विशेष आलेख : करवा चौथ पर विशेष - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 8 अक्तूबर 2014

विशेष आलेख : करवा चौथ पर विशेष

  • चार महामंत्रों की जाप से व्रती महिलाओं की पूरी होगी हर इच्छा 
  • पति न सिर्फ तरक्की के राह पर होंगे बल्कि विभिन्न प्रकार के रोगों से मुक्त व लंबी आयु भी पा सकेंगे और रोजी-रोजगार, नौकरी, सुरक्षा सहित धन-यश आदि से भी होंगे मालामाल 
  • कार्तिक कृष्ण पक्ष की चंद्रोदयव्यापिनी चतुर्थी को पड़ने वाला करवा चौथ इस बार चित्रा नक्षत्र में है 
  • करवा चैथ 11 अक्टूबर दिन शनिवार को है। पूजा मुहूर्त 17 बजकर 52 मिनट से 19 बजकर 07 मिनट तक है। यह नक्षत्र 11 को सुबह 10 बजकर 18 मिनट से शुरु होकर 12 अक्टूबर को सुबह 9 बजकर 33 मिनट तक रहेगा

karwa chauth
ऊँ नमो आनंदिनी श्री वर्धिनी गौर्ये नमः, ऊँ श्री सर्वसौभाग्यदायिनी सर्वम् पूरण श्री ऊँ नमः, त्रिचक्रे त्रिरेखं सुरेखे उज्जवले नमः व ऊँ नमो अष्टभाग्यप्रदे धात्रिदैव्ये नमः। ये चार ऐसे है महामंत्र है, जो इस बार करवा चैथ पर जाप करने से व्रती महिलाओं के पति न सिर्फ तरक्की के राह पर होंगे बल्कि विभिन्न प्रकार के रोगों से मुक्त व लंबी आयु भी पा सकेंगे और रोजी-रोजगार, नौकरी, सुरक्षा सहित धन-यश आदि से भी होंगे मालामाल। जी हां, आचार्य रामदुलार उपाध्याय का दावा है कि इस बार इन चारों मंत्रों का उच्चारण करने से व्रती महिलाओं की पति के खुशहाली की हर मनोकामनाएं पूरी होंगी। क्योंकि इस बार कार्तिक कृष्ण पक्ष की चंद्रोदयव्यापिनी चतुर्थी को पड़ने वाला करवा चैथ चित्रा नक्षत्र में है। इस नक्षत्र में विधि-विधान से की जाने वाली व्रत हर इच्छा पूरी करेगा। करवा चैथ 11 अक्टूबर दिन शनिवार को है। पूजा मुहूर्त 17 बजकर 52 मिनट से 19 बजकर 07 मिनट तक है। यह नक्षत्र 11 को सुबह 10 बजकर 18 मिनट से शुरु होकर 12 अक्टूबर को सुबह 9 बजकर 33 मिनट तक रहेगा। असल में करवा चैथ मन के मिलन का पर्व है। सुहाग की सलामती का पर्व, चांद से सुख समृद्धि मांगने का दिन भी होता है करवाचैथ। पूरे श्रृंगार में सुहागिनें मां पार्वती और शिव के साथ चांद की पूजा कर मांगती हैं खुशियों का वरदान। इस पर्व में साज-श्रृंगार का मतलब है विवाहित जीवन की इच्छाएं और भावनाएं सदैव युवा रहें। समय बीतने के साथ उबाऊ न बनें। 

