पुलिस गस्ती में अपराधी मस्ती में
मुजफ्फरपुर:(मुकुंद सिंह ) जिले में लगातार बड़ी आपराधिक घटनाएं हो रही है. पुलिस हर घटना के बाद विशेष टीम का गठन करती है. छापेमारी शुरू होती है लेकिन मामले का परदाफाश नहीं होता है. जबकि यहां सिटी एसपी, एसएसपी, डीआइजी व आइजी जैसे पदाधिकारी पद स्थापित है. हर घटना के बाद पुलिस लोगों को हिरासत में लेकर पूछताछ करती है लेकिन कोई निष्कर्ष पर नहीं पहुंच रही है. शहर में ऐसे अभी कई मामला है जिसमें पुलिस जांच कर रही है. पैक्स अध्यक्ष गरीबनाथ की हत्या, छात्र निखिल का अपहरण, शुभम हत्या कांड, बैंक मैनेजर हत्याकांड पर अभी तक पुलिस को कुछ ठोस सुराग हाथ नहीं लगा है.
आठवें दिन भी पुलिस खाली हाथ
नारायण एजुकेशनल प्वांइट के संचालक सत्य नारायण के अपहरण के भी एक सप्ताह बीत गये. लेकिन इसमें भी पुलिस अब तक कोई नतीजे पर पहुंच पायी है. जबकि इस मामले की मॉनिटरिंग सीएम हाउस से लेकर डीजीपी तक स्वयं कर रहे हैं. इस मामले में भी विशेष टीम का गठन किया जा चुका है. दो दर्जन से अधिक लोगों को हिरासत में लेकर पूछताछ कर चुकी है, लेकिन अब तक पुलिस को कोई सुराग नहीं मिला है. पुलिस की कुछ अधिकारियों की बातों से एसोसिएशन ऑफ बिहार एकेडमिक के सदस्य काफी दुखी है. इनके अनुसार पुलिस के एक वरीय पदाधिकारी ने तो यहां तक कह डाला कि स्कूल चलाना भी व्यवसाय है. और अपहरण भी व्यवसाय है. जबकि थाने स्तर की एक अधिकारी ने बुढ़ी गंडक नदी के किनारे श्मशान घाट व झाड़ियों में स्वयं ढ़ुंढ़ने की नसीहत दे दी.
मैनेजर हत्या कांड में 15 दिन बाद भी नहीं हुई ठोस कार्रवाई
बैंक मैनेजर वीरेंद्र श्रीवास्तव की अहियापुर थाना के आयाची ग्राम स्थित घर पर पंद्रह रोज पूर्व उनकी हत्या कर दी गयी. उसे डकैती का रुप अपराधियों ने देने का प्रयास किया. उस समय भी पुलिस ने विशेष टीम का गठन कर जल्द अपराधियों को दबोचने का दावा किया था. मामले में दो संदिग्ध को हिरासत में भी लिया गया. लेकिन, एक बड़े सफेदपोश के दबाव में उसे छोड़ देने का मामला भी चर्चा में रहा. आज तक पुलिस किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंची. मामले को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है.
25 दिन बाद भी नहीं हुई छात्र निखिल की बरामदगी
पच्चीस दिन पूर्व छात्र निखिल का अपहरण कर लिया गया. इसमें उसके पिता वीरेंद्र सिंह ने अपहरण में शामिल लोगों के नाम भी पुलिस को बताये. लेकिन, पुलिस अब तक निखिल को बरामद नहीं कर पायी है. अभी भी वह अपहृतकर्ताओं के चंगूल में है. या फिर उसके साथ कोई घटना घटी. इसका खुलासा पुलिस नहीं कर पायी है. इतना जरूर हुआ कि इस मामले में उसके दो साथियों को जेल भेज दिया गया. अब यह मामला भी पुलिस के ठंडे बस्ते में है. पुत्र के नहीं आने से उसके माता-पिता की बेचैनी बढ़ी हुई है.
शहर में नाव की सवारी, वह भी रियायशी इलाके में
मुजफ्फरपुर:(मुकुंद सिंह ) शहर में नाव की सवारी, वह भी रियायशी इलाके में. चौंकिए नहीं, हम अपने शहर मुजफ्फरपुर की ही बात कर रहे हैं. सिकंदरपुर-लक्ष्मी चौक जाने वाली सड़क (मरीन ड्राइव) होकर अगर आप आना जाना चाहते हैं तो नाव की सवारी करनी पड़ेगी. महज 100 मीटर दूरी तय करने के लिए आपको पांच रुपये देने होंगे. साथ में साइकिल है तो 10 व मोटर साइकिल से नाला पार करना है तो 50 रुपये तक देने पड़ सकते हैं. हालांकि अगर आप मोल-जोल में माहिर हैं तो तय राशि में नाविक कुछ रियायत दे सकते हैं. हद तो यह है कि नाव चलाने वालों ने धंधा चालू रखने के लिए सड़क को भी खोद दिया है. ताकि सिकंदरपुर मन से आने वाले पानी का बहाव बना रहे और उनका धंधा मंदा नहीं पड़े. गौर करने की बात है कि यह दुर्गति उस सड़क की है, जिसकी सुंदरता को देखते हुए कभी पूर्व जिलाधिकारी ने इसे मरीन ड्राइव का नाम दिया था. मगर महज तीन डिसमिल जमीन का अधिग्रहण नहीं होने के कारण यह ड्रीम प्रोजेक्ट दो साल के बाद भी पूरा नहीं हुआ. भूमि अधिग्रहण का मामला हाई कोर्ट में जाने के कारण करीब सौ मीटर में सड़क का निर्माण अटका हुआ है. सड़क के शेष हिस्सा का निर्माण पूरा हो चुका है. बारिश से पहले तक लोग साइकिल व मोटर साइकिल से इस रास्ते आया-जाया करते थे. पिछले वर्ष बारिश में भी कुछ दिन के लिए पानी लग गया था. लेकिन नाव चलने की नौबत नहीं आयी थी. बन गयी होती सड़क तो नहीं लगता जाम : करीब छह करोड़ की लागत वाली सड़क अगर तय समय सीमा के अंदर बन गयी होती तो शहर की ट्रैफिक की स्थिति ही अलग होती. लोगों को बेवजह जाम की समस्या से जूझना नहीं पड़ता. शहर के दो पाट को जोड़ने वाली इस सड़क के निर्माण से ब्रम्हपुरा, लक्ष्मी चौक, जूरन छपरा, कंपनी बाग, सरैया गंज का ट्रैफिक लोड काफी हद तक कम हो जाता. बैरिया बस स्टैंड की ओर से आने वाले लोगों की दूरी भी कम हो जाती. साथ ही शहर को रिंग रोड मिल जाता.
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