यह एक सर्वविदित गौरवपूर्ण तथ्य है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी निष्ठावान शुद्ध शाकाहारी हैं। वे मद्यपान और धूम्रपान जैसे व्यसनों से भी कोसों दूर हैं। यूँ तो स्वतंत्र भारत को अनेक शाकाहारी राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और प्रभावषाली राजनेता मिले हैं तथा भारत जैसे ऋषिप्रधान व कृषिप्रधान देष में ऐसा अवष्य ही होना चाहिये; लेकिन इस मामले में मोदी की बात उत्साहवर्द्धक और अभिनन्दनीय है। प्रधानमंत्री चाहते हैं कि देष की जनता शाकाहारी जीवनश्षैली की महŸाा समझें और शाकाहार अपनाएँ। प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने अनेक मुद्दों पर सकारात्मक तथा साहसिक निर्णय लिये हैं एवं ले रहे हैं। प्रसन्नता की बात है कि उनके निर्णयों में शाकाहार जैसा महत्वपूर्ण विषय भी समाविष्ट है। शासक द्वारा सरकारी स्तर पर शाकाहार का मुक्त समर्थन और प्रोत्साहन सार्वजनिक जीवन में अहिंसा व शुचिता का एक अहम् हिस्सा है।
शाकाहार के पैरोकार:
‘राजस्थान पत्रिका’ (चेन्नई/बेंगलुरु) के 14 जून 2014 के अंक में ‘अब शाकाहार के पैरोकार बनेंगे मोदी’ शीर्षक से समाचार प्रकाषित हुआ है। समाचार के अनुसार प्रधानमंत्री के सरकारी आवास सात रेसकोर्स रोड़ में अब किसी भी सरकारी भोज तथा मोदी द्वारा दी जाने वाली निजी दावत में मांसाहार पूरी तरह प्रतिबंधित करने के निर्देष जारी किये गये हैं। इस क्रम में प्रधानमंत्री अपने सभी केबिनेट मंत्रियों से उनके मंत्रालयों में और केन्द्र सरकार द्वारा आयोजित किये जाने वाले भोज में मांसाहार से दूरी बनाए रखने के निर्देष भी जारी करेंगे। देष के समस्त अहिंसाप्रेमी चाहेंगे कि ऐसे निर्देष अवष्य जारी हों तथा उनका अक्षरषः पालन हो। केन्द्र सरकार के अधीन संचालित विभागों, निकायों और उपक्रमों के लिए भी ऐसा नियम बने कि सरकारी स्तर पर आयोजित होने वाले भोज शाकाहारी ही हो। देष की राज्य सरकारों को भी अपने मंत्रालयों और विभागों में सरकारी स्तर पर निरामिष-व्यवस्था अपनाने के निर्देष दिये जाने चाहिये।
स्टार डिष शाकाहार:
प्रधानमंत्री द्वारा शाकाहार को ‘स्टार डिष’ (सितारा थाली) और मांसाहार को ‘हार्म डिष’ (हानिकारक थाली) के रूप में निरूपित करना बिल्कुल सही है। ‘स्टार डिष’ और ‘हार्म डिष’ जैसी युगीन शाब्दावली युवावर्ग तथा परम्परागत मांसाहारी व्यक्ति भी पसन्द कर रहे हैं। सेहत, फैषन, शाौक, योग या करुणाभावना; किसी भी कारण या कारणों से देष और दुनिया में स्टार डिष (षाकाहार) के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है। शाकाहार वाकई स्टार डिष है, श्रेष्ठ भोजन है और मांसाहार हार्म डिष यानी बुरा भोजन है। शाकाहार स्वस्थ्यकारी, सौहार्दवर्द्धक, अहिंसक, पर्यावरण-रक्षक एवं स्वाद-सुगंध से भरपूर पौष्टिक आहार होता है, इसलिए शाकाहार को ‘स्टार डिष’ कहना बिल्कुल सही है। इसके विपरीत मांसाहार स्वास्थ्य, शान्ति, पर्यावरण और करुणाभाव को भारी नुकसान पहुँचाता है, इसलिए उसे ‘हार्म डिष’ कहना सर्वथा उचित है।
