- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की बिहार राज्य परिषद की बैठक 13-14 जुलाई को पटना में चल रही है। बैठक में निम्नलिखित प्रस्ताव पारित हुआः-
नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में बनी राजग सरकार ने भी अपने पूर्ववत्र्ती मनमोहन सिंह की सरकार की ही तरह निजीकरण और बाजारीकरण की आर्थिक नीतियों पर चलना शुरू कर दिया है। 9 जून को यद्यपि संसद के दोनों सदनों को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने महंगाई को काबू करना मोदी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता बतलायी, इसके लिए जमाखोरी और कालाबाजारी रोकने तथा सार्वजनिक वितरण व्यवस्था में सुधार की बात की है पर व्यवहार में यह वास्तविक धरातल पर उतरता नहीं दिखाई दे रहा है। आलू, प्याज, चावल, दाल और आटा सहित जीवन के लिए आवष्यक दैनिक उपयोग की वस्तुओं की कीमत लगातार बढ़ती ही चली जा रही है। इस महंगाई का सबसे बुरा प्रभाव आम गरीबों खासकर मेहनतकष किसान-मजदूरों और असंगठित क्षेत्र के श्रमजीवियों पर पड़ रहा है। उनका जीवन बद से बदतर होता जा रहा है।
आम जनता तो सरकार से उम्मीद करती है कि वह महंगाई से उनको निजात दिलाए। पर सरकार की प्राथमिकता तो उनके वर्गीय हितों से जुड़ी होती है। निजीकरण और बाजारीकरण पर आधारित सरकार की अर्थव्यवस्था का हित औद्योगिक घरानों और बाजार की शक्तियों के हितों से जुड़ी होती है। कृत्रिम महंगाई बढ़ाने वाले जमाखोर और कालाबाजारी भी तो इन्हीं व्यावसायिक घरानों के साथ होते हैं। तो फिर सरकार इनके खिलाफ कदम कैसे उठाए? इसके लिए तो सरकार को अपनी बुनियादी नीतियों में बदलाव करना होगा और जन दवाब के बिना यह संभव नहीं है।
नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली राजग सरकार ने महंगाई से पीडि़त आम जनता को राहत देने की वजाय महंगाई बढ़ाने वाले कदम उठा रही है। यों तो चीनी, रसोई गैस, डीजल, पेट्रोल की कीमतों में बढोत्तरी के संकेत पहले से ही मिलने लगे थे पर रेलमंत्री द्वारा संसद में रेल बजट पेष करने के पूर्व ही यात्री रेल भाड़े में 14ण्2ः तथा माल भाड़े में 6ण्5ः की बढ़ोत्तरी किए जाने से इस बात की पुष्टि हो गयी कि मोदी सरकार ने अपने पूर्ववत्र्ती सरकार के बनाए रास्ते पर ही चलना शुरू कर दिया है। है।
मोदी सरकार ने अपने पहले आम बजट में ही आम आदमी और खासकर उन युवाओं की उम्मीद पर पानी फेर दिया है जिन्होंने अच्छे दिन लाने की उम्मीद में मोदी जी को अपार बहुमत से केन्द्र में सत्तासीन किया था। सरकार के वित्त मंत्री श्री अरूण जेटली द्वारा पेष इस पहले आम बजट में आम आदमी को लूटने वाले काॅरपोरेंट घरानों और अन्य बड़े उद्योगों के हितों को पूरा करने का विषेष ख्याल रखा गया है। इस बजट में जहां एक तरह वित्त मंत्री ने पेट्रोलियम पदार्थों सहित अन्य क्षेत्रों में दी जाने वाली सब्सीडियों में कटौती करने, राजकोषीय घाटा कम करने के बहाने सरकारी खर्च में कटौती करने की बात की है वहीं दूसरी ओर बीमा एवं रक्षा जैसे संवेदनषील क्षेत्रों में विदेषी पूंजी आने की खुली छूट दे रही है। इन क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेषी निवेष की सीमा को 26ः से बढ़ाकर 49ः कर दिया है। रक्षा क्षेत्र के बजट में भी 13ः की वृद्धि कर दी है तथा बिजली कंपनियों को दस बर्षों तक करों में छूट दे दिया है।
सब्सीडी में कटौती करने तथा राजकोषीय घाटा कम करने के नाम पर सरकारी खर्च में कटौती का सीधा असर स्वास्थ्य, षिक्षा एवं कल्याणकारी योजनाओं पर पड़ेगा। जन साधारण सीधे तौर पर इससे प्रभावित होगा और उनको अपने वत्र्तमान जीवन स्तर को भी बरकरार रखने के लिए अनेक तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा।
अतः मोदी सरकार का रेल और आम दोनों बजट बड़े औद्योगिक घरानों और खासकर काॅरपोरेट घरानों के हितों को पूरा करने वाला बजट है। सर्वसाधारण आम जनता को महंगायी से निजात दिलाने का संकेत कहीं भी दोनों बजट में दिखायी नहीं पड़ता है। अतः भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की यह राज्य परिषद आम जनता का आह्वान करती है कि वह मोदी सरकार के कारपोरेट पक्षी रेल और आम बजट के खिलाफ एकजुट संघर्ष के लिए सड़क पर उतरे। राज्य परिषद अपने पार्टी इकाइयों को निर्देषित करती है कि वह 9 अगस्त को अपने-अपने क्षेत्र के प्रखंडों पर महंगाई दूर करने, खाद्य सुरक्षा को सख्ती से लागू करने तथा सरकार की नीतियों में जनपक्षी बदलाव लाने के लिए आम जनता का जुझारू प्रदर्षन आयोजित करें।
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