करवा चैथ व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्थी को किया जाता है। विवाहित स्त्रियों के लिए यह व्रत अखंड सौभाग्य का कारक होता है। व्रती महिलाएं दिनभर निर्जल उपवास रखती हैं और चंद्रोदय में अपने प्राण बल्लभ की दीर्घायु एवं स्वास्थ्य की कामना करके भगवान गणेश की पूजा-अर्चना के बाद अ‌र्घ्य देकर व्रत तोड़ती हैं। व्रत तोड़ने से पूर्व चलनी में दीपक रखकर, उसकी ओट से पति की छवि को निहारने की परंपरा भी करवा चैथ पर्व की है। भारतीय संस्कृति में पति को परमेश्वर माना गया है। यह व्रत पति पत्नी दोनों के लिए नव प्रणय निवेदन और एक दूसरे के प्रति हर्ष, प्रसन्नता, अपार प्रेम, त्याग एवं उत्सर्ग की चेतना लेकर आता है। इस दिन स्त्रियां नव वधू की भांति पूर्ण शृंगार कर सुहागिन के स्वरूप में रमण करती हुई भगवान रजनीश से अपने अखंड सुहाग की प्रार्थना करती हैं। स्त्रियां शृंगार करके ईश्वर के समक्ष व्रत के बाद यह प्रण भी करती हैं कि वे मन, वचन एवं कर्म से पति के प्रति पूर्ण समर्पण की भावना रखेंगी तथा धर्म के मार्ग का अनुसरण करती हुई धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों को प्राप्त करेंगी। भावनाओं से जुड़ाव इस त्योहार का सबसे बड़ा सामाजिक पक्ष है। इस दिन बहुएं अपनी सास को चीनी के करवे, साड़ी और श्रृंगार सामग्री प्रदान करती हैं। पति की ओर से पत्‍‌नी को तोहफा देने का चलन भी इस त्योहार में है। इस व्रत में रात्रि बेला में शिव, पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश और चंद्रमा के चित्रों एवं सुहाग की वस्तुओं की पूजा का विधान है। इस दिन निर्जल व्रत रखकर चंद्र दर्शन और चंद्रमा को अघ्र्य अर्पण कर भोजन ग्रहण करना चाहिए। कुंआरी कन्याएं इस दिन गौरा देवी का पूजन करती हैं। शिव पार्वती के पूजन का विधान इसलिए भी है कि जिस प्रकार शैलपुत्री पार्वती ने घोर तपस्या करके भगवान शंकर को प्राप्त कर अखंड सौभाग्य प्राप्त किया वैसा ही सौभाग्य उन्हें भी प्राप्त हो।

karwa chauth
पौराणिक कथाओं के अनुसार पांडवों के बनवास के समय जब अर्जुन तप करने इंद्रनील पर्वत की ओर चले गए। तब किसी कारणवश उन्हें वहीं रूकना पड़ा। उन्हीं दिनों पांडवों पर गहरा संकट आ पड़ा। इससे चिंतित व शोकाकुल द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान किया तथा कृष्ण के दर्शन होने पर पांडवों के कष्टों के निवारण हेतु उपाय पूछा। श्रीकृष्ण बोले- हे द्रौपदी! मैं तुम्हारी चिंता एवं संकट का कारण जानता हूं। उसके लिए तुम्हें एक उपाय करना होगा। जल्दी ही कार्तिक माह की कृष्ण चतुर्थी आने वाली है, उस दिन तुम पूरे मन से करवा चैथ का व्रत रखना। भगवान शिव, गणेश एवं पार्वती की उपासना करना, तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे तथा सबकुछ ठीक हो जाएगा। श्रीकृष्ण की आज्ञा का पालन कर द्रोपदी ने वैसा ही करवा चैथ का व्रत किया। तब उसे शीघ्र ही अपने पति के दर्शन हुए और उसकी सारी चिंताएं दूर हो गईं। कहा यह भी जाता है कि इंद्रप्रस्थ में वेद शर्मा नामक एक विद्वान ब्राह्मण के सात पुत्र तथा एक पुत्री थी जिसका नाम वीरावती था। उसका विवाह सुदर्शन नामक एक ब्राह्मण के साथ हुआ। ब्राह्मण के सभी पुत्र विवाहित थे। एक बार करवा चैथ के व्रत के समय वीरावती की भाभियों ने तो पूर्ण विधि से व्रत किया, लेकिन वीरावती सारा दिन निर्जल रहकर भूख न सह सकी तथा निढाल होकर बैठ गई। भाइयों की चिंता पर भाभियों ने बताया कि वीरावती भूख से पीडि़त है। करवा चैथ का व्रत चंद्रमा देखकर ही खोलेगी। यह सुनकर भाइयों ने बाहर खेतों में जाकर आग जलाई तथा ऊपर कपड़ा तानकर चंद्रमा जैसा दृश्य बना दिया और जाकर बहन से कहा कि चांद निकल आया है, अघ्र्य दे दो। यह सुनकर वीरावती ने अघ्र्य देकर खाना खा लिया। नकली चंद्रमा को अघ्र्य देने से उसका व्रत खंडित हो गया तथा उसका पति अचानक बीमार पड़ गया। वह ठीक न हो सका। इसके बाद एक बार इंद्र की पत्नी इंद्राणी करवा चैथ का व्रत करने पृथ्वी पर आईं। इसका पता लगने पर वीरावती ने जाकर इंद्राणी से प्रार्थना किया कि उसके पति के ठीक होने का उपाय बताएं। इंद्राणी ने कहा कि तेरे पति की यह दशा तेरी ओर से रखे गए करवा चैथ व्रत के खंडित हो जाने के कारण हुई है। यदि तू करवा चैथ का व्रत पूर्ण विधि-विधान से बिना खंडित किए करेगी तो तेरा पति ठीक हो जाएगा। वीरावती ने करवा चैथ का व्रत पूर्ण विधि से संपन्न किया जिसके फलस्वरूप उसका पति बिलकुल ठीक हो गया। करवा चैथ का व्रत उसी समय से प्रचलित है। अतः सौभाग्य, पुत्र-पौत्रादि और धन-धान्य के इच्छुक स्त्रियों को यह व्रत विधिपूर्वक करना चाहिए। 

