विशेष आलेख : पहले से ही बदहाल शिक्षा व्यवस्था का बाढ़ के बाद क्या होगा - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 16 सितंबर 2014

विशेष आलेख : पहले से ही बदहाल शिक्षा व्यवस्था का बाढ़ के बाद क्या होगा

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जम्मू एवं कश्मीर राज्य में बाढ़ का प्रकोप अपने चरम पर है। पूरे राज्य में बाढ़ की वजह से हाहाकार मचा हुआ है। जम्मू संभाग के राजौरी और पुंछ जि़ले में हालात जस के तस बने हुए हैं। चरखा के पुंछ कोआर्डिनेटर निज़ाम दीन मीर के मुताबिक तहसील पुंछ में 1254, सुरनकोट में  688, मेंढ़र में 383 और मंडी में 915 घरों को नुकसान पहुचा है। पुंछ में बाढ़ से अब तक 39 लोगों की मौत जबकि 89 लोग घायल हो चुके हैं। इसके अलावा 24 लोग अभी भी लापता हैं। राज्य के लोग पिछले 60 सालों में सबसे भयंकर बाढ़ का सामना कर रहे हैं। राज्य में आई इस बाढ़ ने जम्मू के सीमावर्ती जिले पुंछ में पहले से ही लचर बुनियादी ढ़ांचे क¨ पूरी तरह से तहस नहस कर दिया है। अ©र इस सबमें सबसे बुरी तरीके से प्रभावित ह¨गी वहां की शिक्षा व्यवस्था।
            
सामान्य परिस्थितिय¨ं में भी पुंछ की शिक्षा व्यवस्था बहुत ही बुरे स्तर पर है। 2011 की जनगणना के अनुसार पुंछ में साक्षरता की दर 66.7 प्रतिशत है जबकि 2001 में यह 51.19 प्रतिशत है।  इसमें भी स्त्री शिक्षा की स्थिति अ©र भी ज्यादा श¨चनीय है। 2011 की जनगणना के अनुसार पुंछ में स्त्री शिक्षा का दर 53.19 प्रतिशत है जबकि 2001 में यह दर 35.96 प्रतिशत है। पुंछ जिला चार तहसील¨ं में बंटा हुआ है- मण्डी तहसील, हवेली तहसील, मेंढर तहसील अ©र सुरनक¨ट तहसील। सुरनक¨ट पुंछ शहर से 27 किल¨मीटर दूर पूर्व की तरफ बसा हुआ है।
   
सुरनकोट के गांव मरहोट में लड़कियों की षिक्षा की स्थिति बहुत ही असंत¨षजनक है। । इस गांव की आबादी तकरीबन 15 हज़ार है और यह गांव सुरनकोट विधान सभा निर्वाचन क्षेत्रे से किसी भी उम्मीदवार की जीत में एक अहम रोल अदा करता है। यही वजह है कि इस गांव को सियासी हल्कों में वोट बैंक के नाम से जाना जाता है। 15 हज़ार की आबादी होने के बावजूद इस गांव में सिर्फ एक ही हाईस्कूल है। इस स्कूल की नवीं और दसवीं कक्षा में तकरबीन 150 छात्र-छात्राएं हैं। दसवीं के बाद यहां छात्राओं के द्वारा पढ़ाई छोड़ देना आम सी बात है। 10 वीं में अगर किसी वजह से छात्राएं फेल हो जाती हैं तो वह दोबारा 10 वीं करने के लिए हिम्मत नहीं जुटा पाती हैं और उनकी पढ़ाई बीच में ही छूट जाती है। लड़के तो हिम्मत करके किसी तरह दसवीं की पढ़ाई दोबारा कर लेते हैं मगर लड़कियों के माता-पिता इतना इंतज़ार नहीं करते और बीच में ही उनकी षादी कर देते हैं। गांव की जो लड़कियां दसवीं कक्षा पास कर भी लेती है तो गांव में आगे की पढ़ाई का बंदोबस्त न होने की वजह से उनकी पढ़ाई बीच में ही छूट जाती है। इस बारे में गांव के सरपंच खादिम हुसैन का कहना है कि गांव में एक ही हाईस्कूल है। हमने बार बार सरकार से मांग की कि लड़कियों के लिए एक अलग हाईस्कूल दे दिया जाए मगर हमारी मांग को अनसुना कर दिया गया। गांव में आगे की पढ़ाई का बंदोबस्त न होने की वजह से लड़कियां बीच में ही पढ़ाई छोड़ रही हैं। 

दूसरी सबसे बड़ी समस्या यह है कि यहां से हायर सेकेंडरी स्कूल तक जाने में छात्र-छात्राओं को 10 से 15 किलोमीटर का रास्ता तय करना पड़ता है। आधे रास्ते में तो सड़क ही नहीं है और जहां तक है भी वह भी बहुत खराब है।  सवारी का इंतज़ाम न होने की वजह से बहुत सी छात्राएं वक्त पर स्कूल नहीं पहुंच पाती हैं। छात्राओं को आम सवारियों के साथ भेड़-बकरियों की तरह सफर करना पड़ता है। बहुत सी छात्राएं सवारी न मिलने की वजह से घर वापस लौट जाती हैं। उन्होंने आगे बताया कि छात्राओं के माता-पिता इस बात को अपने आत्म सम्मान के खिलाफ समझते हैं। लिहाज़ा इसका नतीजा यह होता है कि वह अपनी बेटियों को बीच में ही पढ़ाई छुड़वा देते हैं। जम्मू कश्मीर की जनता के लिए भले ही यह बाढ़ 60 साल में पहली बार आई है लेकिन वह पहले भी अन्य तरीक¨ं की प्राकृतिक अ©र मानव-निर्मित आपदाअ¨ं का बहादुरी से सामना करते आए हैं। निश्चित ही इस बाढ़ से हुई तबाही से ह¨ने वाले क्षति से वह एकजुटता के साथ लड़ेंगे। लेकिन आधारभूत सुविधाअ¨ं अ©र सरकारी य¨जनाअ¨ं के मामले में इनके साथ न्याय किया जाना बहुत जरूरी है ताकि भविष्य में इस तरह की किसी भी मुसीबत से लड़ने के लिए वे अ©र ज्यादा मजबूती के साथ खड़े ह¨ सकें।






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सिद्दीक अहमद सिद्दीकी
(चरखा फीचर्स)

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