- देश के 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक है बाबा विश्वनाथ
- तीर्थराज प्रयाग से बाबा विश्वनाथ मंदिर तक 120 किमी की यात्रा करते है कांवरिएं
- दर्शन व गंगा स्नान मात्र से ही पूरी हो जाती है हर मनोकामनाएं
- यहां जीवन और मौत के चक्र को खत्म करने पर प्राप्त होता है मोक्ष
- सावन में जलाभिषेक का है विशेष महत्व
- सायंकाल होने वाली गंगा आरती के लिए बड़ी संख्या में जुटते है श्रद्धालु
- सावनभर पूरा शहर गूंजायमान रहता है बोलबम के नारों से
देश के 12 ज्योर्तिलिंगों में से काशी भी एक है। कहा जाता है मां गंगा किनारे स्थित काशी भोले बाबा की त्रिशूल व डमरु पर टिकी है। काशी विश्वनाथ मंदिर में स्थापित इस ज्योर्तिलिंग की दर्शन व गंगा स्नान मात्र से ही हर मनोकामनाएं पूरी हो जाती है, जीवन और मौत के चक्र को खत्म कर मोक्ष प्रदान होता है। यहां सावन में जलाभिषेक का विशेष महत्व है। यहीं वजह है कि पूरे सावनभर कांवरियों का तांता लगा रहता है। सोमवार को बड़ी संख्या में कावंरिए तीर्थराज प्रयाग से कांवर लेकर बाबा विश्वनाथ के ज्योर्तिलिंग पर जलाभिषेक करते है। यहां रोजाना सुबह चार से छह बजे के बीच दर्शन-पूजन एवं सायंकाल होने वाली गंगा आरती के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु जुटते हैं। सावनभर पूरा शहर बोलबम कांवरियां बोलबम, हरहर महादेव के नारे गूंजते रहते है।
इलाहाबाद, गोपीगंज-रोहनिया-वाराणसी तक हाईवे पर आवागमन बंद कर एकमार्गीय कर प्रशासनिक व्यवस्था चाक-चैबंद कर दी जाती है। कांवर उठाने वाले श्रद्धालु रास्ते में लघु शंका आदि होने पर कांवर को स्वच्छ एवं उंचे स्थान पर रख देते है। स्नान घ्यान के बाद ही फिर से कांवर लेकर चलते है। 120 किमी के इस मार्ग पर रास्तेभर कांवरिए ब्रह्मचर्य, सत्यवचन, परोपकार, सेवाभाव का पालन करते है। तेल-साबून का प्रयोग वर्जित रहता है। जूता-चप्पल भी पहनना मनाही है। कुत्ते स ेजल को बचाकर रखना पड़ता है। प्रयाग से काशी आने के बाद कांवरिए गंगा स्नान करते है फिर पवित्र गंगा जल पूजा, धूप-अगरबत्ती देने के बाद बाबा विश्वनाथ मंदिर पहुंचकर ज्योर्तिलिंग पर जलाभिषेक करते है।
काशी आदिकाल से ऋषि-मुनियों की तपोभूमि रहा है। यहां का वातावरण इतना सुरम्य है कि महज तीर्थयात्रियों का ही नहीं बल्कि प्रकृति प्रेमियों का भी तांता लगा रहता है। यह मंदिर हजारों साल पुराना है। इस ज्योर्तिलिंग के दर्शन करने के लिए आदि शंकराचार्य, सन्त एकनाथ रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, महर्षि दयानंद, गोस्वामी तुलसीदास सभी का आगमन हुआ हैं। यहीं सन्त एकनाथजी ने वारकरी सम्प्रदाय का महान ग्रन्थ श्री एकनाथी भागवत लिखकर पुरा किया। काशी नरेश तथा विद्वतजनोद्वारा उस ग्रन्थ कि हाथी पर से शोभायात्रा खुब धुमधाम से निकाली गयी। मंदिर का निर्माण महारानी अहिल्या बाई होल्कर द्वारा सन 1780 में करवाया गया था। बाद में महाराजा रंजीत सिंह द्वारा 1853 में 1000 कि.ग्रा शुद्ध सोने द्वारा मढ़्वाया गया।
