काला धन मामले में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर तीन नामों का खुलासा किया है. सोमवार सुबह से इस बाबत गोवा की खनन कारोबारी राधा सतीश टिम्बलू, डाबर ग्रुप के चेयरमैन प्रदीप बर्मन और राजकोट के कारोबारी पंकज चमनलाल का नाम चर्चा में रहा. लेकिन शाम ढलते-ढलते इलेक्शन कमीशन वॉच की एक खबर ने इसे नया मोड़ दे दिया. मामले में नया खुलासा यह है कि टिम्बलू प्राइवेट लिमिटेड ने बीते 9 वर्षों में सिर्फ बीजेपी को 1.18 करोड़ रुपये चुनावी चंदा दिया है.
राजनैतिक दलों के लिए कॉरपोरेट कंपिनयों से चंदे की चाहत कोई नई बात नहीं है. लेकिन इलेक्शन कमीशन वॉच की खबर ने कालाधन मामले में नया रोमांच जरूर जोड़ दिया है. इसके मुताबिक वित्तीय वर्ष 2004-05 और 2011-12 के बीच राधा टिम्बलू ने बीजेपी को 1.18 करोड़, जबकि 7 वर्षों में कांग्रेस को 65 लाख रुपये का चंदा दिया है. यही नहीं, रिपोर्ट के मुताबिक, वित्तीय वर्ष 2011-12 में राजकोट के चमनभाई लोढ़िया ने भी बीजेपी को 51 हजार रुपये का चंदा दिया है.
गौरतलब है कि देश में 13 इलेक्टोरल ट्रस्ट हैं, जिनमें सिर्फ 7 सीबीडीटी से अप्रूव हैं. इसके पीछे कारण यह है कि इन ट्रस्ट का निर्माण 2013 में सीबीडीटी रूल्स आने के बाद हुआ. बाकी छह ट्रस्ट सीबीडीटी से अप्रूव नहीं हैं इसलिए नियमों के मुताबिक वह चंदा देने के क्रम में इस बाबत कोई जानाकरी साझा नहीं करते. सीबीडीटी नियमों के मुताबिक सभी 7 ट्रस्ट को अपने चंदे की जानकारी निर्वाचन आयोग को देनी होती है. दिलचस्प यह भी है कि बाकी 6 ट्रस्ट ने भी वित्तीय वर्ष 2004-05 और 2011-12 के बीच 105 करोड़ रुपये का चंदा दिया है, जिसकी बारे में निर्वाचन आयोग को अधिक जानकारी नहीं है.
इसका अर्थ यह हुआ कि जानकारी के अभाव में यह कहना मुश्किल है कि बाकी 6 ट्रस्ट के जरिए कंपिनयों ने दलों को जो चंदा दिया वह वाकई टैक्स से छूट का आधार था या कालेधन को सफेद करने का एक तरीका. जाहिर तौर पर खुलासों और कालेधन के इस दौर में जरूरत इस बात की भी है कि बाकी 6 इलेक्टोरल ट्रस्ट चंदे की रकम के बारे में विस्तार से जानकारी दें ताकि सही मायने में कालेधन पर स्थिति साफ हो सके. इन 6 ट्रस्ट में जनरल इलेक्टोरल ट्रस्ट, इलेक्टोरल ट्रस्ट, कॉरपोरेट इलेक्टोरल ट्रस्ट, भारती इलेक्टोरल ट्रस्ट और सत्या इलेक्टोरल ट्रस्ट के नाम शामिल हैं.
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