सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि यदि कुछ लोग भड़काऊ और नफरत फैलाने वाला भाषण देते हैं तो उसे नजरअंदाज करना भारतीय लोकतंत्र के लिए बेहतर रहेगा, क्योंकि इसके खिलाफ उठाया गया कोई कदम ऐसी गतिविधि को बढ़ावा देगा और ऐसे लोगों को वैसा करने के लिए उकसाएगा। प्रधान न्यायाधीश आर. एम. लोढ़ा, न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ और न्यायमूर्ति रोहिंटन फाली नारिमन ने कहा कि देश की 60 वर्षो की लोकतांत्रिक यात्रा के दौरान समाज परिपक्व हो चुका है, इसने साथ जीना सीख लिया है और इसीलिए गड़बड़ी पैदा करने वाले, शांति एवं व्यवस्था पर खतरा पैदा करने वाले अनर्गल प्रलापों को नजरअंदाज करना बेहतर रहेगा।
गुजरात के दांग जिले में एक मेले के दौरान एक धार्मिक संगठन द्वारा विवादित सीडी बांटे जाने पर संज्ञान लेने का आग्रह करने वाले वकील कॉलिन गोंसाल्वे से अदालत ने कहा, "अच्छा यही रहेगा कि उन्हें नजरअंदाज कर दीजिए। यदि आप इस बात पर ध्यान देते हैं कि उन्होंने क्या कहा तो वे यह सोचने के लिए सक्रिय होंगे कि उनकी बकवास को ध्यान में लिया जा रहा है।" इस मुद्दे को अदालत के समक्ष अनहद नाम के एक एनजीओ ने उठाया था।
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