एक अन्य कथा के अनुसार जब मां पार्वती द्वारा भगवान शिव से पति की दीर्घायु एवं सुख-संपत्ति की कामना की विधि पूछी तब शिव ने करवा चैथ व्रत’ रखने की कथा सुनाई थी। करवा चैथ का व्रत करने के लिए श्रीकृष्ण ने दौपदी को निम्न कथा का उल्लेख किया था। पुराणों के अनुसार करवा नाम की एक पतिव्रता धोबिन अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के किनारे स्थित गांव में रहती थी। उसका पति बूढ़ा और निर्बल था। एक दिन जब वह नदी के किनारे कपड़े धो रहा था तभी अचानक एक मगरमच्छ वहां आया, और धोबी के पैर अपने दांतों में दबाकर यमलोक की ओर ले जाने लगा। वृद्ध पति यह देख घबराया और जब उससे कुछ कहते नहीं बना तो वह करवा..! करवा..! कहकर अपनी पत्नी को पुकारने लगा। छक्पति की पुकार सुनकर धोबिन करवा वहां पहुंची, तो मगरमच्छ उसके पति को यमलोक पहुंचाने ही वाला था। तब करवा ने मगर को कच्चे धागे से बांध दिया और मगरमच्छ को लेकर यमराज के द्वार पहुंची। उसने यमराज से अपने पति की रक्षा करने की गुहार लगाई और साथ ही यह भी कहा की मगरमच्छ को उसके इस कार्य के लिए कठिन से कठिन दंड देने का आग्रह किया और बोली- हे भगवान! मगरमच्छ ने मेरे पति के पैर पकड़ लिए है। आप मगरमच्छ को इस अपराध के दंड-स्वरूप नरक भेज दें। करवा की पुकार सुन यमराज ने कहा- अभी मगर की आयु शेष है, मैं उसे अभी यमलोक नहीं भेज सकता। इस पर करवा ने कहा- अगर आपने मेरे पति को बचाने में मेरी सहायता नहीं कि तो मैं आपको श्राप दूंगी और नष्ट कर दूँगी। करवा का साहस देख यमराज भी डर गए और मगर को यमपुरी भेज दिया। साथ ही करवा के पति को दीर्घायु होने का वरदान दिया। तब से कार्तिक कृष्ण की चतुर्थी को करवा चैथ व्रत का प्रचलन में आया। जिसे इस आधुनिक युग में भी महिलाएं अपने पूरी भक्ति भाव के साथ करती है और भगवान से अपनी पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं।

