आलेख : हम सब हैं एक-दूसरे के गुरु - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 12 जुलाई 2014

आलेख : हम सब हैं एक-दूसरे के गुरु

अब तक तो गुरुओं की तलाश बंद हो जानी चाहिए थी। वो जमाना नहीं रहा जब गुरु ढूंढ़ने जाना पड़ता था। अब जमाना बदल गया है। अब हम सभी लोग एक-दूसरे के गुरु हो गए हैं इसलिए गुरुओं की तादाद ज्यादा हो गई है और चेलों की कम।

गुरु ऎसा चमत्कारिक नाम हो गया है कि जो अपने आप में ब्राण्ड नेम है। धार्मिक परंपराओं और रूढ़ियों की खरपतवारी घास-फूस की हमारे जीवन में इतनी अधिक घुसपैठ हो गई है कि हमने धर्म और परंपराओं के असली मर्म और साध्य को भुलाकर उन सभी बातों को अंगीकार कर लिया है जो हमें किसी न किसी रूप में लाभ देते हैं।

यह गुरु शब्द ही इतना प्रभावी है कि जिसके साथ श्रद्धा और अंध भक्ति के छत्तों से सोना-चाँदी, रुपयों-पैसों, भोग-विलास के पात्रों और संसाधनों से लेकर बिना कुछ किए धराए वह सारा शहद झरता रहता है जो आनंद की अनुभूति कराता है। गुरु और इन छत्तों का सीधा संबंध रहा है। गुरु की कृपा प्राप्त कर लेने और गुरु के आँगन या आँचल में पूरी तरह खाली हो जाने के बाद इन छत्तों का कोई उपयोग नहीं रह जाता। इन सभी छत्तों को त्यागकर गुरु नए-नए छत्तों की तलाश में लगे रहकर मिठास का आनंद भी लेते हैं और संग्रह भी करते जाते हैं।

यों देखा जाए तो गुरु का मतलब यह है कि जो अपने शिष्य को ऎसा ज्ञान दे कि जिससे वह भवसागर पार हो जाए और जीवन्मुक्ति का आनंद प्राप्त कर जाए। मगर जिस हिसाब से गुरुओं की विस्फोटक संख्या हमारे यहाँ गाजरघास या जलकुंभी की तरह पसरती जा रही है उससे तो लगता है कि जनसंख्या का अधिकांश हिस्सा गुरु हो गया है। हर कोई अपने आपको गुरु कहलवाना और मनवाना चाहता है, चाहे इसके लिए उसे कोई सा हथकण्डा इस्तेमाल क्यों न करना पड़े।

गुरुओं की इतनी बहुगुणित होती भयावह तादाद के बीच गुरु और शिष्य संख्या का संतुलन गड़बड़ा गया है। पहले गुरु की तलाश शिष्यों को होती है, आजकल शिष्यों की तलाश में गुरु भटकने लगे हैं, गोरखधंधे करने लगे हैं और चेले-चेलियों तथा विभिन्न प्रजातियों के शिष्यों की जमात को बढ़ाने के लिए वे सारे जतन कर रहे हैं जो एक कारोबारी अपने नकली और घटिया माल को निकालने के लिए विज्ञापनों और अफवाहों का सहारा लेकर करता है और आकर्षण जगाकर माल बेच कर मुनाफा ले रफूचक्कर हो जाता है।

यह बात नहीं है कि आज भी असली गुरु नहीं हैं, इनका भी खूब वजूद है लेकिन ये ईश्वर से सीधा संबंध रखने के लिए पैदा हुए हैं। गुरुओं की दो किस्में हैं। एक वे हैं जिनको ईश्वर को पाने के लिए निकले हैं और उन्हें ईश्वरीय चिंतन-मनन और ध्यान से ही फुरसत नहीं है, वे उसी में आनंदित हैं और जो इनके संपर्क में जाता है उसे भी ईश्वर की तरफ उन्मुख करते हैं, न खुद के लिए कुछ करते हैं, न अपना नाम चाहते हैं, न पब्लिसिटी चाहते हैं।

दूसरी किस्म उन नकली और ढोंगी, पाखण्डी, आडम्बरी गुरुओं की हो गई है जो गुरु के नाम पर जितना अधिक कलंक ढा सकते हैं, पूरी बेशर्मी से ढा रहे हैं। इनमें से खूब सारे गुरु ईश्वर को पाने के लिए संसार त्याग बैठे हैं मगर न ईश्वर पा सके हैं, न संसार छोड़ पाए हैं बल्कि एक गृहस्थ से कहीं अधिक सांसारिकता के कीचड़ में फंसे हुए हैं।

गुरु होने का अपना कोई पैमाना नहीं रहा। जो सामने वालों को उल्लू बनाकर, धर्म को कारोबार के रूप में इस्तेमाल करने में माहिर है, वही अपने आपको गुरु मानकर चल रहा है। गुरुओं के मामले में सभी जगह फ्री स्टाईल ही चल रहा है। यह एक ऎसा चोगा है जिसे पहन कर मिस्टर इण्डिया की तरह कमाल ढाया जा सकता है। कुछ अच्छे और अपरिग्रही, त्यागी, तपस्वी, संस्कारवान और ईश्वरपरायण गुरुओं को छोड़ दिया जाए तो हर गुरु धर्म के नाम पर अपनी कमाई कर रहा है। कोई मनोकामनाओं की पूर्ति, ग्रहबाधाओंं के निवारण और कोई चाही-अनचाही समृद्धि पाने से लेकर सभी प्रकार के अच्छे-बुरे इच्छित कर्मों की पूर्ति कराने के लिए शिष्य और भगवान के बीच दलाली का काम कर रहा है, कोई वीआईपी और पूंजीपतियों को कुर्सी और वैभव के सपने दिखा रहा है, कोई किसी को भरमा रहा है, कोई उल्लू बना रहा है।

