धर्म प्रधान भारतीय संस्कृति में जीवन का हर सुख व आनन्द भाग्य कर्म अथवा दैव कृपा का ही परिणाम माना जाता है। मान्यता है कि मनुष्य को इस जन्म में प्राप्त वर्ण, धन-सम्पदा, और सभी जीवनोपयोगी वस्तुएँ, मित्र, परिवेश और विविध संबंध पूर्वजन्म के पाप-पुण्यों का ही फल है। प्रारब्ध में संचित कर्मों के अनुसार ही मनुष्य को इस जन्म में फल प्राप्त होता है। इनमें मनुष्य कोई फेरबदरल नहीं कर सकता, मगर तीव्र कर्म व उपासना अनुष्ठान आदि का अवलंबन कर भाग्य बदल दिए जाने और प्रकृति एवं देवताओं तक को चुनौती दिए जाने की घटनाएँ भरी पड़ी हैं।
आज भी किसी भी कार्य में कोई बाधा या संकट उत्पन्न हो जाने पर मनुष्य द्वारा विभिन्न उपासना पद्धतियों, साधनाओं, पूजा-अर्चना आदि अनुष्ठानों द्वारा देवी-देवताओं को प्रसन्न कर इच्छित कामना पूरी कराने की परिपाटी चली आ रही है। यह विलक्षणता ही है कि हर निश्चित कार्य के लिए पृथक-पृथक विशिष्ट देवी-देवता की उपासना का सहारा लिया जाता है। वेदों, पुराणों, शास्त्रों में ऎसे सैकड़ों उदाहरण मौजूद हैं। कलियुग भौतिक सुख-सुविधाओं एवं ऎश्वर्य-विलास का युग माना जाता है जिसमें धन को सर्वोपरि कारक मानने को नकारा नहीं जा सकता। धर्म शास्त्रों में लक्ष्मी को धनदात्री एवं दारिद्रय विनाश की प्रधान देवी के रूप में पूजा गया है।
पौराणिक काल से समृद्धि की कामना से उनकी पूजा-अर्चना की जाती रही है। आज भी दीपावली पर प्रमुख रूप से हर कहीं महालक्ष्मी पूजा व्यापक श्रद्धाभावना के साथ परम्परागत रूप से प्रचलित है और दीवाली तो लक्ष्मी पूजा का वार्षिक पर्व बन ही चुका है। आज के समय में देश में बेरोजगारी और बेकारी सुरसा के मुँह की तरह बेतहाशा बढ़ती ही चली जा रही है और लोगों के जीवन निर्वाह में बाधाएं पहाड़ बनकर आ खड़ी हैं, ऎसे में धन के अभाव में जीवन निर्वाह कितना मुश्किल है इसकी कल्पना भी भयानक है।
हमारे पुराणों और मंत्र शास्त्रों में अनेकानेक चमत्कारिक नुस्खे भरे पड़े हैं जिनका अवलम्बन करने से मनुष्य को आजीविका लायक वातावरण बन जाने और भगवती लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होने के उदाहरण आज भी निराशा के महासागर में आशाओं का ज्वार उमड़ा देते हैं। समूची प्रकृति मंत्रों के अधीन है और सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाए तो यह चराचर जगत् परमात्मा की कृपा से ही व्याप्त है। मंत्रों का विधिपूर्वक आश्रय ग्रहण कर मानव प्रकृति को अपने अनुकूल बना सकता है लेकिन इसमें आवश्यकता होती है श्रद्धा, विश्वास और यम-नियमपूर्वक साधना की।
मंत्रों को प्रयोग में लाने से पूर्व इन्हें सिद्ध किए जाने की जरूरत होती है और इसे सिद्ध करने के उपरांत ही ये साधकों की इच्छाओं की पूर्ति करने में सहायक सिद्ध होते हैं। मंत्रों की सिद्धि के लिए विशेष मुहूर्त होते हैं लेकिन प्रायःतर रविपुष्य, गुरु पुष्य नक्षत्र, सर्वार्थ सिद्धि, अमृत सिद्धि योग प्रमुख हैं। ख़ासकर चन्द्र ग्रहण, सूर्यग्रहण या दीवाली होली को की गई मंत्र साधना शीघ्र फलदायी व बहुत जल्दी सिद्ध होती है।
