादों पर भरोसा कर अपना मत उन्हें दिया। अब जब वे सत्ता में है तो ऐसे फैसलों से जनता में निराशा होगी।
अच्छे दिनों के नाम पर जनादेश हासिल करने वाली सरकार ने लोगों के अरमानों को तोड़ना शुरु कर दिया है। अच्छे दिन शुरु होने के बजाएं महंगे दिन शुरु हो गए है। महंगाई के इस दौर में रेल यात्री किराए में 14 फीसदी बढ़ोत्तरी कर लोगों की बजट गड़बड़ा दी है। माल भाड़ा में साढ़े 6 फीसदी बढ़ने पर भविष्य में इससे प्रतिदिन इस्तेमाल की जाने वाली कई चीजों की कीमतों पर भी डालेगा, जिसका सीधा असर आम आदमी पर पड़ेगा। बिजली की कीमतें पहले ही बढ़ा दी गई है। आलू व कुछ अन्य सब्जियों जैसे खाद्य पदार्थो के भाव बढ़ने से महंगाई दर 9-10 फीसदी तक पहुंच गई है। लगता है अब प्याज काट-काट कर बेचे जायेंगे और आंसू तक भी नहीं आयेंगे। गरीब वर्ग के हितों की रक्षा करने के दावे फुस्स हो गए। निर्यातपरक ईकाईयों को अन्य देशों की तुलना में लागत को लेकर अधिक जुझना पड़ेगा। जबकि रोजाना सफर करने वाले को दोुगुनी जेब ढिली करनी पड़ेगी। वैसे भी इराक संकट के चलते तेल कीमतों में वृधि अलग कहर ढाएंगी। तुर्रा यह है कि किराए बढ़ाने का फैसला यूपीए सरकार का रहा, जिसे आचार संहिता लागू होने की वजह से लागू नहीं किया गया। लेकिन अच्छे दिनों के वादे पर जिस जनता ने एनडीए को सत्ता दिलाई उसे निराशा हुई है। हाल के समय में अब तक की यह सबसे बड़ी वृधि है।
रेल मंत्री सदानंद गौड़ा की किराया बढ़ाने की घोषणा का यात्रियों पर दोहरा असर पड़ेगा। एक ओर तो उन्हें 14 फीसदी बढ़ा किराया देना होगा, वहीं राॅउंड आॅफ प्रणाली उन पर और बोझ बढ़ायेगी। इसके तहत जनरल दर्जे के यात्रियों को 6,7,8 व 9 रुपये किराए वाले स्टेशनों के लिए पूरे 10 रुपये देने पड़ेंगे। किराया 11 या उससे ज्यादा हुआ तो 15 रुपये वसूले जायेंगे। यही हाल आगे के किराए में भी होगा। इन हालातों में एसी, स्लीपर के साथ ही जनरल क्लास के यात्रियों पर अधिक बोझ पड़ेगा। इसके अलावा माल भाड़ा बढ़ने से रेलवे को फायदा हो न हो, आम लोगों की जेबें जरुर खाली होंगी। भाड़ा बढ़ने के चलते तमाम ऐसी जीजें महंगी होगी जो रेलवे से भेंजी-मगांई जाती है। कारोबारियों की मानें तो सीमेंट, दाल, चावल हो या अन्य जीचें, कीमतों में 10-15 रुपये की वृधि होगी। जबकि इलेक्टानिक्स, कंप्यूटर, स्कूटर या अन्य सामानें व मोटर पार्ट्स, खाद्य सामाग्रियों सहित ज्यादातर वस्तुओं पर महंगाई का असर पड़ना तय है।
रेलमंत्री ने मालभाड़े की न्यूनतम बुकिंग 100 किमी से बढ़ाकर 125 किमी कर दी है। इससे कम दूरी के लिए माल भेजने वाले व्यापारियों पर ज्यादा बोझ पड़ेगा। लो रेटेड यानी एलआर की संख्या 4 से घटाकर 3 कर दी गई है। वहीं इसका खामियाजा आम जनता को भी भुगतना पड़ेगा। दरअसल, टेनों के किराया बढ़ने का असर तो सिर्फ यात्रा करने वालों पर पड़ेगा, मगर माल भाड़ा बढ़ने का असर सब पर पड़ेगा। अभी तक 100 किमी की दूरी के लिए एलआर-3 श्रेणी के तहत साढ़े 75 रुपये प्रति टन देने पड़ते थे, अब 125 किमी तक इस वर्ग से माल भेजने पर उन्हें साढ़े 90 रुपये प्रति टन का भुगतान करना पड़ेगा। जबकि एलआर-2 वर्ग पर अब प्रति