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रविवार, 22 जून 2014

विशेष आलेख : इंसाफ चाहिए इंसाफ

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एक समय था जब माना जाता था कि भारत की संस्कृति में शादी एक ऐसा बंधन है जिसे भाग्य खुद तय करता है अ©र मृत्यु के अलावा क¨ई भी इस रिश्ते क¨ त¨ड़ नहीं सकता है। किंतु समय के साथ-साथ जैसे अन्य चीज¨ं में परिवर्तन आया वैसे ही शादी नामक इस संस्था में भी बड़े परिवर्तन आए। बढ़ती आधुनिकता ने जहां विकास के नाम पर मानवता क¨ सैकड़¨ं साल¨ं की छलांग दी वहीं आधुनिकता अ©र विलासिता की ह¨ड़ ने मानवीय संबंध¨ं पर भी असर डाला। आधुनिकता ने समाज में अलगाव की भावना क¨ जन्म दिया अ©र यही अलगाव पति-पत्नी के संबंध¨ं में भी आने लगा है। यह अलगाव यहचां तक बढ़ गया है कि अब तलाक जैसी परिघटना ज¨ एक समय में ल¨ग¨ं के लिए स¨चना भी मुश्किल था अब एक आम परिघटना बन चुकी है। बदलती जीवनषैली और आज़ाद सोच के कारण षादियों का अंत तलाक के साथ हो रहा है। साल 2012 में देषभर में 43 हज़ार तलाक के मामले सामने आए। करीब 5 साल पहले 1000 षादियों में तलाक का एक मामला सामने आता था लेकिन अब 1000 षादियों में यह मामले 13 हो चुके हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि जीवन में जितनी बड़ी सच्चाई षादी है उतना ही बड़ा सच तलाक भी है। पति-पत्नी में मनमुटाव के कारण तलाक हो जाता है लेकिन इसका सीधा असर उनके बच्चों की जिंदगी पर पड़ता है। एक ऐसा ही किस्सा जम्मू एवं कष्मीर के सीमावर्ती जि़ले पुंछ की तहसील मंडी के छम्बर खेत की रहने वाली साजा बेगम का है। साजा बेगम ( 60)  को बहुत कम उम्र में ही तलाक हो गया था। साजा बेगम कहती है कि मैं पिछले 30 साल से अपने और अपने बच्चों के अधिकार के लिए लड़ाई लड़ रही हंू। वह आगे कहती हैं कि मुझे न सही कम से कम मेरे बच्चों को तो इंसाफ मिल जाए। 
            
इंसान हर नई सुबह, एक नई जिंदगी की षुरूआत करता है, मगर साजा बेगम की जिंदगी में कुछ भी नया नहीं है। साजा बेगम की जिंदगी की खुषियां उस वक्त फीकी पड़ती चली गयी जब इनके पति मोहम्मद इमगारी ने दूसरी षादी कर ली। साजा बेगम के पति पुलिस की नौकरी से रिटायर्ड है। चार बच्चों के बाप को ज़रा भी इस बात का एहसास नहीं हुआ कि उनके दूसरी षादी करने से उनकी पत्नी और बच्चों का क्या होगा? साजा बेगम कहती हैं कि मेरे बच्चों को पढ़ने लिखने का बहुत षौक था लेकिन इनके पिता के बीच में षादी कर लेने की वजह से मेरे बच्चों का यह सपना पूरा न हो सका। इस बारे में साजा बेगम के बेटे मोहम्मद इकबाल कहते हैं कि हमने पढ़ाई लिखाई सिर्फ अपने पिता की वजह से छोड़ी थी क्योंकि उन्होंने दो साल के बाद हमारा खर्चा भेजना बंद कर दिया था। अपना अधिकार पाने के लिए हम लोग जि़ला कलेक्टर के  पास गए, उन्होंने हमें जि़ला जज के पास जाने की सलाह दी और कहा कि आप लोग उन्हें एक अजऱ्ी दीजिए। इस बात को मेरी मां ने नहीं माना और अजऱ्ी देने के बारे में कभी सोचा भी नहीं। इसका कारण यह था कि मेरी मां को इस बात का डर सताए रहता था कि कहीं मेरे बच्चे मुझसे छिन न जाएं। मां तो आखिर मां ही होती है। साजा बेगम अपनी कहानी आगे बताते हुए कहती हैं कि मेरे पति की दूसरी पत्नी अमीरी के मज़े लूट रहीं थी और इधर मैं अपनी किस्मत को रो रही थी। षादी के दस सालों के बाद मेरे पति ने मुझे तलाक देकर दूसरी षादी कर ली थी। मुझसे मेरा राषन कार्ड, जाॅब कार्ड सब कुछ छीन लिया गया और बदले में सिर्फ जिंदगी गुज़ारने के लिए खाली ज़मीन दी गई। खाली ज़मीन से क्या कोई जिंदगी बसर कर सकता है? सर छुपाने के लिए  साए की ज़रूरत होती है। बच्चों की मजदूरी और तिनका-तिनका इकट्ठा कर मैंने यह छोटा सा घर बनाया है। मेरा पति तो कानून का रखवाला होकर भी मुझे इस हालत में छोड़कर चला गया। मैं मानती हंू कि दूसरी षादी एक जुर्म के दायरे में नहीं आता है लेकिन क्या बराबरी का हक़ न देना जुर्म के दायरे से बाहर है क्या? कानून की जानकारी होते हुए भी मेरे पति ने मेरा और मेरे बच्चों का अधिकार छीना है। मेरे पति जब मेरे साफ ही इंसाफ नहीं कर सके तो अपनी पुलिस की नौकरी के दौरान उन्होंने लोगों के लिए क्या इंसाफ क्या होगा? साजा बेगम किसी न किसी तरह अपनी आधी जिंदगी गुज़ार ही चुकी है लकिन सवाल पर जिंदगी को खत्म कर देना कहां की अक्लमंदी होगा? 
            
