विशेष आलेख : गांव की लड़कियां भी देख रही हैं उज्जवल भविष्य के सपने - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 21 जून 2014

विशेष आलेख : गांव की लड़कियां भी देख रही हैं उज्जवल भविष्य के सपने

लड़कियां हर क्षेत्र में मर्दों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही हैं। आज लड़कियों की प्रतिभा का लोहा हर कोई मानने को तैयार है। वक्त बदल रहा है और वक्त के साथ महिलाओं की स्थिति में भी काफी बदलाव आया है। पहले महिलाओं के प्रति लोगों की सोच हुआ करती थी कि महिलाओं का काम सिर्फ घर संभालने तक ही सीमित है। लेकिन महिलाओं ने हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा साबित कर इस बात का लोहा मनवाया है कि महिलाएं अब किसी भी मामले में पुरूषों से पीछे नहीं है। राजनीति की बात करें तो ममता बनर्जी, जयललिता, ज्योति राजे सिंधिया, मायावती अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुकी हैं। वहीं अगर खेल जगत की बात करें तो बैडमिंटन खिलाड़ी सायना नेहवाल और टैनिस स्टार सानिया मिर्जा ने भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। हर क्षेत्र में लड़कियां उंचाईयों पर पहुंचकर आसमान को छू रही हैं। लेकिन आज भी ग्रामीण महिलाओं के प्रति लोगों की सोच यही बनी हुई है कि ग्रामीण क्षेत्र की लड़कियां शहरी क्षेत्रों की लड़कियों से कमतर है। ग्रामीण लड़कियों में पहले इस तरह की सोच होती थी कि मैं तो गांव की लड़की हूँ, मैं क्या कर सकती हूँ । डाक्टर, पुलिस और इंजीनियर कैसे बन सकती हूँ। अगर मैं कुछ करना चाहूँ तो समाज वाले करने ही नहीं देंगे। इसलिए मैं ऐसा सपना ही नहीं देखती जो पूरा ही नहीं हो। जी हां कुछ इसी तरह का हाल पहले बिहार के मुज़फ्फपुर जि़ले के अंर्तगत साहेबगंज और पारू ब्लाक की ग्रामीण लड़कियों का था। लेकिन आज इस गांव की लड़कियां अपने लिए उज्जवल  भविष्य के सपने देखती है। वक्त के साथ यहां भी काफी बदलाव आया है। सबसे अच्छी बात यह है कि यहां के लोगों की सोच बदली है और वह अपनी लड़कियों को पढ़ाना लिखाना चाहते हैं। 
           
हुस्सेपुर परनी छपड़ा की स्थानीय निवासी शोभा शर्मा कहती हैं कि मुझे नौकरी करनी है और मैं नौकरी लेकर ही रहूंगी। इसके लिए बैंकिंग, एसएससी या जो भी प्रतिय¨गिता परीक्षा होती है, मैं उसमें शामिल होती हूँ। इसकी तैयारी के लिए घर से 7 किलोमीटर दूर कोचिंग संस्थान में पढ़ने के लिए जाती हूँ। एक न एक दिन तो मुझे सफलता मिलेगी ही। वहीं यहीं की स्थानीय निवासी अनिता राम पढ़-लिखकर पत्रकार बनना चाहती हैं। इस गांव में मैट्रिक के बाद किसी भी तरह की पढ़ाई के लिए कोई सुविधा नहीं है। बावजूद इसकेे यहां की लड़कियों में पढ़ लिखकर आगे बढ़ने की ललक साफ देखी जा सकती है। पढ़ने के लिए चैक पर या षहर जाना होता है। पहले लड़के ही दूर-दूर साईकिल से पढ़ने जाते थे और लड़कियां मैट्रिक के बाद आर्ट्स ले लेती थी और घर पर ही तैयारी करती थीं।  लेकिन अब लड़कियां कामर्स और साइंस भी ले रही हैं और लड़कों की तरह उतनी ही दूर साईकिल से ट्यूषन पढ़ने जाती हैं। इस बारे में यहां के स्थानीय निवासी रामस पासवान कहते हैं कि अब पहले वाली बात नहीं है। हमने भी अपनी बेटी को घर से दूर, कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय पढ़ने के लिए भेजा है ताकि हमारी बेटी भी दूसरों की तरह पढ़ लिखकर आगे बढ़ सके। रामस पासवान ने अपनी बड़ी बेटी की षादी कम उम्र में ही कर दीे थी, मगर वह अपनी छोटी बेटी को अपने से दूर रखकर उसे पढ़ा रहे हैं। 2009 में चांदकेवारी के एक मुस्लिम मोहल्ले से पहली बार षकिला ने मैट्रिक की परीक्षा दी थी। लेकिन अब स्थिति बदल गई है और यहां की ज़्यादातर लड़कियां मैट्रिक के बाद भी पढ़ रही हैं। 
         
यहां की कुछ लड़कियां तो ट्यूशन पढ़ाकर अपनी आगे की पढ़ाई का खर्चा निकाल रही हैं। सामाजिक कार्यकर्ता महेन्द्र ठाकुर कहते हैं कि लोगों की सोच में बदलाव इसका मुख्य कारण है। सभी अपने घर के लिए पढ़ी-लिखी बहू चाहते हैं। यही वजह है कि लोग अपनी बेटियों को पढ़ा रहे हैं। 2011 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक पिछले दस वर्शों में बिहार की लड़कियों की साक्षरता दर में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। आंकड़े बता रहे हैं कि बिहार की बेटियां अब पढ़ रही हैं और आगे बढ़ रही हैं। पिछले एक दशक में बिहार में महिला साक्षरता दर में 20.2 प्रतिशत, वहीं पुरूषों की साक्षरता दर में मात्र 13.8 प्रतिषत का इज़ाफा हुआ है। वर्श 2001 में महिला साक्षरता दर जहां 33.1 प्रतिशत थी, वहीं यह बढ़कर 53.33 प्रतिशत तक पहुंच गई है। महिलाओं की साक्षरता दर में आई उछाल को राज्य सरकार अपनी योजनाओं का प्रतिफल मानती है। मुख्यमंत्री साईकिल योजना प्रारंभ होने के पूर्व 2007 में नौवीं कक्षा में पढ़ने वाली छात्राओं की संख्या 1 लाख 70 हज़ार थी, वही इस योजना के बाद वर्ष 2010 में केवल नौंवी में पढ़ने वाली छात्राओं की संख्या 5 लाख 55 हज़ार तक पहुंची है। बिहार में महिला साक्षरता दर दूसरे राज्यों के मुकाबले काफी कम है। लेकिन नारी जाति के शिक्षा के प्रति बढ़ते रूझान की वजह से महिलाओं के साक्षरता दर में मात्रात्मक वृद्धि हुई है। मैं उम्मीद करती हूँ कि आने वाले समय में बिहार की लड़कियां पढ़-लिखकर राज्य के साथ-साथ देश का नाम भी रौशन करेंगी। 




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खुशबु कुमारी
(चरखा फीचर्स)

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