टन साढ़े 17 रुपये, एलआर-1 वर्ग पर साढ़े 25 रुपये व क्लास 100 में माल भेजने पर सवा 21 रुपये प्रति टन अधिक खर्च आयेगा। इससे व्यापारी जब अधिक खर्च कर माल मंगाएगा तो उसकी भरपाई ग्राहकों से ही करेगा। सीमेंट, खाद-बीज, स्टील, लोहा, कोयला आदि की कीमतें बढ़ेगी। इतना ही नहीं परोक्ष उपायों के तहत रेलवे नए-नए घटकों के तहत यात्रियों से किराए के उपर शुल्क भी वसूलता है। उदाहरण के लिए आरक्षण शुल्क व सुपरफासट चार्ज की मदों के तहत प्रति टिकट 30 से 135 रुपये तक की वसूली की जाती है। जबकि राजधानी, दुरंतो व शताब्दी को छोड़ ज्यादातर टेनों की रफतार 50 किमी भी नहीं है। इसके अलावा खान-पान शुल्क व सर्विस टैक्स अलग से लिया जाता है। यह जानते हुए भी कि प्रतीक्षा सूची के 90 फीसदी लोगों को आरक्षण नहीं मिलेगा, वह वेटलिस्ट टिकटें बेचता रहता है।
वैसे भी अन्य रोजमर्रा की जरुरतों वाले चीजों के दाम लगातार बढत्र रहे है। वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक महंगाई दर क्रमशः 8-10 फीसदी तक रही है। खाद्य वस्तुओं व ईधन के महंगा होने से महंगाई में वृधि चिंता का विषय है। औद्योगिक उत्पादन को गति देने के लिए बढ़ती महंगाई को काबू करना जरुरी है। क्योंकि इसके अधिक होने से ब्याज दरों का स्तर भी उंचा रहा है। इससे उद्योग जगत के लिए ूपजी लागत बढ़ेगी। इसलिए विकास दर को पटरी पर लाने के लिए खाद्य महंगाई को काबू करने पर सरकार को जोर देना चाहिए। खाद्य महंगाई पर काबू पाने के लिए माॅडल कृषि उत्पाद मार्केटिंग कमेटी कानून को लागू करना चाहिए। उन्नत आपूर्ति श्रृखंला बनानी चाहिए। कृषि में निवेष बढ़ाने के अलावा और खुदरा क्षेत्र में एफडीआई को प्रोत्साहित करना चाहिए। सरकार का यह कदम देश की निम्न व मध्यम वर्गीय जनता के साथ मजाक है। एक तरफ महंगाई आसमान छू रही है दूसरी ओर रेल किराया माल भाड़ा बढ़ाकर सरकार आग में घी डालने का काम कर रही है। इस बढ़ोत्तरी से देश की अर्थव्यवस्था डावाडोल हो जायेगी। उत्पादों के दाम कम होने के बजाएं बढ़ जायेंगे। सरकार से ऐसे फैसले की उम्मीद नहीं थी। सरकार ने महंगाई पर लगाम कसने आने दावे अच्छे दिन वाले है, को बजट से पूर्व ही खोखला साबित कर दिया है।
बेशक रेल मंत्रालय ने इस बढ़ोत्तरी का प्रस्ताव यूपीए सरकार के कार्यकाल में तैयार कर लिया था और उस सरकार ने शायद चला-चली की बेला में इसे लागू भी इसलिए नहीं किया कि इसका अपजश नई सरकार भोगें। फिर भी नई सरकार के पास बदनामी के इस ठिकरे से बचने के पूरे अवसर थे, लेकिन इसका फायदा वह नहीं उठा पाई। उल्टे रेल मंत्रालय व रेल बोर्ड ने कदम-कदम पर भ्रष्टाचार व निकम्मेपन के लिए मशहूर भारतीय रेल का सारा पाप मोदी सरकार के मार्फत देश और तमाम रेल यात्रियों पर डाल दिया। इसमें न तो उसने अमीर-गरीब का भेद किया और न ही गरीब के काम आने वाले वस्तुओं का। रेल मंत्रालय जानता है िकइस क्षेत्र में उसका एकाधिकार है इसलिए यात्रियों की मजबूरी है कि वे उसी में सफर करेंगे। बैठकर, खड़े-खड़े या लटककर। वह यह भी जानता है कि देश लंबे समय तक उसके पास को नहीं झेल पायेगा। देर-सबेर अन्य क्षेत्रों की तरह रेल भी निजी हाथों में जायेगी। वह भी भारी-भरकम राशि लगाने वाली विदेशी कंपनियों के। और वे सबसे पहले मुनाफा देखेंगे, इसलिए यह बढ़ोत्तरी हो गई। जहां तक सरकार का सवाल है कम से कम वह अभी तो जब देश की जनता उससे अच्छे दिनों की उम्मीद कर रही है इससे बच सकती थी। वह कह सकती थी कि नई सरकार अभी रेलवे की कामकाज का अध्ययन करेगी। सीएजी से उसके खाते और गड़बडि़यां दिखवाएगी।