बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को रविवार को मुजफ्फरपुर के अस्पताल में इन्सेफलाइटिस से जूझ रहे बच्चों के परिजनों के गुस्से का सामना करना पड़ा। केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री उपेंद्र कुशवाहा को भी इसी तरह की नाराजगी का सामना करना पड़ा। अधिकारियों ने बताया कि पिछले 12 घंटे में 10 और बच्चों की मौत होने के बाद इस संदिग्ध बीमारी से मरने वालों की संख्या 25 हो गई है। मांझी रविवार को सरकार संचालित श्री कृष्ण मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (एसकेएमसीएच) में भर्ती बच्चों का हाल-चाल जानने पहुंचे थे। वहां भर्ती बच्चों के माता-पिता और रिश्तेदारों ने विरोध प्रदर्शन किया।
एक बच्चे के रिश्तेदार मनीष कुमार ने कहा, "हमने प्रदर्शन किया और इलाज में स्वास्थ्य अधिकारियों की ओर से बरती जा रही उदासीनता व बुनियादी ढांचा की कमी पर विरोध जताया।" इन्सेफलाइटिस से मौत बढ़ने से चिंतित मांझी और राज्य के स्वास्थ्य मंत्री रामधनी सिंह ने एसकेएमसीएच का दौरा किया और चिकित्सकों एवं जिला अधिकारियों को उपचाराधीन बच्चों को सभी संभव सहायता करने को कहा।
स्वास्थ्य अधिकारी राजेंद्र प्रसाद ओझा ने कहा, "मांझी ने स्वास्थ्य एवं जिला अधिकारियों को बीमारी पर नियंत्रण पाने का उपाय भी अमल में लाने और प्रभावित बच्चों को तुरंत इलाज मुहैया कराने का निर्देश दिया।" मांझी से एक घंटा पहले कुशवाहा ने अस्पताल का दौरा किया था। उनहें लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा। लोगों ने बच्चों को बचाने में केंद्र सरकार से हस्तक्षेप की मांग की।
कुशवाहा के यह कहने के बाद कि वे इस दौरे की रिपोर्ट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंपेंगे और उनसे स्वास्थ्य विशेषज्ञों की टीम मुजफ्फरपुर भेजने का आग्रह करेंगे, लोग शांत हुए। एक स्वास्थ्य अधिकारी ने कहा कि संदिग्ध बीमारी से ग्रस्त 30 से ज्यादा बच्चे विभिन्न अस्पतालों में भर्ती हैं। स्वास्थ्य महकमे के मुख्य सचिव दीपक कुमार ने कहा कि जैकब जॉन की अध्यक्षता में अमेरिकी विशेषज्ञों की टीम बच्चों की मौत की असली वजह पता करने में जुटी है।
इस जानलेवा बीमारी से हर वर्ष मई जून में मुजफ्फरपुर, गया और इसके आसपास के जिलों के लोग प्रभावित होते हैं। मच्छर से होने वाले इस संक्रामक रोग ने इस बार थोड़ी देरी से बच्चों को अपनी चपेट में लिया है। राज्य सरकार ने इस वर्ष के शुरू में बीमारी की रोकथाम के लिए बड़े पैमाने पर टीकाकरण अभियान चलाया था। पिछले वर्ष मुजफ्फरपुर में 62 बच्चों की मौत हुई थी और 2012 में 150 बच्चों को बीमारी ने लील लिया था।
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