आलेख : बड़ा नहीं बढ़िया होना जरूरी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 20 जून 2014

आलेख : बड़ा नहीं बढ़िया होना जरूरी

इंसान बड़ा होना चाहिए या बढ़िया। यह अपने आप में बड़ी बहस का विषय है जिसमें बड़ा होने की पृष्ठभूमि से लेकर बड़ा हो जाने के बाद तक की तमाम स्थितियों का विवचेन करना जरूरी है। उन सभी लोगों को देखना भी जरूरी है जो कि बड़ों की देखादेखी बड़े हो गए, अपने बाप-दादों की विरासत पर बड़े हो गए, वंशानुगत प्रभावों से बड़े हो गए या अपने आपको बड़े मानने लग गए या कि खुद के दम पर बड़े होकर दिखा रहे हैं या दिखा चुके हैें।
कुल मिलाकर बड़ा होने के दो ही आधार हैं। एक तो यह है कि पारिवारिक पृष्ठभूमि ऎसी मिल जाए कि आदमी पैदा होते ही बड़ा होने के सफर पर चलना शुरू कर दे और फिर कभी छोटा हो ही नहीं, बड़ा ही बड़ा होता जाए और सभी लोग भी उसे इसी रूप में स्वीकारते रहें और बड़ा होने का सम्मान चाहे-अनचाहे दिया करें। इसी प्रकार बड़े लोगों में उनको भी शुमार किया जा सकता है जो कि अपने बूते संघर्ष करते हुए आगे बढ़े और बड़े होते गए। बड़ा होना और बड़ा होने का भ्रम पाले रखना  या कि बड़प्पन दिखाना अपने आप में अलग बात है और वाकई बड़ा होने के लायक होना दूसरी बात।

बड़ा होने की यात्रा  पूरी करने वाले या बड़े हो जाने वाले लोगों की ढेरों किस्मों के बीच यह जरूरी नहीं कि जिन्हें हम बड़ा समझते हैं या जो अपने आपको बड़ा मान बैठे हों वे वास्तव में बड़े हों ही। क्योंकि कौन कितना बड़ा है, इसका निर्णय वे लोग नहीं कर सकते हैं जो कि खुद को बड़ा मान बैठे हैं। इसका निर्णय वे लोग करते हैं जो उनके सम्पर्क में आते हैं और आम इंसान होते हैं जिनके पास न कोई सिफारिश होती है, न और कुछ। किसी न किसी काम से या कि बिना किसी काम के जो अनजान लोग हमारे संपर्क में आते हैं वे ही हमारे बड़े होने या न होने का असली मूल्यांकन करने वाले होते हैं क्योंकि बड़प्पन का पैमाना बड़े लोग नहीं होते बल्कि वे लोग होते हैं जिन्हें सामान्य इंसान माना जाता है, जो किन्हीं वादों, प्रभावों और पॉवर से मुक्त हुआ करते हैं।

दुनिया भर में खूब सारे बड़े-बड़े लोग हैं जिन्हें हम भी बड़ा मानते हैं, दुनिया भी मानती है और ये लोग खुद भी अपने आपको बड़ा मानते या मनवाते ही हैं। हर तरफ बड़े-बड़ों की जनसंख्या के भारी विस्फोट के बीच कोई भी दृढ़तापूर्वक यह नहीं कह सकता कि जो बड़े हैं अथवा बड़ा होने का भ्रम पाले हुए हैं, वे सारे के सारे बढ़िया ही हैं अथवा हो सकते हैं। 

बड़ा होना या बन जाना अलग बात है, और बढ़िया होना दूजी बात। जो बड़ा है वह बढ़िया ही हो , यह  कोई जरूरी नहीं है लेकिन जो बढ़िया है वह बड़ा हो न हो, लोगों के दिलों-दिमाग में बड़ा स्थान जरूर पा जाता है। हम खूब सारे ऎसे लोगों को देखते हैं जो बड़े कहे जाते हैं और अपने आपको बड़ा कहलवाने के लिए जाने किन-किन किस्मों के जतन करने में जुटे रहते हैं फिर भी लोग इन्हें दिल से कभी बड़ा स्वीकार नहीं कर पाते।

अपने आपको बड़ा दिखाने के लिए हम जिंदगी भर जितने षड़यंत्रों, समझौतों, आडम्बरों, पाखण्डों और गोरखधंधों में रमे रहते हैं, उसका दसवां हिस्सा भी अपने आपको बढ़िया बनाने में लगा दें तो हम दुनिया की नज़रों में वो स्थान पा सकते हैं कि हर कोई अपने दिल से हमें बड़ा मानने और स्वीकारने ही नहीं, बल्कि हमारा अनुकरण भी करने लग जाए। लेकिन अपने आपको बढ़िया बनाने के सारे प्रयासों में ईमानदारी और लक्ष्य के प्रति शुचिता का होना जरूरी है।

हम सभी लोग बड़ा होने और दिखाने के लिए जिंदगी भर के समीकरणों के अनुपात अपने हक़ में करने के लिए जो कुछ भी किया करते हैं उसकी अपेक्षा बढ़िया होने के थोड़े से प्रयास ही काफी हैं। आज समाज और देश को बड़े लोगों की नहीं बल्कि उन लोगों की जरूरत है जो कि बढ़िया हों ताकि उनका लाभ और प्रभाव समुदाय को प्राप्त हो सके। जो बढ़िया होता है वह अपने आप बड़ा हो जाता है और पूरी दुनिया उसे बड़ा मानने और स्वीकारने लग जाती है इसलिए बड़ा होने की बजाय बढ़िया होने का प्रयास करें ताकि अपने मनुष्य जन्म को सफल बना सकें।




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---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
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