हर एक माता-पिता अपनी बेटी को बड़े ही लाड प्यार से पालते हैं। वह षादी से पहले अपनी बेटी को सब कुछ बगैर मांगे दे देना चाहते हैं। लड़की के बालिग होते ही माता-पिता को उसकी षादी की चिंता सताने लगती है। वह अपनी बेटी की षादी के लिए ऐसे वर और घर की तलाष षुरू कर देते हैं जो उसकी बेटी को खुष रखे। दूनिया के तमाम माता-पिता यही सोचकर षादी कर अपनी बेटी को घर से विदा करते हैं। लेकिन बेटी के साथ साथ माता-पिता के सपने उस वक्त चूर चूर हो जाते हैं जब उनकी बेटी को ससुराल में तरह तरह की यातनाएं दी जाती हैं और जानबूझकर उसे परेषान किया जाता है। ससुराल में लड़कियों के साथ अत्याचार की कहानी कोई नहीं है। ससुराल द्वारा ठुकराई गयी लड़कियों को समाज में नीचा समझा जाता है। ऐसी लड़कियों को समाज खुली हवा में सास नहीं लेने देता। यही वजह है कि ऐसी लड़कियां अपने को हीन समझने लगती हैं और उनकी जीने की चाह भी खत्म होने लगती है।
एक ऐसा ही किस्सा बिहार के मुज़फ्फरपुर जि़ला अंर्तगत हुस्सेपुर परनी छपड़ा गांव की पूजा कुमारी का है। पूजा कुमारी ने अपनी हिम्मत और साहस से इस बात को गलत साबित कर दिया कि यदि किसी के पति उसे छोड़ दें, घर से निकाल दें तो उसका जीवन समाप्त हो जाता है। इस लड़की ने अपने जीवन को एक नया परिचय दिया है। इस लड़की पर जो बीती वह अत्याचार की एक करूण कथा है। पूजा की षादी 2006 में हुई थी और उसने कल्पना भी नहीं की होगी कि उसके जीवन में ऐसा मोड़ भी आएगा। षादी के बाद उसके पति और सास ने उस पर तरह तरह के अत्याचार करना षुरू कर दिया। यहां तक कि उसे साबुन तेल भी नहीं दिया जाता था। इस पर ससुराल वाले कहते हैं कि अपने मायके से ले आओ। इन छोटी छोटी घटनाओं की वजह से पूजा की जिंदगी जहन्नुम बनी हुई थी। बेटा होने के बाद भी जब पूजा पर अत्याचार कम न हुआ तो उसने अत्याचार की करूण कथा मजबूरन अपनी मां षैल देवी को बता दी। षैल देवी कहती हैं कि हमने गांव के कुछ जि़म्मेदार लोगों को इसकी ससुराल वालों को समझाने के लिए भेजा पर वह लोग नहीं माने, मजबूरन मुझे बेटी को अपने घर बुलाना पड़ा। पूजा का जब विवाह हुआ था तो वह सिर्फ आठवीं कक्षा तक ही पढ़ी थी। लेकिन वह हिम्मत नहीं हारी और साहस का परिचय देते हुए नौंवी से पढ़ाई षुरू की और दसवीं बोर्ड की परीक्षा में भी बैठी। आज आठ वर्श बाद जब पूजा की दूसरी षादी हुई तो पूजा अपने पुत्र के साथ इस षादी से काफी खुष है और उसके माता-पिता भी अपनी बेटी को खुषी देख बहुत खुष हैं। आज भी हमारे देष में सैंकड़ों लड़कियां हैं जो ससुराल से ठुकराई गई हैं। ज़रूरत है उन लड़कियों को पूजा जैसी लड़कियों से सीख लेकर जीवन में आगे बढ़ने की है।
लेकिन हमारे देष में पूजा जैसी लड़कियों की तादाद न के बराबर है। पूजा तो अपने साहस और हिम्मत से किसी तरह अपनी जिंदगी दोबारा संवारने में कामयाब हो गयी लेकिन हमारे समाज में ससुराल द्वारा ठुकराई गई ज़्यादातर लड़कियों की जिंदगी बर्बाद हो जाती है। इसके अलावा ससुराल द्वारा ठुकराई गयी लड़की को समाज भी स्वीकार नहीं करता। ऐसी लड़कियां अंधेरे के साए में गुमनामी की जिंदगी जीने को मजबूर हो जाती है। घरेलू हिंसा कई रूपों में हो सकती है। आज भी हमारे समाज में कुछ लोग लड़कियों को दहेज लाने पर विवष करते हैं। दहेज न मिलने लड़की को तरह तरह की यातनाएं दी जाती हैं। हमारे देष में दहेज भी महिला के साथ घरेलू हिंसा के कारणों में एक बड़ा कारण है।
वर्श 2012 मे बिहार में दहेज और दहेज प्रताड़ना के क्रमषः 1275 और 3686 मामले षामिल थे। इस संख्या में लगातार इज़ाफा होता जा रहा है। पिछले साल नवंबर तक प्रदेष में महिलाओं से जुड़े 10898 अपराध के मामले दर्ज किए गए जिसमें दहेज और दहेज प्रताड़ना के क्रमषः 1129 और 4316 मामले षामिल हैं। घरेलू हिंसा निशेधात्मक कानून के तहत यदि किसी महिला के साथ मारपीट, आर्थिक षोशण, या अपमान जनक भाशा का इस्तेमाल होता है तो पर कानूनी कार्रवाई होगी। भारतीय दंड संहिता की धारा 304 ‘‘ख’’ के तहत दहेज उत्पीड़न और दहेज हत्या के आरोप में पति और ससुराल वालों को 7 साल तक की सज़ा का प्रावधान है। यदि षादी के सात साल के अंदर किसी स्त्री की मृत्यू हो जाए या ससुराल वालों ने दहेज के लिए क्रूर व्यवहार किया हो तो दहेज उत्पीड़न का मामजा दर्ज किया जाता है। महिलाओं उत्पीड़न को रोकने के लिए कानून तो बहुत सारे हैं, मगर महिला उत्पीड़न रूकने का नाम ही नहीं ले रहा है। महिला उत्पीड़न के बढ़ते मामलों के कारण हमें अंतरराश्ट्रीय स्तर पर षर्मसार होना पड़ा है। महिला उत्पीड़ने को रोकना सरकार के लिए एक कड़ी चुनौती बनता जा रहा है। महिला उत्पीड़न को रोकने के लिए पुरूश जाति को महिलाओं के प्रति अपने नज़रिए मेें बदलाव लाना होगा तभी महिला उत्पीड़न को रोका जा सकता है।
खुशबू कुमारी
(चरखा फीचर्स)
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