विशेष आलेख : क्या अब दिल्ली-यूपी-बिहार की बारी है - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 21 अक्तूबर 2014

विशेष आलेख : क्या अब दिल्ली-यूपी-बिहार की बारी है

उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, उ़डि़सा, तमिलनाडू, पश्चिम बंगाल व जम्मू-कश्मीर के साथ दिल्ली में होने वाले विधानसभ चुनाव मोदी के टारगेट पर है। मतलब साफ है जिस सुनामी के भरोसे भाजपा मोदी के विजय का अश्वमेघ नौ प्रदेशों में दौड़ा चुकी है, उसके बूते अब वह पूरे देश के राज्यों को अपनी झोली में समेटना चाहती है। शायद यही वजह है मोदी का विजय रथ रोकने के लिए नीतिश, लालू पहले से कांग्रेस एक साथ आ चुके है। अब मुलायम-मायावती को मिलाने का प्रयास हो रहा। इन सबके बीच चैकानें वाली बात यह है कि लोकसभा चुनाव में करीब-करीब पूरे देश में मोदी की आंधी चली थी। लेकिन तीन राज्यों के मुखिया उड़ीसा के नवीन पटनायक, पश्मि बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी व तमिलनाडू की मुख्यमंत्री जयललिता जयराम जिन्होंने मोदी की आंधी को थाम लिया था। इन छत्रपों से पार पाना मोदी-शाह के लिए टेढ़ी खीर होगी 

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हरियाणा व महाराष्ट्र चुनावी नतीजों से खिलखिलाई भाजपा की नजर अब देश के सभी राज्यों पर है। देश की सबसे बड़ा सूबा उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, उ़डि़सा, तमिलनाडू, पश्चिम बंगाल व जम्मू-कश्मीर के साथ दिल्ली में होने वाले विधानसभ चुनाव मोदी के टारगेट पर है। भला क्यों नहीं, भाजपा के पास करिश्माई नेता के साथ-साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जो है। इसे करिश्माई नेता नही ंतो और क्या कहेंगे, जिसके वाणी में जादू या एक इंसान का ऐसी मोहनी है कि वह कहते है वोट फाॅर इंडिया, लोग उनकी पार्टी को वोट दे आते है। वो कहते है सबका साथ-सबका विकास, लोग उनके साथ हो लेते है। नरेन्द्र मोदी मंत्र मारते है, जनता मुग्ध हो जाती है। उनके और जनता के बीच कोई आ नहीं आ पाता। मतलब साफ है जिस सुनामी के भरोसे भाजपा मोदी के विजय का अश्वमेघ नौ प्रदेशों में दौड़ा चुकी है, उसके बूते अब वह पूरे देश के राज्यों को अपनी झोली में समेटना चाहती है। शायद यही वजह भी है कि यूपी में माया का हाथी थराथरा रहा है, सायकिल के नट-बोल्ट ढीले है, पंजे का तो पोर-पोर टूट चुका है। ये मोदी की माया है कि बिहार में नीतिश व लालू सारे दुश्मनी भूलभालकर समाजवादी हो गए है। हालांकि इन सियासी दलों के क्षत्रपों का तिलिस्म तोड़ना मोदी के लिए इतना आसान भी नहीं होगा। इसके लिए मोदी को लीग से हटकर कुछ नया करना ही होगा। 

फिरहाल हाल के चुनावों से मिली सफलता के बाद कहा जा सकता है कि नरेन्द्र मोदी की लहर विरोधियों पर कहर बनकर टूट रही है। मोदी के सहारे निकली बीजेपी का विजय रथ किसी के रोके नहीं रुक रहा है। नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी की तान पर देश जनता नाच रही है। बाकि सियासी दलों का वजूद खत्म हो रहा है। देश के नौ राज्यों की सत्ता पर बीजेपी कब्जा जमा चुकी है। इसमें मध्य प्रदेश, राजस्थान, गोवा, छत्तीसगढ़ और हरियाणा में बीजेपी के पास पूर्ण बहूमत है। देश की 36 फीसदी आबादी अब बीजेपी के सत्ता के दायरे में आ चुकी है, जबकि कांग्रेस के कब्जे में सिर्फ 14 फीसदी आबादी। पिछले ढाई सालों में कांग्रेस ने 11 राज्यों में अपनी सरकार गवाई है। मोदी की अगुवाई में बीजेपी के हौसले बुलंद है। एक के बाद एक कामयाबी उनके कदमों में आ रही है। अभी महाराष्ट व हरियाणा में भगवा परचम लहराया है। मोदी की निगाहें अर्जुन की तरह अब आने वाले पांच राज्यों के चुनाव पर लगी है। यूपी में दो साल बाद विधानसभा चुनाव होने वाले है। बिहार में अगले साल के आखिर में विधानसभा चुनाव। जम्मू व कश्मीर तथा दिल्ली व झारखंड में जनवरी में विधानसभा चुनाव हो सकते है। नरेन्द्र मोदी की अगली परीक्षा जनवरी में जम्मू-कश्मीर में होने वाली विधानसभा चुनाव में होगी। जम्मू कश्मीर में भगवा फहराना बीजेपी का पूराना सपना है, लेकिन राह आसान नहीं। राज्य के जम्मू रीजन में 37 विधानसभा सीटे है यहां पर बीजेपी को भरपूर समर्थन मिल सकता है। लद्दाख में चार विधानसभा सीटों पर बीजेपी कमल खिला सकती है। कश्मीर रीजन की 46 सीटों पर बीजेपी को काफी पापड़ बेलने होगे। जम्मू-कश्मीर पर प्रधानमंत्री की खास नजर है। इस राज्य में वह कई दौरे कर चुके है। लोकसभा चुनाव का अभियान भी मां वैष्णव के दरबार से शुरु किया था। कश्मीर तबाही आई तो केन्द्र सरकार का खजाना खोल दिया। 1000 करोड़ की मदद दे चुके है। 

मोदी के खास निशाने पर है उत्तर प्रदेश। यहां की सत्ता से बेदखल हुए बीजेपी को 12 साल बीत चुके है। बीजेपी ने पिछले लोकसभा चुनाव में 80 में 73 सीटे जीतकर बाकी के दलों का करीब-करीब सफाया कर दिया था, ये करिश्मा बीजेपी विधानसभा चुनाव में भी दुहराना चाहेगी पर मायावाती के हाथी को थामना, मुलायम के सायकिल को पंचर करना उनके लिए आसान नहीं होगा। बिहार में अगले साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होना है। नरेन्द्र मोदी का विजय रथ रोकने के लिए नीतिश, लालू पहले से कांग्रेस एक साथ आ चुके है। अगर मोदी को भगवा परचम लहराना है तो उन्हें विरोधियों का चक्रब्यूह तोड़ने का हुनर तराशना होगा। झारखंड में तीन महीने बाद विधानसभा चुनाव होने है। राज्य में कांग्रेस के समर्थन से झारखंड मुक्ति मोर्चा की सरकार चल रही है। झारखंड क्षेत्रफल की लिहाज से भले ही छोटा है लेकिन मोदी व उनके रणनीतिकार अमित शाह नजरों से जरा भी ओझल नहीं। मोदी अगर कह रहे है वक्त बदल रहा है तो दम है। मतलब अब भुजबल नहीं बुद्धिबल की जरुरत पड़ती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की चुनावी अश्वमेघ का घोड़ा उम्मीदों की लहरों पर सरपट भाग रहा है। जिसके टापू के नीचे बड़े-बड़े क्षत्रपों का वजूद तहस-नहस हो गया। नरेन्द्र मोदी की आवामंडल में ठाकरे बंधुओं की ठसक ठस गयी। मराठा छत्रप शरद पवार का पावर गुल हो गया। कांग्रेस का पंजा टूट गया। वहीं हरियााणा में चोटाला खानदान की चतुराई धरी की धरी रह गयी। हुड्डा की पुकार चित्तकार में बदल गयी। कहा जा सकता है कि नरेन्द्र मोदी के नाम के सुनामी में देश के तमाम राज्य लगातार भगवा रंग में रंगते जा रहे है। मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ में पहले से ही बीजेपी का राज्य था। गुजरात में सत्ता सुंदरी तो जैसे बीजेपी की दासी बनी हुई है। गोवा में भी सत्ता के सिंहासन पर भगवा परचम फहरा रहा है। चार महीने पहले बीजेपी ने राजस्थान में कांगेस की सरकार को बेदखल कर कब्जा जमाया था। पंजाब में बीजेपी व अकाली दल के गठबंधन की सरकार है तो नागालैंड में भी बीजेपी के समर्थन से सरकार बनी। आंध्र प्रदेश में बीजेपी और तेलगुदेशम की मिलीजुली सरकार है। और ताजा-ताजा हरियाणा में बीजेपी ने क्वीनस्वीप किया है और वहीं महाराष्ट में भी भगवा परचम लहराना लगभग तय माना जा रहा है। मोदी जैसे प्रचंड प्रचारक के दम पर बीजेपी कांग्रेस शासित राज्यों पर लगातार कब्जा जमाती जा रही है। 