इस काम में गुरुओं को ऎसे कर्मकाण्डी लोगों का सहयोग मिल गया है जो मंत्र-तंत्र और यंत्र बल के नाम पर नई सृष्टि रचाने, श्राप दे डालने से लेकर किसी का भी अच्छा या बुरा कर डालने तक की ताकत के अहंकारों से भरे हुए हैं। इन कर्मकाण्डियों को पैसा चाहिए, यजमान चाहिएं और ऎसे बाबा चाहिएं जो धर्मभीरूओं को उन तक भिजवाएं, भले ही भारी कमीशन का खेल ही क्यों न चलता रहे।  अपने आपको दैवदूत और भाग्यविधाता मानने वाले तांत्रिकों-मांत्रिकों, पण्डितों और बाबा गुरुओं का यह घालमेल आम आदमी की समझ से बाहर है।
फिर आजकल तो वो बाबा चमत्कारिक और सिद्ध ही माना जाता है जिसके पास राजनेताओं, पूंजीपतियों और सामाजिक अपराधियों का जमघट लगा रहे। ऎसे बड़े लोगों को अपने चंगुल में फंसाकर रखने वाले बाबा वाकई चमत्कारिक तो हैं ही। हों भी क्यों न, जो जमाने भर को टोपियां पहना देने में समर्थ हैं, उन्हें बाबाजी के आगे-पीछे परिक्रमा करना और धर्म के नाम पर होने वाले आयोजनों में भागीदारी निभाते देखना किसी महान चमत्कार से कम नहीं है। फिर अपने यहां कोई किसी की परीक्षा नहीं लेता, न सत्य को जानने की कोशिश कोई करता है। जहां बड़े लोगों को देखता है वहाँ भेड़ों की तरह मुँह नीचा कर घुस जाता है। यहां हर भेड़ को अपने काम निकलवाने की ही पड़ी होती है। फिर बाबाजी के डेरों में बड़े लोगों का संपर्क, तिस पर गुरुजी की सिफारिश... सोने में सुहागा ही है यह सब।

ये बाबा महाभारत या रामायण काल में होते तो युद्ध नहीं होते, सैटिंग और समझाईश से ही काम निकल जाता। भारत भर में ऎसे बाबाओं, गुरुओं का धंधा भरपूर परवान पर है। दुनिया के सारे उद्योगों को पीछे छोड़ देने वाली गुरु-चेला इण्डस्ट्री का ही कमाल है कि गुरुओं और चेलों के भाग्य सँवर गए हैं। बिना लागत का बिजनैस और कोई परिश्रम भी नहीं। धर्म और तंत्र मंत्र के नाम पर लोगों को भुनाते रहो। फिर आजकल भिखारियों की संख्या भी कोई कम थोड़े ही है। हर कोई चाहता है कि उसे दूसरे की मुफतिया कृपा से कुछ मिल जाए और वो निहाल हो जाए।

पहले के गुरु शिष्यों को नैतिक शिक्षा, सदाचार, अपरिग्रह, सत्य, धर्म और धार्मिक सदाचारों की दीक्षा देते थे, ईश्वर का मार्ग दिखाते थे। आज के गुरु शिष्यों और समाज के साथ धोखा कर रहे हैं। ये शिष्यों को ईश्वरीय मार्ग से भटका कर अपनी ओर रोक लेते हैं और मोहजाल में फाँसकर ऎसा नज़रबंद कर दिया करते हैं कि उन्हें गुरु ही गुरु नज़र आते हैं, ईश्वर की ओर जाने का मार्ग तक नहीं दिखता। गुरु के लिए चेले मनोकामनापूर्ति का साध्य हो जाते हैं और चेले इस भ्रम में रहते हैं कि गुरु इतने समर्थ हैं कि उनकी हर ऎषणा चुटकी बजाते ही पूरी कर देंगे।

कई लोगों को एक गुरु पर भरोसा नहीं होता, वे ढेरों गुरुओं के वहां जाकर धोक देते हैं। फिर आजकल तो जिसे देखो, वही ज्ञान बाँटता है, तंत्र-मंत्र और टोटके बताता है और इच्छापूर्ति के रास्तों का पता देता है। हम सभी गुरु हो गए हैं। कोई बड़ा है, कोई छोटा, कोई आईएसआई और एगमार्का है, कोई ब्राण्डेड। ऎसे ही कोई आश्रम और मठ आईएसओ सर्टीफिकेट पाए जैसा हो गया है।

इन सभी हालातों में हमें गुरु नहीं शिष्य चाहिएं। हमें क्या जरूरत है गुरु की, हम सभी एक-दूसरे के गुरु हैं। गुरुपूर्णिमा पर तमाम गुरुओं और गुरु परंपरा से जुड़े हुए श्रद्धालुओं-शिष्यों को हार्दिक शुभकामनाएँ...। अपने-अपने गुरुओं की जय।







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---डॉ. दीपक आचार्य---
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