पटना। जब बिटिया के पिता बिलख पड़े। 15 अक्टूबर 2014 को बिटिया की हाथ पीली करनी हैं। 2 माह से मानदेय नहीं मिल रहा है। मानदेय मिलने में विलम्ब होने से परेशानी के समन्दर में समा गए हैं। भारी व्याज पर कर्ज लेकर पिता का कर्तव्य और सामाजिक दायित्व निभा रहे हैं। यह हाल न्यू गार्डिनर रोड अस्पताल में कार्यरत गार्ड का है। वैसे तो सरकार के द्वारा ऐलान कर दिया गया है। आगामी महापूजा के ख्याल और आलोक में राज्यकर्मियों का वेतनादि विमुक्त कर दिया जाएगा।
बताते चले कि न्यू गार्डिनर रोड अस्पताल में सोमवार के दिन चिकित्सकों का दल बैठते हैं। इनके द्वारा विकलांगों की जांच करने के उपरांत प्रमाण-पत्र निर्गत किया जाता है। इसके लिए कोर्ट से लेख्य प्रमाण -पत्र लाना पड़ता है। इसी के आधार पर विकलांगों का प्रमाण-पत्र बनता है। मगर अस्पताल के कर्मचारियों के द्वारा सीधी जानकारी नहीं दी जा रही थी। एक व्यक्ति से जानकारी लेने का प्रयास किया गया। उसने कहा कि आप खुद ही विकलांग पत्र बनाने का प्रयास करेंगे। तब एक भी पैसा नहीं लगेगा। यदि किसी कर्मचारी से सहयोग लेंगे तो कम से कम 4 सौ रू. व्यय करना पड़ेगा। अब आपकी मर्जी है कि आप किस से प्रमाण-पत्र बनवाते हैं।
सरकारी सूचना पट में लिखा गया है कि घूस लेना और देना अपराध है। तो आप किस तरह से घूस की बात करते हैं! इसकी शिकायत अस्पताल के प्रभारी चिकित्सक से करेंगे। यहां पर दलाल घूमकर विकलांगों का प्रमाण-पत्र बनवाते हैं और मोटी रकम हजम करते हैं। तब जानकारी देने वाले एक व्यक्ति ने कहा कि न्यू गार्डिनर रोड अस्पताल के गार्ड हैं। कोई दलाल नहीं हैं। उसके बाद गार्ड ने बिलखकर कहने लगा कि दो माह से वेतन नहीं मिल रहा है। तब आप ही लोगों का काम करना पड़ता है। खुद ही काम करवाने के एवज में मोटी रकम थमा देते हैं। यहां पर तीन गार्ड हैं। इसके बाद तीनों गार्ड आपस में बातचीत करने लगें।
अब न्यू गार्डिनर रोड अस्पताल के प्रभारी चिकित्सक का फर्ज बनता है कि इन लोगों के बकाये मानदेय को तत्काल प्रभाव से भुगतान करवाने की व्यवस्था करें। ऐसा करने से बिटिया के पिताजी को बिलखना नहीं पड़ेगा।
आलोक कुमार
बिहार
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें