भारतीय सेना को मुगालते में नहीं रहना चाहिए और हर वक्त पाकिस्तानी फौजियों के चहलकदमी पर निगहबानी बनाएं रखनी होगी। क्योंकि उसका मकसद गोलीबारी के बीच 2000 से अधिक आतंकियों को घुसपैठ कराकर जम्मू-कश्मीर के चुनाव को प्रभावित कराना है। आंकड़े बताते हैं कि बीते साल जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर पाकिस्तान ने 347 बार संघर्ष विराम तोड़ा। वहीं, इस साल पाकिस्तानी सेना 115 से अधिक बार अमन के इस करार की धज्जियां उड़ा चुकी है। बीते एक दशक के दौरान शांतिकाल और संघर्ष विराम के बीच भारत को अपने 25 से अधिक सैनिकों को केवल नियंत्रण रेखा पर ही खोना पड़ा है। मतलब पाकिस्तान अपने जन्म से ही शत्रुततापूर्ण कूटनीतिक व्यवहार आज तक जारी सिर्फ इसलिए रखा है कि वह कश्मीर को अंतर्राष्टीय मुद्दा बनाना चाहता है। शायद यही वजह है कि वहां चाहे फौज की हाथ में सत्ता रही हो या राजनीतिक लोगों के किसी ने भी समझौतों की कद्र नहीं की और शांति के प्रयासों की बात करते-करते कभी संर्घषविराम का उल्लंघन कर गोलाबारी तो कभी भारत की धरती पर आतंक प्रायोजित करने लगता है। फायरिंग पर दोषारोपण भारत पर किया जाता है लेकिन हमारा पाकिस्तान पर फायरिंग का कोई मकसद ही नहीं है। असल मामला तो यह है कि कश्मीर के अलावा उसके पास कोई मसला नहीं है जिसके बूते वह आवाम के बीच बना रहे। जब भी उसका पत्ता खिसकता नजर आने लगता है कश्मीर की दुहाई देने लगता है
अंतरराष्ट्रीय सीमा और नियंत्रण रेखा से लगे क्षेत्रों में पाकिस्तान की ओर से संघषर्विराम उल्लंघन कर ताबड़तोड़ दागे जा रहे गोले का जवाब अब भारतीय जवानों को उसी के भाषा में जवाब देना होगा। जैसा कि जवाबी हमले में 15 पाक फौजियों को मार गिराया जाना वाकही सराहनीय कदम है, तो दो महिलाओं सहित 7 भारतीयों का मारा जाना बेहद दुखद। ऐसे में भारतीय सेना को मुगालते में नहीं रहना चाहिए और हर वक्त पाकिस्तानी फौजियों के चहलकदमी पर निगहबानी बनाएं रखनी होगी। क्योंकि उसका मकसद गोलीबारी के बीच 2000 से अधिक आतंकियों का घुसपैठ है। इन सबके बीच भारत सरकार को चाहिए कि वह मधुर रिश्ते का राग अलापना छोड़ जवानों का हौसलाफजाई कर भारतीयों की सुरक्षा के दिशा-निर्देश लगातार देते रहे। क्योंकि पाकिस्तान की शैतानी मानसिकता अब चरम पर जा पहुंची है। इससे बड़ा हास्यास्पद और क्या हो सकता है कि संघषर्विराम उल्लंघन पर भारत के समक्ष शिकायत दर्ज कराने के बाद वह नियंत्रण रेखा पर स्थिति को लेकर संयुक्त राष्ट्र सैन्य पर्यवेक्षक समूह से संपर्क साधा। हालांकि भारत ने संयुक्त राष्ट्र सैन्य पर्यवेक्षक समूह को मान्यता ही नहीं दी। पाकिस्तानी रिहायशी इलाकों को निशाना बनाकर भारत को जवाबी कार्रवाई के लिए उकसा रहा है, ताकि पाकिस्तान इसे अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बना सके। वैसे भी खुफियां तंत्र की मानें तो सीमा पर बड़ी तादाद में आतंकियों की घुसपैठ कराने की साजिश है, ताकि जम्मू-कश्मीर में होने वाले विधानसभा चुनावों में खलल डाला जा सके। भारत की ओर से विदेश सचिव स्तर की बातचीत रद्द होने के बाद से पाकिस्तान की नींद उड़ा दी है। हो सकता है कि गोलीबारी के जरिए वह दबाव बनाने की कोशिश कर रहा हो।
