उच्चतम न्यायालय ने न्यायाधीशों के सेवानिवृत्त होने के बाद कोई सरकारी जिम्मेदारी स्वीकार नहीं करने की अवधि निर्धारित करने से आज इंकार कर दिया। न्यायमूर्ति पी सदाशिवम द्वारा प्रधान न्यायाधीश पद से सेवानिवृत्त होने के बाद राज्यपाल का पद ग्रहण करने पर यह मुद्दा जोर शोर से चर्चा में आया था। प्रधान न्यायाधीश एचएल दत्तू की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने इस संबंध में मोहम्मद अली की जनहित याचिका खारिज कर दी।
याचिका में शीर्ष अदालत और उच्च न्यायालयों के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को एक निश्चित अवधि तक कोई भी सरकारी जिम्मेदारी स्वीकार नहीं करने और सरकार को प्रधान न्यायाधीश या उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के परामर्श और उनकी सहमति के बगैर किसी भी सेवानिवृत्त न्यायाधीश की नियुक्ति नहीं करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था।
न्यायमूर्ति दत्तू के पूर्ववर्ती प्रधान न्यायाधीश आरएम लोढा ने अपने कार्यकाल के अंतिम दिन इस संबंध में राय व्यक्त करते हुये कहा था कि सेवानिवृत्त हो रहे न्यायाधीशों को कम से कम दो साल तक कोई नयी जिम्मेदारी नहीं दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा था कि वह इस अवधि में कोई भी सरकारी जिम्मेदारी स्वीकार नहीं करेंगे।
जनहित याचिका में कहा गया था कि न्यायपालिका की सत्यनिष्ठा की रक्षा के लिये इस संबंध में आदेश पारित करना जरूरी है। याचिका में कहा गया था कि संविधान में इस बारे में कोई प्रावधान नहीं है, क्योंकि संविधान निर्माताओं ने यह कल्पना नहीं की थी कि देश का कोई पूर्व प्रधान न्यायाधीश सरकार द्वारा किसी पद के लिये की गयी पेशकश स्वीकार करेगा।
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