मंत्र-तंत्र शास्त्रों के अनुसार चन्द्र ग्रहण में देवी मंत्रों तथा सूर्य ग्रहण में देव मंत्रों की साधना की जाती है। शुभ मुहूर्त में कुशा या कंबल के आसन पर बैठकर आचमन, प्राणायाम, शुद्धि आदि के बाद गुरु के बताए अनुसार विधि के साथ निश्चित परिमाण में मंत्र जप किए जाते हैं। ऎसा माना जाता है कि अपनाए गए मंत्र के जितने अक्षर होते हैं उतने ही लाख मंत्र जप पूरे होने के बाद मंत्र का प्रयोग सद्य फल देता है। इसको अनुष्ठान प्रक्रिया में ‘‘पुरश्चरण’’ कहा जाता है।
यहां लक्ष्मी साधना की दृष्टि से कुछ प्रयोग दिए जा रहे है जिनके अवलम्बन से साधकाें को ख़ासा लाभ होता देखा गया है। धन प्राप्ति के इच्छुक व्यक्ति को शुभ मुहूर्त से लक्ष्मी बीज ‘‘श्रीं ’’ का जप करना चाहिए। कम से कम इसके एक लाख जप करने से लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। नियमित साधना का समय न मिले तो फुर्सत के क्षणों में भी इसे बिना किसी विधि के मन में उच्चारित करना भी लाभदायी होता है। किसी भी देवता का पूरा मंत्र जप करने में कठिनाई हो तो उसका बीज मंत्र भी अपनाया जा सकता है। यह भी बेहद प्रभावकारी होता है।
अथर्ववेद का ‘‘श्रीसूक्त’’ लक्ष्मी प्रसन्न करने का अमोघ उपाय है। इसे नित्य प्रति दोहराने से विशेष धन की प्राप्ति होती है। श्रीसूक्त को ‘‘हरिः ॐ हिरण्यवर्णा.... से.... पुरुषानहम्॥’’ तक जपना चाहिए। इन पन्द्रह मंत्रों के नित्य पाठ से सभी प्रकार की सिद्धियां और धन-धान्य प्राप्त होता है। इससे होने वाले फायदे इस श्लोक में गिनाए गए हैं
यः शुचि प्रयतोभुत्वा
जुहुयादाज्यमन्वहम्।
सूक्तं पन्चदशचर्ंं च श्रीकामः सततं जपेत्॥
लक्ष्मी पाने का एक मंत्र यह है-
‘‘ॐ श्री ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्मयै नमः’’
दुर्गा सप्तशती के अर्गला स्तोत्रम् के सोलहवें मंत्र का जप भी विद्या, यश, लक्ष्मी प्रदान करता है तथा शत्रुओं का नाश करता है। इसमें आगे व पीछे ‘‘ॐ क्लीं’’ या अन्य बीज मंत्र लगाया जाता है तथा प्रथम पंक्ति में ‘‘जनं कुरु’’ की बजाय ‘‘ममं कुरु’’ कर दिया जाता है।
यथा
‘‘ऊँ क्लीं विद्यावन्तं यशस्वन्तं
लक्ष्मीवन्तं जनं कुरु।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि क्लीं ऊँ॥’’
आद्यजगद्गुरु शंकराचार्यकृत कनकधारा स्तोत्र का उच्चारण धन लाभ का ही प्रयोग है जिसके द्वारा भगवती लक्ष्मी की आराधना कर आद्य शंकराचार्य ने दरिद्र गृहस्थ के वहां स्वर्ण की वर्षा कराई थी।
‘‘अंगं हरेः पुलक भूषणमाश्रयन्ती..... भवन्ति ते भुवि बुधभाविताशयाः।’’
(कनकधारा स्तोत्रम्)
अन्त के पद में इसकी फलश्रुति कही गई है।
