अब देखना है कि मोदी व जिनपिंग में कौन ऑस्ट्रेलिया के साथ मजबूत रिश्ता बनाने में सफल होगा। कहा जा सकता है चीन की ऑस्ट्रेलिया निवेश का रास्ता साफ हो गया है, लेकिन भारत को अभी इंतजार करना होगा। क्योंकि यूरेनियम निर्यात का भरोसा तो मिला है, लेकिन इसके लिए काफी प्रयास करने होंगे। मोदी व टोनी के बीच हुए समझौते के तहत साल के अंत तक भारत फ्री ट्रेड एग्रीमेंट करने के साथ ही यूरेनियम निर्यात का करार होने से आयात-निर्यात को बढ़ावा मिलेगा। इसके अलावा दोनों देशों ने सितम्बर में एक-दुसरे को वर्क और हरवे बीजा देने की भी सहमति हो जाने के बाद नागरिकों की आवाजाही आसान हो जायेगा।
सात समंदर पार विश्व की आर्थिक राजधानी ऑस्ट्रेलिया के सिडनी-ऑलफांसो एरेना में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दहाड़ भारत के विकास में कितना कारगर होगी, यह तो वक्त बतायेगा। लेकिन सौदागर के रुप में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग मोदी से एक हाथ आगे निकल गए है। मतलब साफ है, भारत और चीन की टक्कर सीमा पर ही नहीं बल्कि विदेशी जमीन पर भी दिखा। खासकर उस वक्त जब नरेन्द्र मोदी आस्ट्रेलिया की सरजमी पर मोदी अलग-अलग सार्वजनिक काय्रक्रमों व खास मुलाकामों में मशगूल थे तो जिनपिंग चुपचाप आस्ट्रेलिया के साथ बिजनेस डील में लगे थे और फ्री ट्रेड समझौता के तहत अगले 4 से 11 सालों में टैक्स घटवाने में वह सफल भी रहे। हालांकि भारत ने ऑस्ट्रेलिया में चीन को पूरी टक्कर दी। अगर जिनपिंग ने ऑस्ट्रेलिया के संसद को संबोधित किया तो मोदी ने भी वहां के निवासियों का दिल जीतने में सफल रहे। व्यापार मामले में ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत का भी ऐसा ही डील साल के आखिर तक होना है और अगर ऐसा हुआ तो मोदी जिनपिंग से ज्यादा पीछे नहीं रहेगे लेकिन शुरुवाती दौर में चीन ने तो बाजी मार ही ली है। इसमें गौर करने वाली बात यह है कि मोदी को इस मुगालते में नहीं रहना चाहिए कि टोनी एबाॅट उनके अकेले भाई है। टोनी एबाॅट ने अगर मोदी के साथ तस्वीरें खिचवाई तो मार्निंग वाॅक के दौरान डेविड कैमरान के साथ भी फोटो खिचवाकर यह बताने की कोशिश किया कि इंटरनेशनल नेता के रुप में उनके और भी भाई है। जहां तक विदेशी जमीन पर भारत व चीन की मुकाबले की बात है तो दोनों की चुनौतियां व दिक्कते अलग-अलग है। चीन पहले से उत्पादन के क्षेत्र में बड़ा काम रहा है। ऐसे में अचानक भारत के लिए इंटरनेशनल में खिलाड़ी बनना आसान नहीं है। इसके लिए भारत को संयम व संघर्ष का लंबा रास्ता तय करना होगा। ऑस्ट्रेलिया में जिस तरह मोदी का स्वागत हुआ है और नएं संबंध बनाएं है उससे दुनिया में भारत के अच्छे दिनों की उम्मीद जगी है। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति व व्यापार की दुनिया में चीन एक बहुत बड़ा नाम है। भारत को चीन से आगे निकलने में अभी बहुत कछ करना है, लेकिन कहा जा सकता है कि मोदी की अगुवाई में शुरुवात हो चुकी है।