निरक्षरता अ©र आत्मनिर्भर न ह¨ने की वजह से जिंदगी पर पति पर निर्भर रहती हैं। अ©र इस तरह की किसी अनह¨नी के लिए तैयार नहीं ह¨ती हैं। इसीलिए जब इस तरह की हालात¨ं का सामना उन्हें कर पड़ता है त¨ उनके पास लाचारी अ©र बेचारगी के सिवाय कुछ नहीं बचता है। हालांकि बढ़ते हुए तलाक के मामल¨ं के पीछे एक कारण महिलाअ¨ं का आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर ह¨ना माना जा सकता है किंतु ऐसी महिलाअ¨ं की संख्या साज़ा बेगम जैसी महिलाअ¨ं के बनस्पत कम है। ज्यादातर महिलाअ¨ं के लिए पति के छ¨ड़ देने के बाद जीवन चलाना मुश्किल ह¨ जाता है। न ही हमारे प्रशासन की तरफ से ही ऐसी महिलाअ¨ं के लिए क¨ई माकूल इंतजाम ह¨ता है। हालांकि कुछ गैर-सरकारी संस्थाएं ऐसी महिलाअ¨ं की मदद के लिए काम त¨ करती है किंतु वह नाकाफी है। आज जरूरत है कि महिलाअ¨ं क¨ इतना सशक्त किया जा जाए कि वे साज़ा बेगम के साथ हुए नाइंसाफी क¨ झेलने के लिए मजबूर न ह¨। पहले तो तलाक होना ही नहीं चाहिए क्योंकि तलाक का सीधा असर बच्चों की जिंदगी पर पड़ता है। तलाक के कारण फाइनेंषियल प्लानिंग के संबंध में बच्चे के संरक्षण पर असर नहीं पड़ना चाहिए। अगर पति- पत्नी को आपस में तलाक ही लेना है तो कानून के तहत आपसी रज़ामंदी से तलाक ले सकते है। लेकिन दोनों इस बात का ख्याल ज़रूर रखें कि तलाक का असर बच्चे की जिंदगी और उसके भविश्य पर न पड़े जिसका अभी निर्माण ही नहीं हुआ है। इसको हम एक उदाहरण से समझ सकते हैं। यही किसी ने चाइल्ड प्लान ले रखा है और इसे संयुक्त रूप से फंडित किया जा रहा है तो उसे बंद नहीं करना चाहिए। बेहतर होगा कि इसे जारी रखें और फंड को जमा करते रहें। परिजन बने रह कर प्लान को बनाए रखें और बच्चे की जि़म्मेदारियों को बराबर-बराबर बांटे। तलाक के बाद भी माता-पिता अपनी जि़म्मेदारी निभाकर बच्चों के भविश्य में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। 





शहनाज़ बुखारी 
(चरखा फीचर्स)

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