शाकाहार जागरूकता अभियान:
सूत्रों के अनुसार प्रधानमंत्री शाकाहार में उपलब्ध अपार संभावनाओं तथा निरामिष खानपान के प्रति लोगों को प्रवृŸा करने के लिए जागरूकता अभियान चलाने की दिषा में गंभीरता से विचार कर रहे हैं। विष्वास किया जाना चाहिये कि भारत की धर्मप्राण जनता और मीडिया ‘शाकाहार जागरूकता अभियान’ को उसी प्रकार गति देंगे, जिस प्रकार चुनावों के दौरान मतदान जागरूकता अभियान को गति दी थी। इस विष्वास के साथ यह विष्वास भी बढ़ता है कि देष में गतिमान अहिंसा, शाकाहार और जीवदया के अभियान और आन्दोलनों को पर्याप्त सरकारी संरक्षण और समर्थन भी मिलेगा। इस सन्दर्भ में अहिंसाप्रेमियों और अहिंसा-प्रचारक संगठनों से यह निवेदन हैं कि वे अपनी कार्यप्रणाली तथा गतिविधियों में समान उद्देष्य वाले सभी संगठनों के साथ सहयोग व समन्वय को बढ़ावा दें। नाम और श्रेय के चक्कर में नहीं पड़ते हुए उद्देष्य और लक्ष्य को महत्व दें। ऐसा करने से अहिंसा की शक्ति बढ़ेगी। फलस्वरूप शाकाहार अभियान को जनता, शासन और प्रषासन, सबका अधिकाधिक सहयोग मिल सकेगा।
आर्थिक पक्ष:
अहिंसा और शाकाहार का वाणिज्यिक पक्ष भी हमेषा से लाभदायक रहा है, लेकिन इस महत्वपूर्ण पक्ष को नजरअन्दाज किया जाता रहा है। वर्तमान प्रधानमंत्री इस पक्ष पर भी ध्यान देना चाहते हैं। उनकी सरकार ‘कृषि और प्रसंस्कृत आहार उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण’ द्वारा मांस की ढुलाई, प्री-कुलिंग सुविधा, कोल्ड स्टोरेज के लिए दिया जाने वाला अनुदान (सब्सिडी), बिक्रीकर और आयकर पर दी जाने वाली छूटों पर कटौती करने तथा धीरे-धीरे खत्म करने पर भी गंभीरता से विचार कर रही है। सरकार के ऐसे कदमों से जीवहत्या, मांस-उत्पादन, मांस-व्यापार, हिंसक उद्योग-धंधों और बूचड़खानों पर अंकुष लगेगा, प्रदूषण घटेगा, स्वच्छता और समृद्धि बढ़ेगी। इन अनुकूल खबरों के बीच देष की जनता गोवध पर देषव्यापी पूर्ण प्रतिबंध तथा मांस-निर्यात निषेध की उम्मीदें भी लगाये बैठी है। इस सम्बन्ध में सम्बन्धित व्यक्तियों और संगठनों को अपनी तथ्यपूर्ण तैयारी, परिश्रम और टेबल-वर्क करना चाहिये, जिससे अहिंसा और सर्वोदय के सपने साकार हो सके।
शोध की अपेक्षा:
मांसाहार और मांस-व्यवसाय पर नियंत्रण से खेती-बाड़ी, कृषि, आयुर्वेद आदि को बढ़ावा मिलेगा। कृषि को बढ़ावा मिलने से किसानों की समृद्धि बढ़ेगी, किसानों द्वारा आत्महत्या की घटनाएँ नहीं होंगी, रोजगार बढ़ेगा और देष की ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत होने से गरीब-अमीर, शहरी-ग्रामीण या ग्राम-नगर के विषम विकास पर विराम लगेगा। अहिंसा और शाकाहार का आर्थिक पक्ष बेहद सुदृढ़ है। इस विषय पर शोधपरक, सर्वेक्षणात्मक और प्रायोगिक कार्य करने की बहुत आवष्यकता है। जीवदया और शाकाहार-प्रचार के लिए समर्पित संगठनों को इस दिषा में ठोस कार्य करने चाहिये। इस दिषा में किये और करवाये गये प्रामाणिक कार्यों की शासन, प्रषासन और न्यायिक क्षेत्र