चीन और ऑस्ट्रेलिया के बीच हुए सबसे अहम मुक्त व्यापार समझौते के तहत ऑस्ट्रेलियाई किसानों, वाइन उत्पादकों और डेयरी उत्पादों के उत्पादकों को चीन के बाजार तक पहुंच बनाना आसान हो जाएगा। अगले चार से 11 वर्ष में इन क्षेत्रों में टैक्स पूरी तरह समाप्त हो जाएंगे। ऑस्ट्रेलियाई वाइन उत्पादक 30 प्रतिशत तक टैक्स देने के बावजूद हर वर्ष 20 करोड़ डॉलर की वाइन चीन को निर्यात करते हैं। टैक्स छूट के बाद इसमें भारी इजाफा होने की संभावना है। इसके बदले चीन को ऑस्ट्रेलिया में निवेश रुकावटों से निजात मिलेगी। यहां जिक्र करना जरुरी है कि ऑस्ट्रेलिया में चीनी मूल के लोगों की संख्या भारतीय मूल के लोगों से बहुत अधिक है। ऑस्ट्रेलिया ब्यूरो ऑफ स्टेटिक्स के अनुसार, ऑस्ट्रेलिया की कुल दो करोड़ 35 लाख लोगों की आबादी में चीनी मूल के लोगों की संख्या 1.8 प्रतिशत, जबकि भारतीय मूल के लोगों की संख्या 1.6 प्रतिशत है। मतलब चीन निवेश के लिए ऑस्ट्रेलिया के बाजार को आजमाना चाह रहा है और जिनपिंग की इस यात्रा में उसे कुछ हदतक यह सफलता हासिल भी हुई। ऐसे में अब मोदी को इस यात्रा में कितने सफल होंगे अभी कुछ कह पाना जल्दबाजी होगी। फिलवक्त मोदी और टोनी एबॉट के बीच द्विपक्षीय बातचीत के बाद जिन पांच समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए उसमें शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए भारत को यूरेनियम की आपूर्ति करने की इच्छा के साथ साल के अंत तक निर्यात शुरु करने और सामाजिक सुरक्षा, कैदियों की अदला-बदली, मादक पदार्थों के व्यापार पर लगाम लगाने तथा पर्यटन, कला एवं संस्कति को बढ़ाने की वचनवद्धता दुहराई तो यह अपने आप में बड़ी उपलब्धि मानी जा सकती है। यह उपलब्धि भारत के लोगों की उत्थान को लेकर जगी आशाओं को पूरा करने के लिए कौशल विकास, हर परिवार को घर, बिजली आपूर्ति, स्वास्थ्य सुविधा, ऐसी उर्जा जो हमारे ग्लेशियरों को नहीं पिघलाए, परमाणु उर्जा और व्यवहार्य व रहने योग्य शहर बनाने में ऑस्ट्रेलिया भागीदार बन सकता है। 2015 में ऑस्ट्रेलिया में मेक इन इंडिया शो का आयोजन, अगले वर्ष फरवरी तक सिडनी में भारत का सांस्कृतिक केंद्र खोलने सहित सामाजिक सुरक्षा का समक्षौता बेहद महत्वपूर्ण है जो विशेष रूप से सेवा क्षेत्र से जुड़ा है। इसके अलावा सुरक्षा एवं प्रतिरक्षा क्षेत्र में दोनों देशों के बीच सहयोग क्षेत्रीय शांति, विभिन्न देशों के बीच अपराधों पर लगाम लगाने की दिशा में महत्वपूर्ण होगा। ऑस्ट्रेलिया, भारत के साथ उर्जा, सुरक्षा के अलावा इंटेलिजेंस, सैन्य सहयोग, आतंकवाद के विरूद्ध सहयोग और द्विपक्षीय एवं त्रिपक्षीय सैन्य अभ्यास में सहयोग से दोनों देशों में अधिक रोजगार और समृद्धि आयेगी।
जी-20 की जीडीपी में 2018 तक कम से कम दो प्रतिशत तक अतिरिक्त वृद्धि का महत्वाकांक्षी लक्ष्य पेश किया गया। इसमें कहा गया-दो प्रतिशत की वृद्धि से वैश्विक अर्थव्यवस्था में 2000 अरब डॉलर जुड़ जाएंगे और करोड़ों लोगों को रोजगार मिलेगा। बड़ी बात तो यह है कि विश्व की शीर्ष 20 अर्थव्यवस्थाओं के नेता वृहद आर्थिक नीतियों में समन्वय लाने पर एकमत हुए हैं ताकि विकास में सहयोग मिल सके और समावेशी विकास संभव हो सके। इससे असमानता और गरीबी उन्मूलन में भी मदद मिलेगी। इसके अलावा भारत के परिप्रेक्ष्य में और घरेलू प्राथमिकताओं के मद्देनजर कर चोरी और काला धन का मुद्दा बेहद महत्वपूर्ण रहा, जिसमें एक अहम राजकोषीय वचनबद्धता की गई कि लाभ पर कर उन देशों में ही लगना चाहिए जहां आर्थिक गतिविधियां की जा रही हैं और जहां मूल्यवर्धन