सुप्रीम कोर्ट ने राजीव गांधी हत्याकांड में उम्रकैद की सजा भुगत रही नलिनी की उस याचिका को सोमवार को खारिज कर दिया जिसमें उसकी और छह अन्य दोषियों की रिहाई के लिए केंद्र की मंजूरी की अनिवार्यता संबंधी कानून को चुनौती दी गई थी। प्रधान न्यायाधीश एचएल दत्तू, न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर और न्यायमूर्ति एके सीकरी की खंडपीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा, सॉरी, हमारी दिलचस्पी नहीं है। नलिनी ने इस याचिका में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 435 (1) को चुनौती दी थी जिसके तहत यदि केंद्रीय जांच ब्यूरो की जांच से संबंधित कोई मामला है तो ऐसे दोषी को समय से पहले रिहा करने के लिए राज्य सरकार को केंद्र से परामर्श करना होगा।
नलिनी पिछले 23 साल से जेल में है। मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील किए जाने के कारण वह सजा भुगत रही है। निचली अदालत ने इस मामले में उसे 28 जनवरी 1998 में मौत की सजा सुनाई थी।
तमिलनाडु के राज्यपाल ने 24 अप्रैल, 2000 को नलिनी की मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया था। नलिनी ने अपनी याचिका में कहा था कि तमिलनाडु सरकार ने उम्रकैद की सजा भुगत रहे 2200 कैदियों को पिछले करीब 15 साल में दस साल से भी कम समय जेल में बिताने पर रिहा कर दिया था लेकिन इसके मामले पर सिर्फ इस आधार पर विचार नहीं किया गया कि उसके अपराध की जांच सीबीआई ने की थी। केंद्र सरकार ने इससे पहले न्यायालय में दलील दी थी कि उसकी सहमति के बगैर तमिलनाडु सरकार ऐसे कैदी को रिहा नहीं कर सकती है। केंद्र सरकार के इस रूख के कारण राजीव गांधी हत्याकांड के दोषियों को रिहा करने का राज्य सरकार का निर्णय परवान नहीं चढ़ सका था।
इस हत्याकांड के तीन दोषियों मुरूगन, संतन और पेरारिवलन की मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील करने के शीर्ष अदालत के निर्णय के बाद तमिलनाडु सरकार 19 फरवरी को सभी सात कैदियों की सजा माफ कर उन्हें रिहा करना चाहती थी। तमिलनाडु सरकार के इस निर्णय को केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। न्यायालय ने 20 फरवरी को राज्य सरकार के इस निर्णय पर रोक लगाते हुए सारा मामला संविधान पीठ को सौंप दिया था।
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