- खेतों में हरियाली की जगह उड़ रही धूल, पूर्वांचल सहित यूपी के 42 जिलों में सूखे के हालात
- अब तक सामान्य से 65-90 फीसदी तक कम हुई है बारिश, 80 मिमी बारिश के सापेक्ष महज 37 मिमी ही हुई है बारिश
- बिजली के अभाव में नहीं चल पा रहे ट्यूबवेल, नहरों में पानी नदारद, सूखने लगी है धान की फसल
- जून में धान की नर्सरी का लक्ष्य साढ़े चार लाख हेक्टेयर के सापेक्ष 3 लाख हेक्टेयर तक ही पहुंच सका
- सरकारी स्तर पर जो पहल की जानी चाहिए वह नहीं हो पा रही, कृषि वैज्ञानिकों की किसानों को कम अवधि वाले धान बोने की दे रहे सलाह
- वैकल्पिक खेती के रुप में दलहन-तिलहन की बुआई दे रहे जोर, जबकि किसानों ने सूबे को सूखा प्रदेश घोषित करने की मांग
सावन रिमझिम फुहारे के लिए जाना जाता है, लेकिन इस बार उलट है। आसमान से राहत की बूंदों की बजाएं तपिश बरस रही है। खेतों में हरियाली की जगह धूल उड़ रही है। किसान बेहाल है, पशु-पक्षी भी परेशान। कमजोर मानसून के चलते पूर्वांचल सहित सूबे के 42 से अधिक जिलों में सूखे के हालात बन गए हैं। इन जिलों में अब तक सामान्य से 65-90 फीसदी तक कम बारिश हुई है। रोपाई तो दूर तैयार नर्सरी भी सूख रही है। अमूमन 15-18 जुलाई तक मानसून आ जाता था, लेकिन इस बार गायब है। मौसम विभाग के मुताबिक 14 जुलाई तक 180 मिमी बारिश हो जानी चाहिए थी, लेकिन अब तक महज 37 मिमी ही बारिश हुई है जो सामान्य से 60 फीसदी कम है।
सूखे की आशंका ने किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी है। पूर्वांचल के 14 और पश्चिमी यूपी व बुंदेलखंड के 28 जिले सूखे की कगार पर खड़े हैं। इन जिलों में इससे निपटने के कारगर उपाय नहीं किए गए तो हालत गंभीर हो सकते हैं। बारिश व सिंचाई के अभाव में खेतों में दरारें पड़ने लगी है। ट्यूबवेल या नहरों के भरोसे सिंचाई नहीं हो पा रही कम बारिश का सबसे अधिक संकट धान की फसल पर है। जून में धान की नर्सरी का लक्ष्य साढ़े चार लाख हेक्टेयर था, जबकि यह 3 लाख हेक्टेयर तक ही पहुंच सका। पिछले साल जून में धान की रोपाई पौने आठ हेक्टेयर हो चुकी थी पर इस बार अभी ढाई हेक्टेयर ही रोपाई हो पाई, जो 48 फीसदी कम है। जिलेवार केवल 6 जनपदों में सामान्य बारिश हुई है। 8 जनपदों में 30-40 फीसदी, बाकि 42 जनपदों में मात्र 30 फीसदी से भी कम बारिश अब तक हुई है।
पूर्वी यूपी में किसान किसी तरीके से पानी की व्यवस्था कर पिछड़ी बोवाई-रोपाई को पटरी पर लाने में जुटे हैं। हालात यही रहे तो सूबे में धान का उत्पादन लक्ष्य 50 फीसदी से कम होने की आशंका है। कृषि वैज्ञानिक भी मान रहे हैं कि अगर हालात ऐसे ही रहे तो आने वाले दिनों में कम बरसात वाले जिलों के किसानों की मुश्किलें और सरकार के सामने चुनौतियां बढ़ सकती हैं। हालांकि एक-दो रोज में अच्छी बारिश होने की संभावना भी मौसम वैज्ञानी जता रहे है। किसान कमलाकर बताते है कि रोपाई का आधा समय बीत चुका है, लेकिन मानसून की बेरुखी से रोपाई नहीं हो सकी है। बेहन सूखने लगे है।
ऐसा नहीं है कि यह समस्या पहली बार आई है, दो-चार साल को छोढ़ दिया जाएं तो तकरीबन हर साल किसान इस समस्या से जूझ रहे है, लेकिन सरकारी स्तर पर जो पहल की जानी चाहिए वह नहीं की गई। ट्यूबवेल बिजली कटौती के चलते चल नहीं पा रहे तो नहरों में पानी नदारद है। प्रदेश में कई सिंचाई परियोजनाएं लंबित पड़ी है। सरकार इस दिशा में अगर यदि गंभीर होती तो किसानों को सूखे का दंश नहीं झेलना पड़ता। सरकार चाहे तो अब बिजली आपूर्ति में सुधार कर सकती है, लेकिन वह अपनी हार का ठिकरा जनता पर बोझ बनकर कहर ढहा रही है। सरकार की मंशा है कि जनता उसके माफियाओं व पुलिस जुर्म को सहते रहे। शायद यही वजह है किसानों की चिंता सरकार को नहीं है वरना बिजली आपूर्ति में सुधार कर ट्यूबवेलों को चलवाने व नहरों में पानी छोड़ने की व्यवस्था जरुर करवाती।
हालांकि कृषि वैज्ञानिकों की किसानों को सलाह है कि वह कम अवधि वाले धान 15 अगस्त तक लगा सकते है। इनमें प्रभात, सहभागी, तुरंता व पूसा 221 आदि शामिल है। अधिकारी चाहते है कि किसान धान की चिंता छोड़ वैकल्पिक खेती के रुप में दलहन-तिलहन की बुआई करें। जबकि किसानों का कहना है कि विभाग से सिर्फ सलाह मिलती है। खाद व बीज का टोटा बना हुआ है। यदि बारिश न हुई तो उनके सामने गंभीर संकट पैदा हो जायेगा। भारतीय किसान यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष हरिनाम सिंह वर्मा ने सरकार से माॅग किया है कि पूरे उत्तर प्रदेश को तत्काल प्रभाव से सूखा ग्रस्त घोषित किया जाए। क्योकि मानको के अनुसार आज तक लगभग 75 प्रतिषत कम बारिष हुई है। ऐसी स्थिति में प्रदेश में धान तिलहन बोने वाले किसान की स्थिति बड़ी भयावह हो गई है।
---सुरेश गांधी---
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