जम्मू-कश्मीर में भारत और पाकिस्तान के बीच 200 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा पर तनाव बढ़ गया है। रक्षा मंत्रलय के आंकड़े बताते हैं कि बीते साल जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर पाकिस्तान ने 347 बार संघर्ष विराम तोड़ा। वहीं, इस साल पाकिस्तानी सेना 115 से अधिक बार अमन के इस करार की धज्जियां उड़ा चुकी है। बीते एक दशक के दौरान शांतिकाल और संघर्ष विराम के बीच भारत को अपने 25 से अधिक सैनिकों को केवल नियंत्रण रेखा पर ही खोना पड़ा है। इसके अलावा बीते साल तो पाकिस्तान की ओर से सीमा पर एक भारतीय जवान का सिर काटने जैसी घिनौनी हरकत भी की गई थी। उल्लेखनीय है कि इस साल 27 मई को भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों की मुलाकात के दौरान भी सीमा पर अमन का मुद्दा प्रमुखता से उठा था। भारत और पाकिस्तान की ओर से इस मामले पर नियंत्रण का रास्ता निकालने के लिए डीजीएमओ स्तर संवाद भी हुआ था। लेकिन, कूटनीतिक और सैन्य स्तर पर पाकिस्तान की ओर से जताए गए वादे और इरादे जमीन पर धराशाई हो जाते हैं। ऐसे में केरन, सांबा, पुंछ, रजौरी समेत नियंत्रण रेखा और अंतराष्ट्रीय सीमा पर गोलीबारी का सिलसिला बदस्तूर जारी है। सरहद पार से हो रही फायरिंग का जवाब बीएसएफ की 50 से 60 चैकियों से लगातार दिया जा रहा है। हालात के मद्देनजर पीएम नरेंद्र मोदी ने पहली चुप्पी तोड़ते हुए स्थिति से निपटने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को जिम्मेदारी सौंपी है। साथ ही सीमा पर सुरक्षाबलों को खुली छूट देते हुए कहा कि स्थितियों को देखते हुए सीजफायर उल्लंघन को मुंहतोड़ जवाब दिया जाए। क्योंकि पाकिस्तानी रेंजर्स मशीनगन और मोर्टार शेल से हमले कर रहे हैं, जिसका परिणाम है कि जम्मू में सीमा क्षेत्र के ग्रामीण मारे जा रहे हैं, गांव के गांव खाली होते जा रहे हैं और लोगों को घर छोड़कर पलायन करने पर मजबूर होना पड़ रहा है।
सूत्रों के मुताबिक, खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट बताती है कि घुसपैठ के लिए सीमा पार करीब दो हजार आतंकियों की खेप को तैयार किया गया है। बंगाल के बर्धमान जिले में हुए धमाके में जांच एजेंसियों को और सुबूत मिलने से आतंकी गतिविधियों की बात पुख्ता हुई है। एनआइए ने अपनी रिपोर्ट में धमाके में शामिल लोगों के तार प्रतिबंधित संगठन सिमी से जुड़े होने का दावा किया है। विस्फोट में मारे गए शकील की पत्नी ने खुलासा किया कि वह बांग्लादेश में सक्रिय कट्टरपंथी संगठन का नेता था। ऐसी भी जानकारी मिली है कि धमाके में शामिल लोगों का अलकायदा के ही एक अन्य संगठन अल जेहादी से जुड़ाव हो सकता है। हद तो यह कि बीएसएफ की 40 चैकियों को निशाना बनाया जा चुका है। इस महीने के पहले हफ्ते में ही अबतक संघर्षविराम उल्लंघन की दस घटनाओं को पाकिस्तान अंजाम दे चुका है। केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह लाख चीखते रहे कि पाकिस्तान को अब संघर्षविराम उल्लंघन बंद कर देना चाहिए, लेकिन पाक की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ रहा है। वैसे भी पाकिस्तान में सेना की मनमानियों पर सरकार का कोई काबू नहीं दिखता। प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की निर्वाचित सरकार वैसे भी कई प्रकार के दबाव के अलावा सेना के दबाव में भी दिखाई देती है। दूसरे मुल्क की अंदरुनी गड़बडि़यों से अवाम का ध्यान हटाने के लिए सबसे आसान तरीका पाक ने गोया संघर्षविराम के उल्लंघन को बना लिया है। तो क्या पाकिस्तान इस सच्चाई को नहीं समझ पा रहा है कि भारत में अब समय बदल गया है? इतना तो तय है कि पाकिस्तान जिस तरह भारत की सहनशक्ति की परीक्षा ले रहा है और जैसा माहौल वह दोनों देशों के बीच पैदा कर रहा है, उससे संबंधों को सामान्य बनने में कोई मदद नहीं मिलने जा रही है।