में सार्वकालिक उपयोगिता होती है। अर्थ, विŸा, वाणिज्य, कर, राजस्व और कृषि में विषेषज्ञता रखने वाले महानुभावों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे तथ्यपरक विचार और सामग्री प्रस्तुत करें। देष के षिक्षण संस्थान, रोजगार केन्द्र और उद्यमी इस दिषा में कुछ करके दिखाएँ। वे ऐसे व्यावहारिक उपाय भी सुझाएँ कि किस प्रकार हिंसक व्यवसाय के स्थान पर अहिंसक व्यवसाय बेहतर और लाभकारी विकल्प हो सकते हैं।
मानवीय मुद्दा:
हिंसा जिस प्रकार अपने पाँव पसारे और जड़ें जमाए बैठी है, वहाँ महज ‘शाकाहार जिन्दाबाद’ का नारा लगा देना पर्याप्त नहीं है। अहिंसाप्रधान व्यवस्था की स्थापना के लिए शाकाहार की व्यापक आर्थिक और मानवीय मीमांसा की जानी चाहिये। ऐसी सार्थक चर्चा और कोषिषों की ओर जनता, समाज और सरकार का ध्यान आकर्षित किया जाना चाहिये। फलतः पारस्परिक सहयोग से अनुकूल वातावरण बनेगा। पुष्करवाणी ग्रुप ने जानकारी एकत्रित करते हुए बताया कि चुनाव प्रचार के दौरान 17 अक्टूबर 2013 को पटना में एक रैली में नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि मांस उद्योग से देष को बहुत नुकसान हो रहा है। असल में मांसाहार और बूचड़खानों से देष क्या, पूरी दुनिया को नुकसान हो रहा है। विषेषज्ञों के अनुसार विभिन्न आपदाएँ, ग्लोबल वार्मिंग, प्रदूषण, बीमारियाँ, भुखमरी, जलसंकट, आतंक, अपराध, अनाचार आदि की बुनियाद में कहीं न कहीं बढ़ती जीवहत्या, षिकार और मांसाहार भी है। ये सारी बुराइयाँ व्यक्ति, समाज, देष और दुनिया को विपन्न बना रही हैं। ऐसी प्रत्येक बुराई पर स्वतंत्र आर्थिक व गैर-आर्थिक विचार-विमर्ष से यह सिद्ध हो जाता है कि मांसाहार और जीवहत्या से व्यक्ति और विष्व को भारी नुकसान हो रहा है। इन सारे सन्दर्भों में शाकाहार मात्र आहार ही नहीं होकर, एक समष्टिगत मानवीय और आर्थिक मुद्दा सिद्ध हो जाता है।
भारत की शान:
प्रतिदिन लगातार अठारह घण्टे कार्य करने वाले 64 वर्षीय प्रधानमंत्री श्री मोदी स्वयं अपनी फिटनेस का राज शाकाहार और नियमित योग को देते हैं। गांधी जयन्ती दो अक्टूबर 2013 (विष्व अहिंसा दिवस) पर श्री मोदी ने एक कार्यक्रम में कहा था कि आज पूरी दुनिया में शाकाहार के प्रति रुझान बढ़ रहा है। उन्होंने कहा था कि शाकाहार सिर्फ खाना (भोजन) ही नहीं है, अपितु हमारी विरासत है, ताकत है तथा हिन्दुस्तान की पहचान है। धार्मिक, पारम्परिक, प्राकृतिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक आदि कई कारणों से भारत की बहुसंख्यक आबादी सदैव शाकाहारी रही है। सचमुच, शाकाहार भारत, भारतीयता और भारतवासियों की शान और पहचान है। अब इस पहचान को बहाल करने तथा विष्वव्यापी बनाने का वक्त आ गया है। आओ! पूरी दुनिया में अहिंसा और शाकाहार का परचम फहराएँ।
---डाॅ. दिलीप धींग ---
निदेषक: अंतरराष्ट्रीय प्राकृत अध्ययन व शोध केन्द्र
सुगन हाउस, 18, रामानुजा अय्यर स्ट्रीट
साहुकारपेट, चेन्नई-600001
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