प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जम्मू एवं कष्मीर में आई बाढ़ से प्रभावित लोगों को राहत देने और उनके पुनर्वास के लिए राज्य सरकार को एक हज़ार करोड़ रूपये की अतिरिक्त मदद देने का एलान किया है। मोदी ने कहा कि यह एक राश्ट्रीय आपदा है और इसके लिए राज्य सरकार को राहत और बचाव कार्य के लिए जो 11 सौ करोड़ की रकम दी गई थी वह काफी नहीं है। स्थिति का जायज़ा लेने के बाद प्रधानमंत्री ने ज़रूरत पड़ने पर इस अतिरिक्त रकम को लोगों के पुर्नावास में लगाए जाने का विष्वास दिलाया। इसके अलावा प्रधानमंत्री ने मुसीबत की इस घड़ी में बाढ़ प्रभावित लोगों को हर संभव मदद देने का आष्वासन भी दिया। एक अच्छे पड़ोसी का कर्तव्य निभाते हुए प्रधानमंत्री नेे पाक अधिकृत कष्मीर में कुदरत के कहर से कराह रहे पकिस्तान के बाढ़ पीडि़तों को भी हर संभव मदद देने की पेषकष की। इस बाढ़ ने पहले से ही लड़खड़ाती अर्थवयवस्था वाले जम्मू कश्मीर की कमर त¨ड़ कर रख दी है। राज्य के दूर-दराज के गांव ज¨ पहले भी सरकारी य¨जनाअ¨ं के खराब क्रियान्वयन की वजह से मूल-भूत सुविधाअ¨ं की कमी से प्रभावित थे, उनका इस बाढ़ के बाद सामान्य जीवन की तरफ ल©ट पाना एक मुश्किल काम लग रहा है। हालांकि ऐसी हर प्राकृतिक आपदा के बाद जीवन धीरे-धीरे पुनः अपनी सामान्य गति तक ल©टता ही है किंतु फर्क पड़ जाता है उसकी गुणवŸाा पर। ल¨ग¨ं की अर्थव्यवस्था पर अ©र उससे भी ज्यादा अपनी आंख¨ं के आगे अपना सबकुछ बर्बाद ह¨ते देख रहे ल¨ग¨ं की मानसिक अवस्था पर।
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। सरहद पर बसे लोग आए दिन इन हालातों का सामना करते रहते हैं। पहले से ही समस्याओं से दो चार राज्य की जनता पर बाढ़ आफत बनकर टूटी है। राज्य में आयी बाढ़ ने धरती के स्वर्ग को नर्क में बदलकर रख दिया है। इस बारे में पुंछ की सुरनकोट तहसील के स्थानीय निवासी और उड़ान अखबार के रिपोर्टर सैय्यद एजाज़-उल-हक बुखारी कहते हैं कि सरहद पर बसे होेने की वजह से दर्द हमारी किस्मत बन चुका है। सरहद पर होने की वजह से हम हर वक्त परेषान हाल रहते हैं। उस पर अब यह आपदा हम पर कहर बनकर टूटी है जिसने चंद ही दिनों धरती के स्वर्ग में इतनी तबाही मचाई है कि आज इसके हालात बिल्कुल वैसे ही हैं जैसे किसी खुबसूरत फूल की हालत मुरझाने के बाद हो जाती है। जिधर देखो तबाही का मंज़र है, मदद के लिए एक दूसरे को बेसब्री से पुकारती हुई लोगों की चीखें हैं और आंखों में आसूंओं की वह बाढ़ है जो इस बाढ़ के गुज़र जाने के बाद न जाने कितने महीनों, सालों तक हमें हमारे गम की याद दिलाती रहेगी। आंकड़ों के मुताबिक बाढ़ की वजह से अब तक 5 सौ गांव डूब चुके हैं और तकरीबन 40 लाख लोग प्रभावित हुए हैं। एक गांव के लोगों का दूसरे गांव के लोगों से संपर्क नहीं हो पा रहा है। सड़क, पुल और संचार सेवाएं सब कुछ बाढ़ की भेंट चढ़ गए हैं। स्थिति इतनी भयावह हो गयी है कि बच्चे अपनों से सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर सब कुछ पहले जैसा हो पाएगा या नहीं?