‘‘सुवर्णधारास्तोत्रं यच्छंकराचार्यनिर्मितम्। त्रिसंध्यं यः पठेन्नियत्यं स कुबेरसमो भवेत्॥’’
अर्थात् शंकराचार्य द्वारा निर्मित इस कनकधारा स्तोत्र का जो तीनो संध्याओं में पाठ करता है वह कुबेर के बराबर धन वाला हो जाता है। वांछाकल्पलता तंत्र-मंत्र शास्त्र और श्री विद्या की अनमोल पुस्तक है जिसमें श्री विद्या के मंत्रों का शास्त्रोक्त प्रयोग वर्णित है। कहा गया है कि वांछाकल्पलता की प्रतिदिन तीन बार प्रातःकाल आवृति से लक्ष्मी वश में हो जाती है ः-
‘‘दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्रयदुःखभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदाद्र्रचिता।’’
धन प्राप्ति एवं परिवार की सुख समृद्धि के लिए इसके जप या संपुट से दुर्गा पाठ कराना भी लाभकारी है ः-
‘‘सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो
धनधान्यसुतान्वितः।
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः॥’’
बेरोजगारी आज की भीषण समस्या है। रोजगार पाने के इच्छुक को भगवती अन्नपूर्णा के स्तोत्र का नित्यप्रति आवर्तन करना चाहिए, इससे निश्चय ही अच्छा रोजगार एवं भोजन प्राप्त होता है।
‘‘नित्यानंदकारी वराभयकरी.....भुवनत्रयम्।
(शंकराचार्यकृत् अन्नपूर्णास्तोत्र)
आद्य शंकराचार्यकृत् सौन्दर्यलहरी तंत्र-मंत्र शास्त्र की अद्वितीय धरोहर है। इसका तीसरा श्लोक दस हजार बार जपने से दरिद्रता का निवारण होता है ः-
‘‘अविद्यानामन्तस्तिमिरमिहिरद्वीप नगरी
जडानांचैतन्यस्तबकमकरन्दश्रुतिसिरा।
दरिद्राणां चिन्तामणिगुणनिका
जन्मजलधौ,
निमग्नानां दंष्ट्रा मुररिपुवराहस्य भवती॥’’
इसी सौन्दर्य लहरी में धन प्राप्ति के अनेक प्रयोग बतलाए गए हैं। दक्षिण भारत में तो सौन्दर्य लहरी के प्रति लोगों में इस कदर आस्था है कि इसके नित्यप्रति पाठ करने से ही कुण्डली जागरण संभव हो जाता है। देवराज इन्द्रकृत महालक्ष्म्यष्टकम् के पाठ से सकल कामनासिद्धि राज्यमान, शत्रु विनाश, समृद्धि आदि प्राप्त होते हैं।
‘‘नमस्ते स्तुते.... वरदा शुभा।’’ (महालक्ष्मयष्टकं)
लक्ष्मी प्राप्ति के लिए अन्य देवी-देवताओं की पूजा अर्चना एवं अनुष्ठान भी किए जाते है व इससे दरिद्रता दूर होती है। भगवान भास्कर की उपासना से दरिद्रता नाश के बारे में कहा गया है ः-
‘‘आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने जन्मान्तर सहस्त्रेषु दारिद्रयंनोपजायते।’’
लक्ष्मी साधना के ऎसे ही अनेको मंत्र हैं जिनका गुरु से विधिवत् दीक्षा लेकर अनुष्ठान करने पर वे साधक की हर मनोकामना पूरी करते हैं। लक्ष्मी प्राप्ति के इच्छुक साधकगण दीपावली की रात्रि, धनतेरस आदि अवसरों पर इनका अनुष्ठान करते हैं। इस दिन की गई लक्ष्मी साधना शीघ्र फलदायी होती है।
(डॉ. दीपक आचार्य)
महालक्ष्मी चौक, बाँसवाड़ा - 327001
(राजस्थान)
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