अमेरिकी वित्तीय सेवा कंपनी मेरिल लिंच का दावा है कि सिर्फ स्विस बैंकों में ही जमा भारतीयों के काला धन का आधा हिस्सा भारत आ जाए तो देश के विदेशी मुद्रा भंडार में 30 से 35 अरब डॉलर (1.8 से 2.1 लाख करोड़ रुपये) का इजाफा हो सकता है। इतनी रकम से मोदी सरकार की वर्ष 2022 तक सबको आवास देने के लिए दरकार दो लाख करोड़ रुपये का जुगाड़ हो सकता है। अगर आंकड़ों की ही बात करें तो वर्ष 2014-15 के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और रक्षा बजट का पूरा इंतजाम इस रकम से किया जा सकता है। सर्व शिक्षा अभियान के सात साल का बजट (वर्ष 2014 में 28,635 करोड़) इस रकम से जुटाया जा सकता है।
मेरिल लिंच की रिपोर्ट ने माना है कि काला धन वापसी की राह में कानूनी दांवपेंच सबसे बड़ा रोड़ा हैं। दोहरा कराधान बचाव संधि जैसे तमाम कानूनी पेंच सुलझा लिए जाएं तो अर्थव्यवस्था की सेहत सुधरेगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 1998 से 2012 के बीच भारत से 186 अरब डॉलर (11.16 लाख करोड़ रुपये) से भी ज्यादा रकम चोरी छिपे स्विस बैंक में जमा की गई। लेकिन इससे काफी रकम अब इधर-उधर कर दी गई है। गहन अनुसंधान के आधार पर रिपोर्ट अनुमान लगाया गया है कि भारतीयों का करीब 200 अरब डॉलर (12 लाख करोड़ रुपये) का काला धन विभिन्न देशों के बैंकों में जमा पड़ा है।
ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी के राघबेंद्र झा और डक नगुयेन ट्रुआंग ने मेरिल लिंच के लिए यह अध्ययन पेश किया है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि काले धन की वापसी से डॉलर के मुकाबले रुपये को भी मजबूती मिलेगी।
स्विट्जरलैंड में कर चोरी कोई संज्ञेय अपराध नहीं है। लिहाजा वह किसी के बैंकिंग खातों की जानकारी का खुलासा करने के पक्ष में नहीं है। एक वरिष्ठ स्विस अधिकारी का कहना है कि स्विस बैंकों में काला धन रखने वाले नाम और खाते सार्वजनिक करने को लेकर भारत से कुछ मतभेद हैं। हालांकि स्विट्जरलैंड के विदेश मामलों के विभाग में निदेशक और विधि सलाहकार वेलेंटिन जेलवेगर ने कहा है कि गैरकानूनी गतिविधियों के मामले में अगर किसी देश से औपचारिक तौर पर जांच का कोई अनुरोध मिलता है तो उनका देश तत्परता से कार्रवाई करेगा। बहरहाल, अंतरराष्ट्रीय कानूनों को मानते हुए स्विट्जरलैंड कर चोरी को अपराध बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। 34 देशों के आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) के बीच संधि के जरिये भी स्विट्जरलैंड कर सूचनाओं के स्वत: आदान-प्रदान पर राजी हुआ है।
आर्थिक विशेषज्ञों और जांच एजेंसियों का यह भी कहना है कि काले धन के जमाखोरों का नाम सामने लाकर बहुत कुछ हासिल नहीं किया जा सकता। सरकार को ऐसी नीतियां बनानी चाहिए जिससे गैर कानूनी तरीके से धन उपार्जन पर अंकुश लगाया जा सके। यह राजनीतिक, नैतिक मूल्यों का मामला नहीं है, इसे विशुद्ध आर्थिक उपायों से हल किया जाना चाहिए। रियल एस्टेट सेक्टर में भ्रष्टाचार, टूजी स्पेक्ट्रम, अवैध खनन घोटाला, कोयला आवंटन घोटाला काले धन के हेरफेर का जीताजागता सुबूत हैं। आयात-निर्यात नीति, कर छूट व्यवस्था में भी बदलाव जरूरी है ताकि उद्योग अनुचित लाभ न ले सकें। सीबीडीटी की 2012 की रिपोर्ट ने सुझाव दिया है कि सरकार मुकदमे से छूट और कर चुकाने का प्रस्ताव देकर काले धन के आरोपियों को सामने लाने की एक कोशिश कर सकती है।
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