लगातार आम सहमती के अभाव से जूझ रही महिला आरक्षण विधेयक के प्रति सरकार ने अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की है. संसदीय मामलों के मंत्री वेंकैया नायडू ने कहा है कि महिला आरक्षण विधेयक पर राजनीतिक दलों के बीच आम सहमति बननी जरुरी है. सरकार में आने से पूर्व भी हमारी पार्टी इस विधेयक के प्रति गंभीर थी और सकारात्मक नजरिया रखती थी.
हालांकि नायडू ने इस विधेयक को सदन में रखने की कोई समय सीमा बताने से इंकार किया. जब नायडू ने पूछा गया कि इस विधेयक को शीतकालीन सत्र में रखा जायेगा तब उन्होंने कहा कि वे कोई समय सीमा नहीं बता सकते. इसके लिए सभी राजनीतिक दलों का व्यापक सहयोग और आम सहमती चाहिए. इस मुद्दे पर विभिन्न दलों से बात करनी होगी और आम सहमती बनाने पर विचार करना होगा.
नायडू ने कहा कि कुछ लोग महिलाओं के अधिकारों का हनन कर उनके प्रगति की राह में रोड़ा अटकाने के लिए कुछ लोग नये-नये तरीके अपना रहे हैं, लेकिन उनकी सरकार इसके लिए कृतसंकल्प है. लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने की व्यवस्था करने वाले इस विधेयक को राज्यसभा ने मंजूरी दे दी है लेकिन निम्न सदन से ऐसा होना अभी बाकी है. नायडू ने कहा कि समाज में महिलाओं की भूमिका को मान्यता दी जानी चाहिए और उनके सशक्तिकरण की राह की सभी बाधाएं दूर की जानी चाहिए.
नायडू ने कहा, लंबे समय से हम संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को एक तिहाई हिस्सेदारी देने के बारे में बात करते आ रहे हैं. जब महिलाओं की संख्या समान है तो फिर किसी को उन्हें एक तिहाई सीटें देने में असंतुष्टि क्यों होनी चाहिए. यह कानून शीघ्र लागू होने की उम्मीद जताते हुए नायडू ने कहा मुझे दृढतापूर्वक लगता है कि महिला आरक्षण विधेयक को इसके तार्किक निष्कर्ष तक ले जाने की जरुरत है. यह जितनी जल्दी हो, उतना अच्छा है. उन्होंने कहा महिलाएं पुरुषों के समकक्ष हैं. महिलाओं के आगे बढने की राह में जो भी बाधाएं हैं उन्हें तत्काल दूर किया जाना चाहिए. मुझे उम्मीद है कि यह दिन ज्यादा दूर नहीं है. नायडू के अनुसार, सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि महिलाओं को उनका दर्जा और स्थान दिया जाए. उन्होंने कहा यह कहना साफ तौर पर गलत है कि पुरुष महिलाओं की तुलना में कहीं ज्यादा सक्षम हैं. इन दिनों ज्यादातर क्षेत्रों में महिलाएं पुरुषों से आगे हैं.
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