देखेगी कि घाटा क्यों है। और क्या किराया बढ़ाएं बिना रेलवे के भ्रष्टाचार को कम करके पूरा नहीं किया जा सकता। यदि रेलवे को रेल लाइन विस्तार और सुविधाओं के लिए धनराशि चाहिए थी तो उस पर भी वह राज्यों धन लेने सहित अन्य विकल्पों पर बात कर सकती थी। ऐसा करने के बजाएं एनडीए सरकार निकम्मे तंत्र और पिछली सरकार के छोड़े जाल में आ गई। ऐसे में मोदी के अच्छे दिनों की मजाक उ़ना स्वाभाविक है। मोदी चाहे तो 25 जून को लागू होने से पहले इस अफसरशाही फैसले को बदल सकते है।
देर से लिया गया सही फैसला
हालांकि रेलवे विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में पूरी दुनिया से रेल किराया कम है। देश में आज भी यात्रा करने के लिए सबसे सस्ता साधन रेल को ही माना गया है। मौजूदा समय में रेलवे को पैसेंजर सब्सिडी के चलते 26 हजार करोड़ रुपये का घाटा हो रहा है। रेलवे में सुधार के लिए उसके पास वृत्तिय स्रोतों की कमी है। इस साल के अंत तक यह घाटा 25-30 हजार करोड़ पहुंचने की आशंका थी। ऐसे में यात्री और माल भाड़ा किराया बढ़ाना जरुरी हो गया था। रेलवे को नए प्रोजक्ट्स के लिए पैसे की काफी कमी थी। रेलवे की कई ऐसी योजनाएं थी जो बजट नहीं होने की वजह से या तो पूरी या शुरु नहीं हो सकी। फैसले का स्वागत किया जाना चाहिए। रेलवे को तकनीक से जोड़ने की बात तो हमेशा होती है लेकिन तकनीक पर खर्च होने वाला पैसा कहां से आयेगा। विदेशो में रेल हादसे कम होते है क्योंकि वहां नए जमाने की तकनीक रेलवे को हर कदम पर मदद करती है। भारत में ऐसे तकनीक को लाने के लिए काफी बजट की जरुरत होगी। ऐसे में रेल किराए को बढ़ाने के फैसले का स्वागत किया जाना चाहिए। जाड़े के दिनों में टेनें घंटों लेट हो जाती है जिससे रेलवे को करोड़ों को नुकसान होता है। हमें ऐसी तकनीक लानी होगी जिससे इस घाटे को कम किया जा सके। किराए में बढ़ोत्तरी की वजह से इस साल रेलवे को कम से कम 11 हजार करोड़ का फायदा होगा। ऐसा नहीं है कि यह फायदा रेलवे अपने पास रख लेता है। रेलवे इस पैसे का इस्तेमाल यात्रियों की सुविधा पर ही खर्च करता है। हालांकि यह किराया यूपीए सरकार में ही बढ़ने वाला था लेकिन चुनावों को देखते हुए इसे टाल दिया गया। अब जब नयी सरकार केन्द्र में आई है, ऐसे में किराया बढ़ाने के फैसले को लागू किया गया है। पिछले कई सालों से देश में लगातार ईधन के दाम बढ़ रहे है ऐसे में रेलवे को चलाने के लिए यह जरुरी हो गया था कि जल्द ही कड़े फैसले लिए जाय। रेलवे अपने बजट का लगभग 24 प्रतिशत ईधन पर खर्च करता है। पिछले 10 सालों में पटरियों पर टेनों की संख्या तो बढ़ती चली गयी लेकिन किराया वहीं रहा।
(सुरेश गांधी)
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