केंद्र ने आज काला धन मामले में जिनीवा के एचएसबीसी बैंक में खाता रखने वाले 627 भारतीयों के नामों की सूची उच्चतम न्यायालय के सामने पेश की। उच्चतम न्यायालय ने विशेष जांच दल से इस सूची की पड़ताल करने और कानून के अनुसार उचित कार्रवाई करने को कहा।
प्रधान न्यायाधीश एच एल दत्तू की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र द्वारा पेश की गयी सूची के सीलबंद लिफाफे को नहीं खोला और कहा कि इसे केवल विशेष जांच दल (एसआईटी) के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष द्वारा ही खोला जाएगा, जिसका गठन शीर्ष अदालत द्वारा किया गया है। शीर्ष अदालत ने इसके साथ ही एसआईटी से नवंबर के अंत तक अपनी जांच के संबंध में स्थिति रिपोर्ट सौंपने को भी कहा।
पीठ के समक्ष दस्तावेज पेश करते हुए अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि खाताधारकों के बारे में ब्यौरा वर्ष 2006 का है जिसे फ्रांसीसी सरकार ने वर्ष 2011 में केंद्र सरकार को भेजा था। उन्होंने बताया कि जिनीवा में एचएसबीसी बैंक से आंकड़ें को चुरा लिया गया था जो बाद में फ्रांस पहुंच गए और वहां से सरकार को सूचना मिली। रोहतगी ने बताया कि सीलबंद लिफाफे में तीन दस्तावेज हैं, जिसमें सरकार का फ्रांसीसी सरकार के साथ हुआ पत्र व्यवहार, नामों की सूची और स्थिति रिपोर्ट शामिल है।
रोहतगी ने न्यायालय को यह भी सूचित किया कि कुछ लोगों ने स्वीकार कर लिया था कि उनके विदेशी बैंकों में खाते हैं और उन्होंने कर का भुगतान किया है। प्रधान न्यायाधीश के साथ ही न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई और मदन बी लोकुर की पीठ ने केंद्र को विदेशी राष्ट्रों के साथ विभिन्न संधियों के संबंध में अपनी शिकायत एसआईटी के समक्ष रखने की भी अनुमति दी। पीठ ने कहा कि एसआईटी के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष उच्चतम न्यायालय के पूर्व जज हैं और वे कोई सामान्य लोग नहीं हैं तथा वे काला धन मामले की जांच से उभरने वाले विभिन्न मुद्दों पर फैसला ले सकते हैं।
पीठ ने कहा कि हम पूरी सूची एसआईटी को भेजेंगे और वह कानून के अनुसार आगे बढ़ सकती है। यह उन्हें देखना है कि आगे की जांच कैसे की जाए। इस बीच, शीर्ष अदालत ने इस मुद्दे पर एसआईटी को अतिरिक्त सूचना उपलब्ध कराने की अनुमति देने संबंधी आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल की याचिका पर सुनवाई करने से मना कर दिया और कहा कि वह सुनवाई की अगली तारीख तीन दिसंबर को इस पर विचार करेगी। केंद्र ने 27 अक्टूबर को अपने हलफनामे में डाबर इंडिया के प्रमोटर प्रदीप बर्मन, एक सर्राफा कारोबारी तथा गोवा के खान मालिकों सहित आठ नामों का खुलासा किया था, जिनके खिलाफ कथित रूप से काला धन रखने को लेकर अभियोजन की कार्रवाई शुरू की गयी थी। केंद्र ने कहा था कि जब तक प्रथम दृष्टया कुछ गलत होने की बात साबित नहीं हो जाती, सभी खाताधारकों के नामों का खुलासा नहीं किया जा सकता।
केंद्र के रुख को खारिज करते हुए उच्चतम न्यायालय ने कल आदेश दिया था कि सरकार विदेशों में बैंक खाते रखने वाले सभी भारतीय खाताधारकों के नामों का खुलासा करे। सरकार द्वारा शीर्ष अदालत में दाखिल की गयी सूची में राजकोट निवासी सर्राफा कारोबारी पंकज चिमनलाल लोढिया तथा गोवा स्थित खनन कंपनी टिम्बलो प्राइवेट लिमिटेड तथा इसके पांच निदेशकों के नाम सामने आए थे। हलफनामे में कहा गया था कि सरकार विदेशों में गैर कानूनी धन रखने वाले लोगों के नामों का खुलासा करने के लिए प्रतिबद्ध है। हालांकि किसी भारतीय द्वारा विदेश में रखा जाने वाला हर खाता जरूरी नहीं कि गैरकानूनी हो और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत नागरिकों के निजता के मौलिक अधिकार की अनदेखी नहीं की जा सकती। इसे इस न्यायालय ने भी मान्यता दी है।
इसमें शीर्ष अदालत से अपने पूर्व के आदेश में भी संशोधन किए जाने की अपील की गयी जिसमें सरकार को उन विदेशी खाताधारकों के नामों का भी खुलासा करने को कहा गया था जिनके खिलाफ कालाधन रखने के संबंध में कोई सबूत नहीं पाया गया है। सरकार ने कहा था कि उसे अन्य देशों के साथ कर समझौते करने में समस्याएं आ सकती हैं। हलफनामे में कहा गया था कि सरकार की विदेशों में काला धन छुपाने वाले लोगों के नामों सहित सूचना छुपाने की कोई मंशा नहीं है लेकिन वह कुछ स्पष्टीकरण चाहती है जो सरकार को अन्य देशों के साथ समक्षौते करने में सक्षम बनाएंगे जिनके तहत विदेशों में जमा बेनामी धन संबंधी सूचना प्राप्त की जा सकती है।
हलफनामे में कहा गया था कि इन कर संधियों और समक्षौतों के तहत प्राप्त सूचना का खुलासा उन सभी मामलों में उचित कानूनी प्रक्रिया के अनुसार किया जाएगा जिनमें कर चोरी साबित हो चुकी है। मौजूदा सरकार की नीयत स्पष्ट और संदेह से परे है। हलफनामे में इसके साथ ही कहा गया कि सरकार विदेशों में जमा काले धन का पता लगाने की इच्छुक है और इसके लिए वह सभी राजनयिक और कानूनी साधनों का इस्तेमाल करेगी और साथ ही सूचना हासिल करने के लिए उन सभी जांच एजेंसियों की मदद ली जाएगी जो इसका पता लगाने में मदद कर सकती हैं।
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