पूजा का विधि-विधान 
इस व्रतमें शिव-पार्वती और स्वामीकार्तिकेय और चन्द्रमाका पूजन का विधान है। ‘मम सुखसौभाग्यपुत्रपोत्रादिसुस्थिरश्रीप्राप्तये करकचतुर्थीव्रतमहं करिष्ये।’ पूजन से पहले पीली मिट्टी की गौरी भी बनायी जाती है। फिर एक पट्‍टे पर जलसे भरा लोटा एवं एक करवे में गेहूं भरकर रखते हैं। कुछ स्त्रियां परस्पर चीनी या मिट्टी का करवा आदान प्रदान करती हैं। लोकाचार में कई स्त्रियां काली चिकनी मिट्टी के कच्चे करवे में चीनी की चासनी बनाकर डाल देती हैं अथवा आटे को घी में सेंककर चीनी मिलाकर लड्डू आदि बनाती हैं। पूरी-पुआ और विभिन्न प्रकार के पकवान भी इस दिन बनाए जाते हैं। नव विवाहिताएं विवाह के पहले वर्ष से ही यह व्रत प्रारंभ करती हैं। चैथ का व्रत चैथ से ही प्रारंभ कराया जाता है। इसके बाद ही अन्य महीनों के व्रत करने की परम्परा है। नैवेद्य (भोग) में से कुछ पकवान ब्राह्मणों को दक्षिणा सहित दान करें तथा अपनी सासू मां को 13 लड्डू, एक लोटा, एक वस्त्र, कुछ पैसे रखकर एक करवा चरण छूकर दे दें। करवा तथा पानी का लोटा रोली पाटे पर रखती हैं और कहानी सुनकर करवा अपनी सास के पैरों में अर्पित करती हैं। सास न हो तो मंदिर में चढ़ाती हैं। 13 जगह सीरा पूड़ी रखकर हाथ फेरें। सभी पर रुपया भी रखें। रुपया अपनी सास को दे दें। 13 सुहागिन स्त्रियों को भोजन कराने के बीच दे दें। कुंआरी कन्याएं इस दिन गौरा देवी का पूजन करती हैं। शिव पार्वती के पूजन का विधान इसलिए भी है कि जिस प्रकार शैलपुत्री पार्वती ने घोर तपस्या करके भगवान शंकर को प्राप्त कर अखंड सौभाग्य प्राप्त किया वैसा ही सौभाग्य उन्हें भी प्राप्त हो। दीवार पर या कागज पर चन्द्रमा उसके नीचे शिव-पार्वती तथा कार्तिकेयकी चित्रावली बनाकर पूजा की जाती है। कथा सुनते हैं। इस दिन निर्जल व्रत किया जाता है। चन्द्रमा को देखकर अर्घ्य देते हैं फिर भोजन करते हैं। नव विवाहिताएं विवाह के पहले वर्ष से ही यह व्रत प्रारंभ करती हैं। यह व्रत सुबह सूर्योदय से पहले शुरू होकर रात में चंद्रमा दर्शन के बाद संपूर्ण होता है। इस दिन निर्जल व्रत रखकर चंद्र दर्शन और चंद्रमा को अघ्र्य अर्पण कर भोजन ग्रहण करना चाहिए।

महिलाओं का कर्तव्य 
भारतवर्ष के धराधाम में हजारों ऐसी महिलाएँ हुई हैं जिनकी पतिव्रता पालन की मिसाल दी जाती है, लेकिन उनमें से भी कुछ ऐसी हैं जिनका नाम इतिहास के पन्नो में लिखा जा चूका हैं। जैसे ..अहिल्या द्रौपदी सीता तारा मंदोदरी तथा । पंचकन्या ना स्मरेन्नित्यं महापातकनाशनम् ।। जो संस्कृत में ना बोल सके सो हिंदी में इन पवित्र आत्माओं का नाम लेकर स्वयं इनके नाम के प्रताब का अनुभव कर सकती है। महिलाओं को चाहिए कि वह सर्वप्रथम अपने पति को खुश रखे, साथ ही पति का भी कर्तव्य बनता है की वो भी अपनी भार्या का ध्यान रखे। प्रातः काल उठते ही जो पत्नी अपने पति के पैर छू कर आशीर्वाद लेती है वह सदा सुहागन रहती है। जो महिलाये पति धर्म का जीवन में पालन करती है, तो वह निर्वाह किया हुआ धर्म सभी संकटों में उसकी रक्षा करेगा। धर्मो रक्षति रक्षितः। जो धर्म की रक्षा करता है धर्म उसकी रक्षा करता है। अतः स्वप्न में भी पराये पुरुष के संपर्क में ना आये। नारी के लिए पति को ही ब्रह्मा, विष्णु और शिव से अधिक माना गया है। उसके लिए अपना पति ही शिवरूप है। जो स्त्री पति के कुछ कहने पर क्रोधपूर्वक कठोर उत्तर देती है, वह इस जीवन में सुख नहीं भोग पाती है। जो पति को तू कहकर बोलती है, वह अगले जन्म में गूंगी होती है। जो स्त्री पति की आंख बचाकर दूसरे पुरुष पर दृष्टि डालती है वह कानी, टेढ़े मुंहवाली तथा कुरूपा होती है। जो दुराचारिणी स्त्रियां अपना शील भंग कर देती हैं, वे अपने माता-पिता और पति तीनों कुलों को नीचे गिराती हैं और परलोक में दुख भोगती हैं। सनातन धर्म में स्त्री को शक्ति और लक्ष्मी स्वरूपा माना गया है, हिन्दू धर्म में स्त्री के बारे में कहा गया है कि -यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता द्ययत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला क्रिया। अर्थात, जहां पर स्त्रियों की पूजा होती है, वहां देवता रमते हैं, जहाँ उनकी पूजा नहीं होती, वहाँ सब काम निष्फल होते हैं। 




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(सुरेश गांधी)

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