गंगा की सफ़ाई के मामले में आज सरकार और उसके संस्थान सुप्रीम कोर्ट के निशाने पर रहे। सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण से आज कहा कि वह गंगा नदी को प्रदूषित करने वाली औद्योगिक इकाइयों के खिलाफ कार्रवाई करने के साथ ही उनकी बिजली पानी की आपूर्ति बंद करे। कोर्ट ने गंगा को प्रदूषित करने वाली औद्योगिक इकाइयों को दंडित करने में 'विफल' रहने के लिए केंद्रीय और राज्यस्तीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भी आड़े हाथ लिया।
न्यायमूर्ति तीरथ सिंह ठाकुर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने देश की 'जीवन रेखा' मानी जाने वाली गंगा नदी में प्रदूषण के मौजूदा स्तर पर गहरी चिंता व्यक्त की। न्यायालय ने ऐसी इकाइयों को बंद करने के लिए बाध्य करने सहित सभी तरह की कार्रवाई करने की छूट राष्ट्रीय हरित अधिकरण को दे दी। न्यायालय ने कहा कि अधिकरण को यह जिम्मेदारी देना जरूरी है क्योंकि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ऐसी औद्योगिक इकाइयों के खिलाफ कार्रवाई करने की जिम्मेदारी निभाने में विफल रहे हैं।
न्यायालय ने प्रदूषण फैला रही औद्योगिक इकाइयों के आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव की वजह से उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं करने के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को आड़े हाथ लिया। न्यायाधीशों ने कहा, 'यह संस्थागत विफलता है और आपकी कहानी तो पूरी विफलता, निराशा और बर्बादी की कहानी है। आपको प्रदूषण करने वाली इकाईयों के खिलाफ खड़ा होने की जरूरत है। अगर यह काम आप पर छोड़ दिया गया तो इसे पूरा करने में और 50 साल लगेंगे।' शीर्ष अदालत ने कहा कि वह नदी में प्रवाहित होने वाले घरेलू कचरे से संबंधित मुद्दे की निगरानी करेगा जिसे संबंधित राज्यों की नगर पालिकाएं देख रही हैं।
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