किया जाता रहा है। लेकिन बात तब बनेगी जब काले धन संबंधी सूचनाओं के आदान-प्रदान में तेजी लाई जाएगी। फिरहाल इस प्रस्ताव से यह उम्मीद जगती है कि साल 2015 तक कोई न कोई ऐसा वैश्विक राजकोषीय ढांचा तैयार हो जाएगा जो बेस इरोजन एंड प्रॉफिट शिफ्टिंग (बीईपीएस) की कार्ययोजना के तहत विद्यमान अंतरराष्ट्रीय कर नियमों में सुधार कर पाएगा। क्योंकि भारत के पूरे तंत्र में कैंसर की तरह फैले भ्रष्टाचार और इसकी उपज काले धन पर अंकुश लगाना है तो कुछ इसी तरह के फैसले लेने ही पड़ेगे, जिसमें मोदी सफल होते दिखाई दे रहे है। कहा जा सकता है कि करचोरी और काले धन पर अंकुश लगाने संबंधी जी-20 की प्रतिबद्धता सराहनीय है। इसके अलावा मोदी द्वारा म्यांमार में जुटे सभी राष्टाध्यक्षों के बीच अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र के नियमों का पालन करने कराने के जिक्र में चीन की मनमानी पर रोक की बात कही गयी, जो काफी सराहनीय है तो है ही जी-20 सम्मेलन में अपनी प्रभावशाली उपस्थिति से भारतीय प्रधानमंत्री ने बता दिया है कि वह बहुपक्षीय मंचों पर अपनी छाप छोड़ने में सक्षम हैं।
इतना ही नहीं मोदी ने म्यांमार में पूर्वी एशियाई शिखर सम्मेलन (ईएएस) और इसके बाद ऑस्ट्रेलिया में जी 20 शिखर सम्मेलन में भारतीय मीडिया को खूब लुभाया, लेकिन जब यही लोकप्रियता विदेशी मीडिया और लोगों में भी दिखाई दे तो यह किसी नवनिर्वाचित नेता की वैश्विक मंच पर राॅक स्टार की पहचान नही ंतो और क्या कहेंगे। इंग्लैंड के गाजिर्यन में छपी दिलचस्प टिप्पणी मोदी की लोकप्रियता में चार चांद लगाने के लिए काफी है, जिसमें कहा गया है कि सबसे बड़े लोकतंत्र के नए प्रधानमंत्री के रूप में इस 64 साल के व्यक्ति में कुछ ऐसा जज्बा है, जिसकी दुनियाभर के नेतागण गुणगान सप्ताह भर करते दिखा। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री टोनी एबॉट ने खुद भारत को उभरता सुपर पावर कहा है। साथ में भरोसा भी दिया कि अगर सब ठीक रहा तो ऑस्ट्रेलिया जल्द उपयुक्त सुरक्षा उपायों के साथ भारत को यूरेनियम का निर्यात शुरू कर देगा। मोदी ने सीधे तो नहीं पाकिस्तान पर परोक्ष हमला करते हुए दुनिया को बताने की कोशिश भी किया कि उन देशों को अलग-थलग करना होगा जो आतंकवाद को बढ़ावा दे रहे हैं। धर्म और आतंकवाद को जोड़ने के सभी प्रयासों को विफल करना होगा। इंटरनेट के जरिए भर्ती, फिरौती वसूली, हथियारों की तस्करी के जरिए आतंकवाद पैर फैला रहा है। सभी देशों को मिलकर इसके खिलाफ कदम उठाने होंगे। चीन का उल्लेख किए बिना मोदी ने यह बताने की कोशिश किया कि प्रशांत और हिंद महासागर दोनों देशों की जीवन रेखा है। भारत और आस्ट्रेलिया भागीदार बनकर इस क्षेत्र की सुरक्षा को बेहतर कर सकता हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऑस्ट्रेलिया दौरे में कूटनीति के अलावा क्रिकेट भी चर्चा का केंद्र बिंदु बना हुआ है। आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की संयुक्त मेजबानी में अगले वर्ष आयोजित होने वाले क्रिकेट वर्ल्डकप भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच टूर्नामेंट का फाइनल मुकाबला होने की भी उन्होंने हामी भरवा ली।
(सुरेश गांधी)
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