सरहदी जि़ले पुंछ जि़ले की तहसील सुरनकोट की रहने वाली बीएससी की छात्रा मुर्सरत यासमीन बताती हैं कि बाढ़ की वजह से बिजली की बुरी हालत है। लोग अंधेरे में रहने को मजबूर हैं। कई स्थानों पर तो पीने का साफ पानी भी लोगों को नहीं मिल पा रहा है। कई स्कूलों की इमारतें बाढ़ में बह गई हैं और जो बची हैं वह इस काबिल नहीं कि वहां पढ़ाई हो सके। वैसे ही जम्मू एवं कष्मीर में इतनी सुविधाएं नहीं हैं कि बच्चे ठीक से षिक्षा हासिल कर सकें। यहां बच्चे बड़ी मुष्किल से स्कूल का रूख करते हैं ऐसे में बाढ़ ने हमारे सामने और ज़्यादा मुष्किलें पैदा कर दी हैं।
जम्मू कश्मीर के ह¨टल, व्यापार, कृषि-बागवानी सड़क¨ं तथा पुल¨ं क¨ अनुमानतः 2,630 कर¨ड़ का नुकसान हुआ है इसके अलावा पर्वतीय क्षेत्र¨ं के उच्च लागत वाले बुनियादी संरचनाअ¨ं जैसे कि रेलवे, पावर अ©र संचार क¨ 2,700-3,000 करोड़ का नुकसान हुआ है। हालांकि यह केवल अनुमानित आकलन है, क्य¨ंकि किसी भी प्राकृतिक आपदा के नुकसान का आकलन करने में काफी वक्त लगता है। कुल मिलाकर अगर यह कहा जाए कि इस वक्त कष्मीर बर्बादी के एक ऐसे द्वार पर खड़ा है जहां से दूर तक कोई रास्ता दिखाई नहीं देता तो षायद कुछ गलत न होगा। हालांकि इस रास्ते को दुरूस्त करने के लिए इस समय सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर कोषिषें जारी हैं। दिल्ली में स्थित चरखा डेवलपमेंट कम्युनिकेषन नेटवर्क एक ऐसा गैर सरकारी संगठन है जो पिछले कई सालों से जम्मू एवं कष्मीर के विकास के लिए काम कर रहा है। जिसके कई नतीजे समय समय पर सामने आते रहे हैं। लेकिन इसके बावजूद वह कौन सी चीज़ है जो राज्य की तरक्की में रूकावट का कारण बन रही है। इस बारे में राज्य के कई इलाकों का जायज़ा ले चुके चरखा के उर्दू एडिटर अनीस-उर-रहमान-खान अपने अनुभव को बयान करते हुए कहते हैं कि जानलेवा बाढ़ की तबाही के बाद बाढ़ ग्रस्त इलाकों में एक दम खाने-पीने का सामान पहुंचाने की ज़रूरत है क्योंकि जम्मू प्रांत के ज़्यादातर लोग माल-मवेषी पाल कर अपनी रोज़ी रोटी चलाते हैं जबकि कष्मीर के लोगों की आमदनी ़सेब और दूसरे सामान के ज़रिए होती है। इस बाढ़ ने लोगों की आजीविका के साधनों को खत्म कर दिया है। बाढ़ की वजह से खेती-बाड़ी, बाग और माल-मवेषियों को नुकसान होने की वजह से लोगों के पास आजीविका को कोई साधन नहीं बचा है। एक अनुमान के मुताबिक इस बाढ़ की वजह से सेब क¨ कार¨बार क¨ 8000 कर¨ड़ रुपए का नुकसान हुआ है। इसलिए इस ओर तुरंत ध्यान देने की ज़रूरत है। लेकिन राजनेता और अधिकारी सड़क संपर्क ध्वस्त होने की वजह दूर-दराज़ के इलाकों तक नहीं पहुंच पाते हैं और ग्रामीणों की इन अधिकारियों तक पहुंच असंभव हो जाती है। लिहाज़ा सरकार की कल्याणकारी योजनाओं और घोशणाओं का फायदा इन लोगों तक नहीं पहुंच पाता है और यह घोशणाएं सिर्फ समाचार पत्रों की सुर्खियां और सरकारी कागज़ातों में ही सिमट कर रह जाती हैं। मोहम्मद अनीस-उर-रहमान खान की बातों से यह साफ हो जाता है कि जब तक कष्मीर की भौगोलिक स्थिति को ज़हन में रखकर लोगों की मदद नहीं की जाएगी तब तक इन मासूम लोगों की जानें लैंड माइन्स, ज़मीन खिसकने, और कभी बाढ़ के नाम पर जाती रहेंगी। इसलिए प्रधानमंत्री से यह आग्रह है कि कई देषों की यात्रा करने के बाद हिंदुस्तान की तरक्की के जो सपने उन्होंने देखे हैं जैसे जापान की तर्ज पर बुलेट ट्रंेन, देष में 100 स्मार्ट सिटी बनाने का ख्वाब षमिल है। उन्हें पूरा करने से पहले उन्हें गंभीरता से इस पर भी ध्यान देने की ज़रूरत है कि जिस जापान की तारीफ करते हुए मोदी नहीं थक रहे थे वहां विकास के नाम पर सिर्फ बुलेट ट्रंेन और स्मार्ट सिटी ही नहीं हैं बल्कि समय समय पर सूनामी जैसे तूफान से भयानक तबाही के बाद आसमानी आपदा से निपटने के खास इंतज़ाम हैं। आसमानी आपदा की संभावना को देखते हुए जापान के पास ऐसा सिस्टम है जिसकी सहायता से तीन मिनट के अंदर पूरे जापान में अलर्ट जारी कर दिया जाता और लोग सुरक्षित स्थानों पर पहुच जाते हैं। इसलिए प्रधानमंत्री को यह सोचना चाहिए कि जब जापान पुरानी आपदाओं से हुई तबाही से सबक लेते हुए इतनी तैयारी कर सकता है तो हम क्यों नहीं कर सकते? उत्तराखंड, बिहार, गुजरात और जम्मू एवं कष्मीर आदि राज्य कब तक प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली तबाही का सामना करते रहेंगे? हमें भी तकनीकी का इस्तेमाल करते हुए अपने सिस्टम को मज़बूत बनाना होगा। हम किस बात का इंतज़ार कर रहे हैं। क्या हम तकनीकी का इस्तेमाल करके देष के बुनियादी ढ़ाचे को बेहतर बनाने का कौषल नहीं रखते? क्या ऐसा नहीं हो सकता कि इस बाढ़ के बाद किसी को यह न कहना पड़े कि दर्द हमारा भाग्य बन चुका है?
निकहत परवीन
(चरखा फीचर्स)
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