महाराष्ट व हरियाणा में बीजेपी की प्रचंड जीत ने साबित कर दिया कि नरेन्द्र मोदी की चमक जनता की नजरों में फीकी नहीं पड़ी है। बीजेपी का हौसला सातवें आसमान पर है। नरेन्द्र मोदी सोहरत की बुलंदियों पर है। इन सबके बीच चैकानें वाली बात यह है कि लोकसभा चुनाव में करीब-करीब पूरे देश में मोदी की आंधी चली थी। लेकिन तीन राज्यों के मुखिया ऐसे थे जिन्होंने अपने राज्यों में मोदी की आंधी थाम ली। आंधी में भी इनके पाव मजबूती से डटे रहे। मोदी के अश्वमेघ घोड़े को रोकने के लिए तीनों क्षत्रप सीनाकर तानकर खड़े है। जिनके जहाज लोकसभा चुनाव में मोदी लहर को चीरते हुए आसानी से गुजर गए थे। इन क्षत्रपों के राज्य में नमो नमो नहीं चली थी। ये है उड़ीसा के सीएम नवीन पटनायक, पश्मि बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी व तमिलनाडू की मुख्यमंत्री जयललिता जयराम। लोकसभा चुनाव में बीजेपी उड़ीसा में 20 में से एक ही सीट जीत पाई। जबकि मोदी लहर के बावजूद बीजू जनता दल ने 20 सीटे जीत ली। नवीन पटनायक 2009 के मुकाबले 6 सीट फायदे में रही। पश्चिम बंगाल में मोदी लहर काम नहीं आई। 42 में से बीजेपी केवल दो ही सीट जीत पाई। जबकि तृणमूल ने 19 सीपीएम ने 15 व कांग्रेस ने 6 सीट ही जीत सकी। तमिलनाडू में तो यानी अम्मा जयललिता की ही तूती बोलती है। 39 में बीजेपी केवल एक ही सीट जीती जबकि डीआईएमके 37 व पीएमके 1 सीटे जीती। हालांकि बीजेपी वहां खाता खोलने में कामयाब रही, लेकिन ये आंकडे इस बात के सनद है कि इन छत्रपों से पार पाना मोदी-शाह के लिए टेढ़ी ख्ीर होगी। तो क्या बदलते वक्त के साथ ये तीनों क्षत्रप अपनी ताकत बनाएं रख पायेंगे। यह तो वक्त बतायेगा, लेकिन मैदान मारने के लिए बीजेपी से शतरंजी गोट बिछाना शुरु कर दी है। 

दिल्ली भी मोदी के टारगेटों में से एक है। यहां दिसम्बर हुए चुनाव में आम आदमी पाटी ने 28 सीटे लेकर कब्जा कर ली। कांग्रेस को 8 व बीजेपी को 27 सीटे ही मिली। अब केजरीवाल द्वारा दिल्ली की कुर्सी छोड़ने पर आप पार्टी की छबि कमजोर हुई है। विधानसभा को भंग कर नए सिरे से चुनाव होंगे या कोई सरकार बनेगी, इसका फैसला अभी लिया जाना है लेकिन हरियाणा व महाराष्ट्र के चुनावी नतीजों से दिल्ली में चुनाव की आहट जरूर तेज हो गई है। ऐसा माना जा रहा है कि दो महत्वपूर्ण राज्यों में मिली शानदार जीत के बाद भाजपा के लिए अब दिल्ली का किला फतह करना भी मुश्किल नहीं होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जादू के दम पर पार्टी दिल्ली में भी अपने दम पर सरकार बनाने में कामयाब हो जाएगी। सूबे के सियासत में बीते कुछ दिनों से यह चर्चा आम थी कि भाजपा दिल्ली की सियासी किस्मत को लेकर अपने पत्ते महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव के बाद खोलेगी। इसका आशय यही था कि यदि दोनों राज्यों में पार्टी को विजय मिली तो दिल्ली में भी वह जोड़तोड़ करने के बजाय चुनाव मैदान में उतरना पसंद करेगी। जाहिर तौर पर चुनावी नतीजे दिल्ली में चुनाव की गवाही दे रहे हैं। भाजपा नेताओं की मानें तो सूबे में जनवरी में चुनाव कराए जा सकते हैं। तथ्य यह भी है कि हरियाणा और महाराष्ट्र, दोनों ही जगह क्षेत्रीय व जातीय समीकरण नेस्तनाबूद हुए हैं। इन चुनाव परिणामों ने न केवल क्षेत्रीय दलों व नेताओं के दर्प को तोड़ा है, बल्कि प्रधानमंत्री मोदी के ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ के सिक्के को और चमकाया है। 





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(सुरेश गांधी )

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