बार-बार के संघर्ष विराम उल्लंघन से पाकिस्तान हरगिज भारत पर दबाव नहीं डाल पाएगा, यह उसे हर हाल में समझ लेना चाहिए। दरअसल, कई प्रकार की खुन्नस में पाक संघर्षविराम का उल्लंघन करता है। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर वह कश्मीर मुद्दा उठाने का प्रयास करता है, लेकिन हर बार कूटनीतिक तौर पर उसे मुंह की खानी पड़ती है। सीमापार से गोलाबारी वास्तव में उसकी हताशा की ही अभिव्यक्ति है। आम लोगों को निशाना बनाना कर पाक अपनी कुंठा को सार्वजनिक कर रहा है। दरअसल, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद प्रस्ताव के तहत और जुलाई 1949 में हुए कराची समझौते के तहत संयुक्त राष्ट्र सैन्य पर्यवेक्षक समूह की स्थापना संघषर्विराम रेखा की निगरानी के लिए की गई थी। क्या मजाक है कि उल्टा चोर कोतवाल को डांटे की तर्ज पर भारत से संयम बरतने को पाक कह रहा है। विदेश सचिव स्तर की बातचीत अचानक रद्द करने का आरोप भी पाक लगा रहा है। जबकि उसकी कथनी और करनी पूरी दुनिया समझ चुकी है। पाक द्वारा संघषर्विराम उल्लंघन काबीएसएफ के जवान मुंहतोड़ जवाब जरूर दे रहे हैं, लेकिन साथ ही सरकार की ओर से सख्त कदम भी उठाए जाने चाहिए, जिससे पाक आए दिन ऐसी हरकत न दोहरा सके। शांत सीमा जिस तरह यकायक अशांत हो उठी है उसका एक बड़ा कारण संयुक्त राष्ट्र महासभा में कश्मीर पर पाकिस्तान को किसी तरह का समर्थन न मिलना ही नजर आता है। उसे आतंकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई के मामले में भारत और अमेरिका के बीच बनी समझ-बूझ से भी झटका लगा होगा। जब अमेरिका और साथ ही शेष विश्व समुदाय के रुख से पाकिस्तान को सबक सीखना चाहिए था तब वह जिहादी रवैया दिखा रहा है।
सीमा पर खून बहाकर पाकिस्तान एक तरह से यह कहना चाह रहा है कि अगर उससे बात नहीं की जाएगी तो वह सीमा पर इसी तरह की हरकतें करेगा। मुश्किल यह है कि जब उसके साथ बातचीत होनी होती है तब भी सीमा पर उत्पात होता है। या तो संघर्ष विराम का उल्लंघन किया जाता है या फिर आतंकियों की घुसपैठ कराने की कोशिश की जाती है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ अभी तक ऐसा कुछ नहीं कर सके हैं जिससे दुनिया को यह भरोसा हो कि वह अपनी सेना पर भी नियंत्रण रखते हैं। इन स्थितियों में भारत के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह संघर्ष विराम उल्लंघन की घटनाओं पर पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब कुछ इस तरह से दे कि वह इस तरह की हरकतों से बाज आए। इसके लिए जो भी उपाय हों वे किए जाने चाहिए। यह सही है कि नियंत्रण रेखा और अंतरराष्ट्रीय सीमा रेखा में कई हिस्से ऐसे हैं जो दुर्गम हैं, लेकिन उन्हें अभेद्य बनाना ही होगा। इससे ही पाकिस्तान को व्यर्थ की उछलकूद करने से रोका जा सकता है। इसके अतिरिक्त यह भी आवश्यक है कि पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बनाना जारी रखा जाए। उसे यह समझ में आना ही चाहिए कि वह जिस रीति-नीति पर चल रहा है उससे अंततः उसे ही नुकसान उठाना पड़ेगा। मतलब पाकिस्तान अपने जन्म से ही शत्रुततापूर्ण कूटनीतिक व्यवहार आज तक जारी सिर्फ इसलिए रखा है कि वह कश्मीर को अंतर्राष्टीय मुद्दा बनाना चाहता है। शायद यही वजह है कि वहां चाहे फौज की हाथ में सत्ता रही हो या राजनीतिक लोगों के किसी ने भी समझौतों की कद्र नहीं की और शांति के प्रयासों की बात करते-करते कभी संर्घषविराम का उल्लंघन कर गोलाबारी तो कभी भारत की धरती पर आतंक प्रायोजित करने लगता है। फायरिंग पर दोषारोपण भारत पर किया जाता है लेकिन हमारा पाकिस्तान पर फायरिंग का कोई मकसद ही नहीं है। असल मामला तो यह है कि कश्मीर के अलावा उसके पास कोई मसला नहीं है जिसके बूते वह आवाम के बीच बना रहे। जब भी उसका पत्ता खिसकता नजर आने लगता है कश्मीर की दुहाई देने लगता है
(सुरेश गांधी)
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