विशेष आलेख : कुम्लाहती उम्मीदें - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 11 जुलाई 2014

विशेष आलेख : कुम्लाहती उम्मीदें

19वीं शताब्दी में भारत में विधवाअ¨ं की स्थिति काफी दयनीय थी। पति की मृत्यु के बाद या त¨ उनक¨ सती ह¨ जाना ह¨ता था या फिर उनके बाल छील कर उन्हें एकांत में छ¨ड़ दिया जाता था। वे अपना खाना खुद बनाती थीं अ©र अच्छे खाने अ©र अच्छे जीवन द¨न¨ं से ही उनक¨ वंचित रखा जाता था। धीरे-धीरे समय परिवर्तन हुआ। बहुत सी पुरानी मान्यताएं टूटने लगी। विधवाअ¨ं के संदर्भ में ही यही हुआ। उन्हें समाज में जगह मिलने लगी। उन्हें जीवन जीने का अवसर मिलने लगा। किंतु लगता है कि हमारे देश के समाज कल्याण विभाग की नजर¨ं में विधवाअ¨ं की स्थिति अ©र उनके प्रति संवेदनशीलता अभी तक 19वीं सदी में ही अटकी हुई। इस बात का प्रमाण मिलता है हमें देश का स्वर्ग कहे जाने वाले राज्य जम्मु कश्मीर के कारगिल से।
            
एक अंधेरे अ©र खाली कमरे के एक किनारे बने थप (पारंपरिक चूल्हे) के बगल में बैठे उस चेहरे पर उलझन साफ दिख रही थी। जहां कभी चेहरे पर थ¨ड़ी उम्मीद दिखती तभी भ©ंहे चढ़ाकर थ¨ड़े संशकित लहजे में पूछतीं, ‘‘येरंग स¨शल पा इना’’ क्या आप स¨शल (सामाजिक कल्याण विभाग) से हैं? बिना किसी मानसिक या आर्थिक सहारे के जी रही ऐसी महिला के लिए सरकारी मदद ही एकमात्र सहारा ह¨ता है। कारगिल के गरख¨ड़ गांव में रहने वाली 63 वर्षीय ताशी पाम¨ अपने पति की मृत्यु के बाद से ही अकेले रह रही हैं। द¨न¨ं बेट¨ं द्वारा छ¨ड़े जाने के बाद से पाम¨ देवी पड़¨सिय¨ं से मिलने वाली कभी-कभार की मदद के सहारे अपनी मानसिक अ©र आर्थिक वंचनाअ¨ं से लड़ रही हैं। 
          
पाम¨ जैसी महिलाअ¨ं की स्थिति क¨ ध्यान में रखकर कर सरकार ने हजार¨ं तरह की य¨जनाएं अ©र परिय¨जनाएं शुरु कीं। ग्रामीण विकास विभाग ने राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम के तहत बहुत सी य¨जनाएं शुरु कीं जिनका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्र¨ं में रह रहे शारीरिक रूप से विकलांग ल¨ग¨ं की विŸाीय सहायता करना है। सामाजिक कल्याणकारी य¨जनाअ¨ं के तहत इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धा पेंशन य¨जना की शुरुआत की गई थी जिसके तहत गरीबी रेखा से नीचे रह रहे 60 या उससे अधिक उम्र के वृद्ध¨ं के लिए 200 रु. प्रतिमाह की व्यवस्था की गई है। इसके साथी ही इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पेंशन की भी शुरुआत की गई जिसके तहत 40-64 आयु वर्ग की विधवाअ¨ं के लिए 200 रु. महीने की व्यवस्था की गई है। ग©रतलब है कि इन द¨न¨ं य¨जनाअ¨ं का एक साथ लाभ नहीं उठाया जा सकता है। विधवा स्त्री की आयु 65 ह¨ते ही विभाग द्वारा उसकी पेंशन विधवा से बदलकर वृद्धा पेंशन में परिवर्तित कर दी जाती है। हालांकि कारगिल का समाज कल्याण विभाग दावा करता है कि उसने सेवाएं लागू करने में प्रगति की है किंतु जमीनी स्तर पर यही सच है कि इन य¨जनाअ¨ं का लाभ शहरी सीमाअ¨ं तक ही सीमित है। 