हिन्दू धर्म में कहते हैं कि प्रलयकाल में भी इसका लोप नहीं होता। उस समय भगवान शंकर इसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं और सृष्टि काल आने पर इसे नीचे उतार देते हैं। यही नहीं, आदि सृष्टि स्थली भी यहीं भूमि बतलायी जाती है। इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने सृष्टि उत्पन्न करने का कामना से तपस्या करके आशुतोष को प्रसन्न किया था और फिर उनके शयन करने पर उनके नाभि-कमल से ब्रह्मा उत्पन्न हुए, जिन्होने संसार की रचना की। अगस्त्य मुनि ने भी विश्वेश्वर की बड़ी आराधना की थी और इन्हीं की अर्चना से श्रीवशिष्ठ जी तीनों लोकों में पुजित हुए तथा राजर्षि विश्वामित्र ब्रह्मर्षि कहलाये।
सर्वतीर्थमयी एवं सर्वसंतापहारिणी मोक्षदायिनी काशी की महिमा ऐसी है कि यहां प्राणत्याग करने से ही मुक्ति मिल जाती है। भगवान भोलानाथ मरते हुए प्राणी के कान में तारक-मंत्र का उपदेश करते हैं, जिससे वह आवगमन से छुट जाता है, चाहे मृत-प्राणी कोई भी क्यों न हो। मतस्यपुराण का मत है कि जप, ध्यान और ज्ञान से रहित एवंम दुखों परिपीडि़त जनों के लिये काशीपुरी ही एकमात्र गति है। विश्वेश्वर के आनंद-कानन में पांच मुख्य तीर्थ हैं-दशाश्वेमघ,लोलार्ककुण्ड, बिन्दुमाधव, केशव और मणिकर्णिका। और इन्हीं से युक्त यह अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है। काशी की भूमि ताउम्र हिंदुओं के लिए परम तीर्थ स्थान कहा गया है। दुनिया में काशी सबसे पुराना जीवित शहर है। कहा तो यहां तक जाता है कि जिसकी काशी की भूमि पर मृत्यु हुई, उसे फिर से जन्म के चक्र से मुक्ति और स्वतंत्रता प्राप्त होती है। मां गंगा के लिए कहा जाता है कि यहां लोग अपने पापों को धोने के लिए आते है।
3000 साल से भी अधिक पुराना शहर काशी में लोग सीखने आते है और यहीं के होकर रह जाते है। सारनाथ, ऐसा जगह है, जहां बुद्ध आत्मज्ञान के बाद अपनी पहली धर्मोपदेश प्रचार किए। सिर्फ 10 किमी दूर सारनाथ, वाराणसी हिंदू पुनर्जागरण के एक प्रतीक किया गया है. ज्ञान, दर्शन, संस्कृति, परमेश्वर के लिए भक्ति, भारतीय कला और शिल्प के सभी सदियों के लिए यहाँ निखरा। इसके अलावा जैनियों के लिए एक तीर्थ स्थान, वाराणसी, तीर्थंकर पार्श्वनाथ का जन्मस्थान माना जाता है। वैष्णव और शैव सम्प्रदाय दोनों लोग निवास करते है।
वाराणसी भी अपने व्यापार और वाणिज्य के लिए प्रसिद्ध भी है। विशेष रूप से बेहतरीन रेशम और सोने और चांदी ब्रोकेड के लिए। वाराणसी भी उम्र के लिए सीखने का एक बड़ा केंद्र रहा है। वाराणसी अध्यात्मवाद, रहस्यवाद, संस्कृत, योग, और हिन्दी भाषा और कभी प्रसिद्ध उपन्यासकार प्रेम चंद और तुलसी दास, प्रसिद्ध संत कवि जो राम चरित मानस लिखा के रूप में सम्मानित लेखकों को बढ़ावा देने के साथ जुड़ा हुआ है। जिसे उपयुक्त भारत की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में कहा जाता है। वाराणसी सभी सांस्कृतिक गतिविधियों को पनपने के लिए सही मंच प्रदान किया है। नृत्य और संगीत के कई मंचवदमदजे वाराणसी से आए हैं. रवि शंकर, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध सितार वादक और उस्ताद बिस्मिल्ला खान (प्रसिद्ध शहनाई खिलाड़ी)। धन्य शहर के सभी बेटे हैं या उनके जीवन का प्रमुख हिस्सा लिए यहाँ रहते थे।
---सुरेश गांधी---
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