सोच-समझ कर बनाएं गुरु - महंत हरिओमशरणदास महाराज - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 11 जुलाई 2014

सोच-समझ कर बनाएं गुरु - महंत हरिओमशरणदास महाराज

  • गुरुपूर्णिमा की पूर्व संध्या पर वार्षिक प्रवचन

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बांसवाड़ा, 11 जुलाई/ऎतिहासिक लालीवाव अखाड़े के पीठाधीश्वर एवं जाने-माने भागवतकथाकर्मज्ञ संत महंत श्री हरिओमशरणदास महाराज ने कहा है कि गुरु और शिष्य का संबंध शाश्वत होता है और सच्चे गुरु के माध्यम से शिष्य संशय और शंकाओं से मुक्त होकर जीवन्मुक्ति के भाव में विचरण करता हुआ लौकिक एवं अलौकिक सफलताओं के आस्वादन का आंनद प्राप्त करता है तथा ईश्वर में विलीन हो जाता है। महंतश्री हरिओमशरणदास महाराज ने गुरुपूर्णिमा महोत्सव की पूर्व संध्या पर देश के विभिन्न हिस्सों से आए लालीवाव मठ के शिष्यों और भक्तों की वार्षिक सत्संग सभा में प्रवचन करते हुए यह उद्गार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि महाभारत, ब्रह्मसूत्र, श्रीमद् भागवत आदि के रचयिता महापुरुष वेदव्यासजी के ज्ञान का मनुष्यमात्र लाभ ले, इसलिए गुरुपूजन को देवताओं ने वरदानों से सुसज्जित कर दिया कि ‘जो सत् शिष्य सद्गुरु के द्वार जायेगा, उनके उपदेशों के अनुसार चलेगा, उसे 12 महीनों के व्रत-उपवास करने का फल इस आषाढ़ी पूनम के व्रत-उपवास मात्र से हो जायेगा । महाराजश्री ने कहा कि ब्रह्मवेत्ताओं के हम ऋणी हैं, उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए तथा उनकी शिक्षाओं का स्मरण करते हुए उन पर चलने की प्रतिज्ञा करने के लिए हम इस पवित्र पर्व ‘गुरुपूर्णिमा’ को मनाते हैं । गुरुपूर्णिमा के दिन हर शिष्य को अपने गुरुदेव के दर्शन करना चाहिए । प्रत्यक्ष दर्शन न कर पायें तो गुरुआश्रम में जाकर जप-ध्यान, सत्संग, सेवा का लाभ अवश्य लेना चाहिए । इस दिन मन-ही-मन अपने दिव्य भावों के अनुसार सद्गुरुदेव का मानस पूजन विशेष फलदायी है ।

गुरु बनाने के पहले जान लें
महंत ने कहा कि आजकल कालनेमि, रावण व राहू जैसे लोग भी संत के रूप में आ सकते हैं । ऎसे गुरुओं से सावधान रहने की आवश्यकता है । उन्होंने कहा की गुरु का काम हमेशा देना है। जो देता है वह गुरु है, और जो मांगने लगता है वह समझ लो भिखारी है। सद्गुरु में शिष्य की कल्पनाओं और आशा के अनुरूप वह सभी गुण छिपे होते हैं  जिनके प्रति वह श्रद्धावनत होना चाहता है।

गुरु बनाने के पहले जानने योग्य बातें
उन्होंने कहा कि गुरु बनाने के पहले उनके सिद्धांत, सम्प्रदाय, जाति, लक्षण या उनके विभिन्न कार्यकलाप देख समझ लें, इसके बाद ही गुरु बनायें, अन्यथा दोनों के लिए अनुचित होता है । बाद में गुरु के प्रति की गई निंदा या अविश्वास करने से हम पाप के भागी बनते हैं।

आत्मकल्याण के लिए सद्गुरु जरुरी
महंत ने कहा कि गुरु मंत्र में अद्भुत शक्ति होती है । साधक को इसका नित्य जाप करना चाहिए । यदि इस मंत्र का जाप विशेष पर्वों पर वर्ष में आठ बार किया जाए तो मंत्र सिद्ध हो जाता है और जीवन में सुख-समृद्धि के साथ आत्मशांति की प्राप्ति होती है तथा इसके साथ ही सिद्ध हुआ मंत्र साधक परम लक्ष्य पर जोर दिया । गुरु शब्द का संधि विच्छेद करें तो ‘गु’ यानी अधंकार और ‘रु’ यानी प्रकाश है। जो अंधकार में प्रकाश प्रदान करे वह गुरु है । गुरुपूर्णिमा के महत्त्व को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि व्यास पूजा का यह पुण्य पर्व महर्षि व्यासदेव के आध्यात्मिक उपकारों के लिए उनके श्री चरणों में श्रद्धा-सुमन अर्पित करने का दिवस है । उनके इस अमर संदेश को प्रत्येक भक्त जीवन में उतारें - मैं और मेरे बंधन का कारण, तू और तेरा मुक्ति का साधन । यह दिन जगद्गुरु परमेश्वर के पूजन का पर्व है ।यह मांगलिक दिन आध्यात्मिक सम्बंध स्मरण करने के लिए नियत है अर्थात् गुरु अथवा मार्ग-दर्शक एवं शिष्य के अपने-अपने कत्र्तव्य को याद करने का दिवस है । महंतश्री ने गुरु महिमा का बखान करते हुए कहा कि जब तक सोना सुनार के पास, लोहा लौहार के पास, कपड़ा दर्जी के पास न जाये, उसे आकार नहीं मिलता । इसी प्रकार शिष्य जब तक अपने आपको गुरु को समर्पित नहीं कर देता, तब तक वह कृपा पात्र नहीं बनता ।

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