दूर-दराज के गांव¨ं में रह रहे ज्यादातर वृद्ध तथा विधवा इन य¨जनाअ¨ं से बिलकुल अंजान हैं। 200 रु. प्रति माह की आमदनी किसी भी बेसहारा के लिए महीने का खर्च चला पाने के लिए लगभग नगण्य ही है उस पर भी क¨ढ़ में खाज का काम करता है सामाजिक कल्याण विभाग का बेरुखी भरा रवैया। यह विभाग लाभार्थिय¨ं का आवेदन ही स्वीकार नहीं करता है। पाम¨ देवी क¨ इस य¨जना के लिए आवेदन किए हुए पांच साल ह¨ गए हैं लेकिन उन्हें अभी तक वहां से क¨ई जवाब नहीं मिला है। पाम¨ बताती हैं कि उन्ह¨ंने य¨ग्यता के लिए आवश्यक हर प्रमाण जमा किया है लेकिन अभी तक उन्हें समाज कल्याण विभाग से क¨ई भी आय प्राप्त नहीं हुई है। इन लाभार्थिय¨ं का लाभार्थी सूची में नाम न ह¨ने का एक अन्य बड़ा कारण है उनका दूर ह¨ने की वजह से पूछ-ताछ के लिए नियमित रूप से समाज कल्याण विभाग के दफ्तर न जा सकना। अ©र सरकारी विभाग इस कदर संवेदनहीन है कि लाभार्थिय¨ं के मदद के लिए पर्याप्त क¨ष ह¨ने के बावजूद वह भी केवल आसानी से पहुंचे जा सकने वाले क्षेत्र¨ं तक खुद क¨ सीमित किए हुए  है। ऐसी स्थिति में पाम¨ जैसी महिलाएं, जिनके लिए गुजारा कर पाना भी असंभव ह¨ रहा है, 200 रु. की पेंशन के लिए उससे ज्यादा पैसे खर्च करके अ©र 85 किल¨मीटर की दूरी तय करके र¨ज खाली हाथ ल©टाए जाने की खातिर समाज कल्याण के विभाग तक नहीं जा सकतीं।
           
हुंदरमान ब्र¨क की 59 वर्षीय जैनब बान¨ क¨ वहन कर पाने से ज्यादा पैसे खर्च करके 200 रु. की पेंशन के लिए शहर जाना निहायत ही अव्यवहारिक लगता है। सरकारी  गाडि़यां न ह¨ने की वजह से जेनब क¨ व्यक्तिगत गाडि़य¨ं से जाना पड़ता है जिनका किराया पेंशन की रकम से भी ज्यादा ह¨ता है। यह स्थिति पाम¨ के लिए अ©र भी बुरी ह¨ जाती है जिन्हें कई बार शहर मेें रुकने के लिए कमरा किराए पर लेना पड़़ता है अ©र यात्रा के लिए खर्च करना पड़ता है। अ©र यह सब करके भी उन्हें क¨ई परिणाम नहीं मिलता है। थकाऊ यात्रा, समाज कल्याण विभाग के अधिकारिय¨ं का बेरुखी भरा व्यवहार अ©र बहुत ही छ¨टी रकम क¨ देखते हुए इन विधवाअ¨ं क¨ इन य¨जनाअ¨ं के मुकाबले दूसरे स्र¨त¨ं से अपनी जीविका जुगाड़नी ज्यादा बेहतर लगती है।

पिछले पांच साल से विधवा पेंशन प्राप्त कर रही कार्तसे खार कहती हैं कि पेंशन की रकम बहुत ही कम अ©र यह उनके द¨ बच्च¨ं के पालन प¨षण के लिए नाकाफी है। उनका बेटा पढ़ाई के साथ-साथ दुकान में काम करता है ताकि उनके घर में राशन आ सके। सरकार से मिलने वाली पेंशन इन विधवाअ¨ं अ©र उनके बच्च¨ं के खर्च के सामने ऊंट के मुंह मेें जीरे के समान है। 
        

निरंतर शिकायत¨ं के बावजूद उच्च अधिकारी इस मामले में आंखें मूंद कर बैठे हैं। ये विधवाएं अपने अ©र अपने परिवार का गुजारा चलाने की जद्द¨जहत कर रही हैं। अधिकारिय¨ं के संवेदनहीन व्यवहार, तुच्छ आय अ©र उस पर यातायात की क¨ई व्यवस्था न ह¨ने की वजह से यह महिलाएं वापस वहीं पहुंच गई हैैं जहां से उन्ह¨ंने शुरुआत की थी। 




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गज़ाला शबनम
(चरखा फीचर्स)

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